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ब्लू : पानी में डूबोने लायक

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समय ताम्रकर

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बैनर : श्री अष्टविनायक सिने विज़न लिमिटेड
निर्माता : ढिलिन मेहता
निर्देशक : एंथनी डिसूजा
संगीत : ए.आर. रहमान
कलाकार : अक्षय कुमार, संजय दत्त, लारा दत्ता, ज़ायद खान, राहुल देव, काइली मिनॉग, कैटरीना कैफ (विशेष भूमिका)
रेटिंग : 1/5


यह बात हजार बार दोहराई जा चुकी है कि फिल्म बनाते समय सबसे ज्यादा ध्यान कहानी और स्क्रीनप्ले पर दिया जाना चाहिए क्योंकि ये किसी ‍भी फिल्म की सफलता का मुख्य आधार होते हैं।

बड़े फिल्म स्टार्स साइन करने से, स्टंट और गानों से, पानी के अंदर या आसमान में करोड़ों रुपए खर्च कर फिल्माए दृश्यों से कुछ नहीं होता है। लेकिन ये बुनियादी बात अभी तक कई लोगों के समझ में नहीं आई है।

करोड़ों रुपए खर्च कर बनाई गई ‘ब्लू’ इसका ताजा उदाहरण है। पैसा उस जगह खर्च किया गया जहाँ बचाया जा सकता था और उस जगह बचाया गया जहाँ खर्च किया जाना था। एक ढंग की कहानी इससे जुड़े निर्माता-निर्देशक नहीं खोज पाए।
वर्षों पहले खजाने से लदा एक जहाज डूब गया था। आरव (अक्षय कुमार) उसे ढूँढकर अमीर होना चाहता है। इस काम में उसे सागर (संजय दत्त) की मदद चाहिए, जो उसके लिए काम करता है। सागर इसके लिए तैयार नहीं है। बचपन में सागर और उसके पिता ने उस डूबे जहाज को ढूँढ लिया था, लेकिन सागर की गलती से उसके पिता की मौत हो गई थी। सागर उस सदमे से उबर नहीं पाया।
सागर का एक भाई सैम (ज़ायद खान) है, जिसे रिस्क उठाने का नशा है। गैर कानूनी काम के दौरान वह फँस जाता है और कुछ लोग उसकी जान के पीछे है। वे उससे पैसा चाहते हैं। अपने भाई को मुसीबत में देख आरव की बात सागर मान लेता है और वे उस छिपे खजाने को ढूँढ निकालते हैं। अंत में राज खुलता है कि सैम को फँसाने के पीछे आरव का ही हाथ था ताकि सागर खजाने को ढूँढ निकालने में उसकी मदद करे।

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यह कहानी ऐसी है, जिसे कोई भी लिख सकता है। इसे भी निर्देशक एंथनी डिसूजा स्क्रीन पर मनोरंजक तरीके से पेश नहीं कर पाएँ। अक्षय कुमार सुपर स्टार हैं, लेकिन अंत तक उनका रोल दमदार नहीं लगता। जब उनके चेहरे से नकाब हटता है तो दर्शक हैरान नहीं होता क्योंकि बीच फिल्म में ही उसे समझ में आ जाता है कि संजय दत्त को जाल में फँसाने वाला अक्षय ही है।

अक्षय के किरदार को रहस्य के पर्दे में छिपाने का कोई मतलब नहीं है। अक्षय को यदि शुरुआत से ही खलनायक दिखाया जाता तो ज्यादा बेहतर होता, इससे दर्शकों की सहानुभूति संजय दत्त के साथ होती और अक्षय को भी कुछ कर दिखाने का अवसर मिलता।

फिल्म का अंत भी अपनी सहूलियत के हिसाब से किया गया। अंत में जो बातें बताईं गई है उन्हें सुनकर दर्शक हँसते हैं। फिल्म का लेखन इतना कमजोर है कि लेखक ऐसे दृश्य नहीं गढ़ पाएँ, जिससे पता चले कि खलनायक कौन है। अक्षय को सारा किस्सा अपने मुँह से सुनाना पड़ता है।

एंथोनी डिसूजा ने सारा ध्यान स्टाइल पर दिया है। एक दृश्य में संजय दत्त के घर पर गुंडे हमला करते हैं। संजू बाबा पहले रंगीन चश्मा पहनते हैं, फिर लड़ने जाते हैं। बाइक चेजिंग सीन भी जबरन ठूँसे गए हैं। खजाने की खोज में जो रोमांच होना चाहिए वो फिल्म से नदारद है।

फिल्म के प्रचार में अंडर वॉटर एक्शन की काफी बात की गई हैं, लेकिन ये खासियत फिल्म में कहीं नजर नहीं आती। समुद्र के भीतर जो दृश्य दिखाए गए हैं, वैसे दृश्य दर्शक टीवी पर कई बार देख चुके हैं।

फिल्म का संगीत अच्छा है और ‘आज दिल’, ‘चिगी विगी’ तथा ‘फिकराना’ प्रसिद्ध हो चुके हैं। इनका फिल्मांकन भव्य तरीके से किया गया है।

संजय दत्त को इस फिल्म में चुनना एक और बड़ी गलती है। हर जगह से गोल-मटोल हो चुके संजय की अब तोंद भी निकल आई है। बॉक्सिंग भी उन्हें जैकेट पहन कर करना पड़ी। लारा के साथ उनके प्रेम-प्रसंग के दृश्य अटपटे लगे। अभिनय भी उन्होंने अनमने ढंग से किया है।

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अक्षय कुमार का अभिनय अच्छा है, लेकिन उनकी जो स्टार वैल्यू है, उससे उनका किरदार न्याय नहीं कर पाता। लारा दत्ता ने समुद्र के अंदर गोते लगाकर अपनी काया का प्रदर्शन किया। अभिनय के नाम पर करने को उनके पास कुछ नहीं था। कैटरीना कैफ और कबीर बेदी संक्षिप्त रोल में नजर आए। राहुल देव प्रभावित करते हैं।

फिल्म में एक संवाद है ‘लड़की के दिल पर, समुंदर की मछली पर और करंसी के नोट पर किसी का नाम नहीं लिखा होता है, जिसके हाथ लग जाता है उसी का हो जाता है।‘ कहा जा सकता है कि घटिया फिल्म का टिकट भी जिसके हाथ लगता है उसे भुगतना पड़ता है।

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