Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

माई नेम इज खान : फिल्म समीक्षा

Advertiesment
हमें फॉलो करें माई नेम इज खान
PR
निर्माता : हीरू यश जौहर, गौरी खान
निर्देशक : करण जौहर
कहानी-स्क्रीनप्ले : शिबानी बाठिजा
गीत : निरंजन आयंगार
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
कलाकार : शाहरुख खान, काजोल, जिमी शेरगिल, ज़रीना वहाब

‘माई नेम इज खान’ वर्तमान दौर का आइना है। ऐसा एक भी दिन नहीं जाता जब हम आतंकवादियों के हमले द्वारा मारे गए मासूमों की खबर पढ़ते/सुनते या देखते नहीं हैं। हर वक्त एक डर-सा लगा रहता है। 9/11 के बाद दुनिया एक तरह से बँट गई है। यह फिल्म दृढ़ता से कहती है कि सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं होते हैं और बुराई कितनी भी शक्तिशाली हो अंत में जीत अच्छाई की ही होती है।

‘कभी अलविदा ना कहना’ के बाद करण ने गियर बदला और एक ऐसी फिल्म बनाई जिसका वास्तविकता से नाता है। यह फिल्म किसी एक का पक्ष नहीं लेती। यदि फिल्म का नायक कहता है ‘मेरा नाम खान है और मैं आतंकवादी नहीं हूँ’, तो यह उन लोगों को भी एक्सपोज करती है जो युवाओं को गलत राह पर चलने के लिए उकसाते हैं। इस तरह के मुद्दे पर फिल्म बनाना आसान नहीं है, लेकिन करण ने सफलतापूर्वक इसका निर्वाह किया। कहा जा सकता है कि ‘माई नेम इज खान’ करण जौहर, शाहरुख खान और काजोल का अब तक का सबसे बेहतरीन काम है।

रिजवान खान (शाहरुख खान) सेन फ्रांस्सिको जाकर अपने भाई (जिमी शेरगिल) और भाभी के साथ रहने लगता है। वह एस्पर्जर नामक बीमारी से पीड़ित है। वह मंदिरा (काजोल) से प्यार करता है और अपने भाई के विरोध के बावजूद भी उससे शादी करता है। दोनों मिलकर छोटा बिजनैस शुरू करते हैं। सितंबर 11 तक दोनों खुश थे, लेकिन इस दिन घटी घटना ने दुनिया का मुस्लिमों के प्रति नजरिये को बदल कर रख दिया। इस त्रासदी का असर मंदिरा और रिजवान के रिश्तों पर भी होता है। दोनों अलग हो जाते हैं। रिजवान इस बात से नाराज है कि उसकी पत्नी से उसे छोड़ दिया। उसे वापस पाने के लिए वह अमेरिका की यात्रा पर निकल पड़ता है।

webdunia
PR
आपको बता दे कि कहानी में आरंभ से ही कुछ उतार-चढ़ाव हैं। यदि आपके एक या दो दृश्य छूटते हैं तो कहानी समझने में कठिनाई हो सकती है। फिल्म के पहले भाग में बहुत कुछ घटता है। कई बार कहानी धीमी गति से आगे बढ़ती हुई महसूस हो सकती है, लेकिन घटनाक्रम में लगातार परिवर्तन होते रहते हैं।

कई दृश्य बेहतरीन बन पड़े हैं। उदाहरण के लिए, शाहरुख और काजोल का रोमांस, जो भले ही थोड़ी देर के लिए हो, लेकिन बड़ा प्यारा है। शाहरुख का काजोल और अपने बेटे के साथ जो रिश्ता फिल्म में दिखाया गया है वो फिल्म का सबसे खूबसूरत हिस्सा है। जब उनके जीवन में दुर्घटना घटती है तो दर्द दर्शक भी महसूस करते हैं।

माई नेम इज खान की खासियत है कि दर्शक पूरी तरह से फिल्म के नायक के साथ होता है। जब वह नाजुक परिस्थिति से गुजर रहा होता है या उस पर आतंकवादी का ठप्पा लगाकर सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है तो दर्शक भी बुरा महसूस करते हैं। पता ही नहीं चलता कि कब हम रिजवान और मंदिरा की जिंदगी का हिस्सा बन गए। फिल्म के दूसरे भाग में कुछ छोटी-मोटी अड़चने हैं, लेकिन इससे फिल्म का प्रभाव कम नहीं होता।

करण जौहर ने निर्देशक के रूप में बेहतरीन काम किया है। ‘करण जौहर ब्रांड सिनेमा’ को छोड़कर उन्होंने एक ऐसी फिल्म बनाई जो दिल और दिमाग दोनों को प्रभावित करती है। एक निर्देशक के रूप में उन्होंने लंबी छलाँग लगाई है। शिबानी बाठीजा द्वारा लिखा स्क्रीनप्ले बाँधकर रखता है। शिबानी और निरंजन आयंगर के संवाद फिल्म को धार प्रदान करते हैं। शंकर-अहसान-लॉय का संगीत फिल्म के मूड के अनुरूप है।

फिल्म में यदि देश के दो प्रतिभाशाली अदाकार हों तो आप सिर्फ श्रेष्ठ की उम्मीद करते हैं। यदि शाहरुख के बारे में कहा जाए कि यह उनका अब तक का श्रेष्ठ अभिनय है तो भी उनके लिए यह कम होगा। राज के स्थान पर रिजवान उनके लिए नया ‘स्क्रीन नेम’ होगा।

मंदिरा के रूप में काजोल से बेहतरीन चयन नहीं हो सकता था। एक बार फिर उन्होंने साबित किया है कि वर्तमान दौर की अभिनेत्रियाँ उनके आसपास भी नहीं हैं। शाहरुख और काजोल की जोड़ी का जादू हमेशा दर्शकों पर चला है और एक बार‍ फिर चलेगा।

webdunia
PR
फिल्म में कई कलाकार हैं और सभी ने अपना काम उम्दा तरीके से किया है। फिर भी, जरीना वहाब, जिमी शेरगिल, अर्जुन माथुर, तनय छेड़ा और युवा मक्कर (शाहरुख-काजोल का बेटा) का उल्लेख जरूरी है।

‘माई नेम इज खान’ में एक आकर्षक प्रेम कहानी है, धर्म की बात है और पृष्ठभूमि में एक ऐसी घटना है जिसने दुनिया को हिला कर रख दिया है। यह सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करती बल्कि दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है और दो घंटे चालीस मिनट तक बाँधकर रखती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi