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मुझसे फ्रेंडशिप करोगे : फिल्म समीक्षा

महिला जब प्रेमकथा बयाँ करे....

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दीपक असीम

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बैनर : वाय फिल्म्स
निर्माता : आशीष पाटिल
निर्देशक : नुपूर अष्ठाना
संगीत : रघु दीक्षित
कलाकार : साकिब सलीम, सबा आजाद, निशांत दाहिया, तारा डिसूजा


हर प्रेमकथा अनूठी होती है। नई होती है। ऊपर से देखने पर हर प्रेमकथा एक जैसी लगती है, मगर गहरे उतरने पर वो एकदम नई दिखती है। हर प्रेमकथा का अपना फिंगरप्रिंट होता है, डीएनए होता है। एक शब्द है अभूतपूर्व यानी इसके पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। हर प्रेमकथा अभूतपूर्व होती है। प्रेमकथा के इस अनूठेपन को यदि कोई कथाकार पकड़ लेता है, तो वो ऐसी फिल्म बनाने में सफल रहता है जिसमें दर्शक बस दम साधे बैठा रहे।

टीवी धारावाहिक "माही वे" की निर्देशिका नुपूर अस्थाना ने प्रेम के उस अनूठेपन को फिल्म "मुझसे फ्रेंडशिप करोगे" में पकड़ लिया है। हर प्रेमकथा का सबसे अद्भुत हिस्सा होता है लोगों का संयोग से मिलना और एक-दूसरे से प्यार कर बैठना। इस फिल्म में भी वो इसी तरह है।

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तमाम तरह की कथाओं में प्रेमकथा ऐसी अनूठी चीज है कि जिसका अंत नहीं होता। बस शुरुआत होती है, मध्य होता है। मगर फिल्म को सुखांत पर खत्म करना पड़ता है। "मुझसे फ्रेंडशिप करोगे" का सुखांत गलतफहमियों के खात्मे पर है। मगर वो सिर्फ गलतफहमी का खात्मा है, प्रेमकथा का नहीं।

नुपूर अस्थाना ने यह प्रेमकथा बहुत लगन से बुनी है। दरअसल, फिल्म में एक नहीं, दो प्रेमकथाएँ हैं। कई बार पुरुष के लिए किसी का प्रेम पाना, प्रेम की नहीं अहंकार की माँग होती है। फिल्म का नायक विशाल (साकिब सलीम) मालविका (तारा डिसूजा) से प्यार नहीं करता, तारा को अपनी गर्लफ्रेंड बनाना उसकी ईगोट्रिप है, अहंकार यात्रा है।

मगर महिलाएँ प्यार को लेकर कभी कन्फ्यूज नहीं रहतीं। नायिका प्रीति (सबा आजाद) को नायक से पहले इस बात की खबर हो जाती है कि वो प्रेम में है। कैसी दिलचस्प बात है न कि अपने दिल की ही अपने को खबर नहीं। जवानी का नशा बहुत गहरा होता है और उसमें भावनाओं के ऐसे अंधड़ चलते रहते हैं कि कुछ पता नहीं चलता। खासकर मर्द को।

साकिब सलीम, सबा आजाद, तारा डिसूजा, निशांत दाहिया... "माही वे" में इनमें से कई कलाकार थे। अभिनय के मामले में ये सभी बहुत बढ़िया हैं। नुपूर अस्थाना ने इनसे मनचाहा काम लिया है। फिल्म उस युवा वर्ग की है, जो कॉलेज में किताबें नहीं लैपटॉप और ब्लैकबैरी लेकर जाता है। चैटिंग जिसका पसंदीदा शगल है। शराब जिसके लिए चाय-कॉफी जैसा नियमित पेय है, मगर इससे क्या फर्क पड़ता है कि कहानी किन लोगों की है। फर्क इससे पड़ता है कि ये कहानी बोर करती है या मनोरंजन देती है। यह फिल्म भरपूर मनोरंजन देती है।

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इंटरनेट पर भी जानकारों की राय इस फिल्म के पक्ष में है। इस फिल्म को देखने में कोई खतरा नहीं है। संगीत भी बढ़िया है और कॉमेडी में भी नयापन है। मगर याद रहे कि यह एक प्रेमकथा है। महिला द्वारा कही गई प्रेमकथा। इसीलिए इस फिल्म के युवा वैसी गालियाँ नहीं बकते, जैसी "देल्ही बैली" के युवा बकते थे। यह महिला निर्देशक की फिल्म है इसलिए इसमें लड़कियाँ छोटे कपड़े पहनने के बावजूद वल्गर नहीं लगतीं। चुंबन दृश्य कामोत्तेजक नहीं, रोमांटिक हैं। महिला निर्देशक की फिल्म देखना वाकई अलग अनुभव होता है। एक किस्म की सभ्यता हर तरफ नजर आती है।

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