Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

ब्लड मनी : फिल्म समीक्षा

Advertiesment
हमें फॉलो करें ब्लड मनी

समय ताम्रकर

PR
बैनर : वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स, विशेष फिल्म्स
निर्माता : मुकेश भट्ट
निर्देशक : विशाल म्हाडकर
संगीत : जीत गांगुली, सिद्धार्थ हल्दीपुर, संगीत हल्दीपुर
कलाकार : कुणाल खेमू, अमृता पुरी, मनीष चौधरी, मिया
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 1 घंटा 50 मिनट * 12 रील
रेटिंग : 1.5/5

महेश भट्ट की फिल्मों के हीरो सही और गलत के बीच की रेखा के बेहद नजदीक होते हैं। वे नैतिक रूप से भी थोड़े कमजोर होते हैं। अधिक पैसा कमाने के चक्कर में अपराध के दलदल में घुस जाते हैं। कुछ दिनों बाद उनका जमीर जागता है और वे उस दलदल से बाहर निकालना चाहते हैं। विशेष फिल्म्स की अधिकांश फिल्मों की यही कहानियां होती हैं। सेक्स और अपराध के इर्दगिर्द ये कहानियां घूमती हैं। ‘ब्लड मनी’ में भी यही सब है।

मिडिल क्लास से आए पति-पत्नी जब दक्षिण अफ्रीका पहुंचते हैं तो आलीशान बंगला, लंबी कार देख पत्नी दंग रह जाती हैं। पूछती है कि कहीं वो सपना तो नहीं देख रही है। इस पर पति कहता है कि मिडिलक्लास लोगों के साथ यही समस्या रहती है। उन्हें अचानक सफलता मिलती है तो वे यकीन नहीं कर पाते हैं और उन्हें लगता है कि वे सपना देख रहे हैं।

कुणाल कदम खूब पैसा कमाना चाहता है और एमबीए करने के बाद दक्षिण अफ्री का स्थित ट्रिनीटी कंपनी में उसकी नौकरी लग जाती है। यह कंपनी हीरों का व्यापार करती है। किस योग्यता के बल पर कुणाल को चुना जाता है, ये फिल्म में स्पष्ट नहीं है। हीरों के बारे में भी उसकी जानकारी एक सामान्य आदमी जैसी है, फिर भी उसको इतना ऊंचा पैकेज क्यों दिया जा रहा है, समझ से परे है।

स्ट्रीट स्मार्टनेस के जरिये वह एक ग्राहक को वही हीरा तीन करोड़ में बेच देता है, जिसके वह दो करोड़ दस लाख से ज्यादा देने के लिए तैयार नहीं था। यह सीन बेहद बचकाना है क्योंकि जो स्मार्टनेस वह दिखाता है वह बिलकुल भी विश्वसनीय नहीं है।

webdunia
PR
ट्रिनीटी कंपनी हीरों की आड़ में कई अवैध धंधे भी करती है। ऊंची लाइफ स्टाइल में जकड़ा कुणाल न चाहते हुए भी अवैध व्यापार में शामिल हो जाता है। यहां से फिल्म दो ट्रेक पर चलने लगती है। कुणाल की वैवाहिक जिंदगी तबाह होने लगती है क्योंकि वह पत्नी को समय नहीं दे पाता। अपनी ऑफिस में काम करने वाली एक महिला से संबंध बना लेता है। दूसरा वह इस अपराध की दुनिया से बाहर निकलने की कोशिश में लगा रहता है।

कुणाल और उसकी पत्नी वाला ट्रेक बेहद बोर है। कुणाल का अचानक दूसरी महिला के प्रति आकर्षित हो जाना वाला सीन सिर्फ ट्विस्ट देने के लिए रखा गया है और इसके लिए सही परिस्थितियां नहीं बनाई गई हैं।

साथ ही दोनों के बीच जो इमोशनल सीन रखे गए हैं उनमें कुणाल खेमू और अमृता पुरी की सीमित अभिनय प्रतिभा खुल कर सामने आ जाती है। भाव विहीने चेहरे और खराब डायलॉग डिलेवरी के कारण ये सीन और बुरे लगते हैं।

कुणाल को अपनी कंपनी को एक्सपोज करने वाला ट्रेक भी कुछ खास नहीं है और किसी तरह कमजोर क्लाइमैक्स के सहारे कहानी का अंत किया गया है।

‘ब्लड मनी’ की सबसे बड़ी समस्या इसकी स्क्रिप्ट है। कहानी को आगे बढ़ाने के लिए जो प्रसंग रखे गए हैं उनमें दम नहीं है। निर्देशक विशाल म्हाडकर का प्रस्तुतिकरण जरूर ठीक-ठाक है और इस कारण कुछ हद तक फिल्म में दिलचस्पी बनी रहती है, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट के कारण उनका डायरेक्शन भी प्रभावित हुआ है। उनके निर्देशन पर महेश भट्ट स्कूल की छाप नजर आती है।

webdunia
PR
कुणाल खेमू न बहुत अच्छे एक्टर हैं और न ही बड़े स्टार जो पूरी फिल्म को अपने दम पर खींच सके। उनका अभिनय अच्छे से बुरे के बीच झूलता रहता है। उनकी आवाज बड़ा माइनस पाइंट है। अमृता पुरी को संवाद कैसे बोले जाने चाहिए इसकी ट्रेनिंग की सख्त जरूरत है। खलनायक के रूप में मनीष चौधरी अपना प्रभाव छोड़ते हैं। मिया उदेशी को एक दो हॉट सीन के अलावा कोई मौका नहीं मिला है। फिल्म का संगीत औसत है। तकनीकी रूप से भी फिल्म औसत है।

कुल मिलाकर ‘ब्लड मनी’ में कोई नई बात नहीं है। सैकड़ों ऐसी फिल्में बन चुकी हैं। साथ ही सैकड़ों बार दोहराई गई कहानी को भी ‘ब्लड मनी’ में ठीक से पेश नहीं किया जा सका है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi