बॉलीवुड इतिहास की सबसे महंगी फिल्म। सुपरस्टार शाहरूख खान और करीना कपूर। हॉलीवुड के स्तर की फिल्म बनाने का दावा। पिछले 6 माह से आधे से ज्यादा भारत और दुनिया के कई देशों में शाहरुख का अपनी फिल्म के बारे में बढ़ा-चढा कर बात करना। इन सब बातों से ‘रा.वन’ के प्रति लोगों की अपेक्षाएं ऊंचाई छूने लगी कि पता नहीं किंग खान क्या कमाल करने जा रहे हैं? सबसे अहम सवाल यही उठता है कि क्या रा.वन इन अपेक्षाओं पर खरी उतरती है? इसका जवाब है कुछ हद तक।
विजुअल और स्पेशल इफेक्ट्स की बात की जाए, तकनीक की बात की जाए तो फिल्म का स्तर बहुत ऊंचा है। लेकिन खेलने के लिए बनाया गया गेम आपसे ही खेलने लगे वाला जो विचार है उसे समझने में कई लोगों को दिक्कत आ सकती है। जो वीडियो गेम के दीवाने हैं। गेमिंग के बारे में जानते हैं उन्हें यह फिल्म शानदार लगेगी। हालांकि फिल्म की अपील को यूनिवर्सल बनाने के लिए इसमें इमोशन, रोमांस और गाने डाले गए हैं, लेकिन कहानी का जो आधार है वो तकनीक आधारित है जिसे समझना आम आदमी के लिए मुश्किल है।
अच्छाई बनाम बुराई की कहानियां सदियों से चली आ रही है और रा.वन में भी यही देखने को मिलती है। शेखर सुब्रमण्यम (शाहरुख खान) एक वीडियो गेम डिजाइनर है। अपने आठ वर्ष के बेटे प्रतीक (मास्टर अमन वर्मा) की नजर में वह जीरो है, डरपोक है। प्रतीक को हीरो बोरिंग लगते हैं। विलेन उसे पसंद है क्योंकि विलेन के लिए कोई कायदा-कानून नहीं होता है।
अपने बेटे की फरमाइश पर शेखर एक ऐसा वीडियो गेम बनाता है जिसमें रा.वन नामक सुपरविलेन जी.वन नामक सुपरहीरो से ज्यादा शक्तिशाली होता है। शेखर, उसकी पत्नी और बेटे की जिंदगी में तब भूचाल आ जाता है जब रा.वन गेम से बाहर निकलकर उनकी जिंदगी में चला आता है। कैसे वे इस स्थिति से निपटते हैं यह फिल्म में जबरदस्त उतार-चढ़ाव के साथ दिखाया गया है।
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फिल्म का फर्स्ट हाफ बेहतरीन है। शेखर का जिंदगी के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, अपने बेटे के प्रति प्यार, पत्नी सोनिया से रोमांस, गेम डिजाइन करने का रोमांच, रा.वन का वीडियो गेम से निकल जिंदगी में चले आना जैसी कई घटनाएं एक के बाद एक घटती हैं जो फिल्म की गति बनाए रखती है।
इस दौरान कई उम्दा सीन, जैसे रा.वन का असल जिंदगी में आना, रा.वन का सड़क पर प्रतीक और सोनिया का पीछा करना, जी.वन का अचानक पहुंच कर दोनों की रक्षा करना, रा.वन और जी.वन की पहली भिड़ंत, रा.वन का टुकड़ों-टुकड़ों में बिखर जाना जबरदस्त रोमांच पैदा करते हैं। आमतौर पर सुपरहीरो की कहानी रूखी रहती है, लेकिन रा.वन में इमोशन और रोमांस को भी महत्व दिया गया है।
फिल्म बिखरती है दूसरे हाफ में जब सोनिया अपने बेटे प्रतीक के साथ भारत आती है। यहां मुंबई एअरपोर्ट पर टेक्सी वालों से जी.वन का फाइटिंग सीन बेमतलब का है। सतीश शाह वाले दृश्य ठूंसे हुए लगते हैं।
इस हिस्से में रा.वन की कमी महसूस होती है क्योंकि दर्शक रा.वन और जी.वन की ज्यादा से ज्यादा भिड़ंत देखना चाहते हैं। साथ ही थ्रिलिंग सीन इस पार्ट में बेहद कम है। जब आप एक सुपरहीरो की फिल्म देख रहे होते हैं तो कुछ-कुछ देर में एक्शन दृश्यों का स्क्रीन पर नजर आना जरूरी होता है।
बेलगाम भागती ट्रेन का पटरी से सड़क पर आने वाला सीन इस हिस्से का खास आकर्षण है। क्लाइमेक्स में एक बार फिल्म कमजोर पड़ जाती है। रा.वन और जी.वन की लड़ाई में अपेक्षा होती है कि हैरत-अंगेत स्टंट्स, इफेक्ट्सी देखने को मिलेंगे, लेकिन निराशा हाथ लगती है क्योंकि यहां पर तकनीक ज्यादा हावी हो गई है।
निर्देशक अनुभव सिन्हा का यह अब तक का सबसे बेहतरीन काम है। कहानी भी उन्होंने लिखी है। लेकिन सुपरहीरो के कारनामे दिखाने वाले दृश्यों व एक्शन दृश्यों की संख्या ज्यादा होनी चाहिए थे। कहीं ना कहीं वे शाहरुख की रोमांटिक इमेज से ज्यादा प्रभावित हो गए। नि:संदेह फिल्म में कई मनोरंजक और रोमांच से भरे क्षण हैं, लेकिन बोरियत वाले क्षण भी हैं।
शाहरुख खान ने बेहतरीन अभिनय किया है। शेखर के रूप में उन्होंने मसखरी की है तो जी.वन के रूप में एक्शन। जी.वन वाला उनका लुक बेहतरीन है। करीना कपूर के हिस्से में कम काम था। उन्हें फिल्म का ग्लैमर बढ़ाने के लिए रखा गया है और वे बेहद खूबसूरत नजर आईं।
रा.वन के रूप में अर्जुन रामपाल को ज्यादा फुटेज दिए जाने थे। उन्हें अपनी खलनायकी दिखाने के ज्यादा अवसर नहीं मिले और यह बात अखरती है। मास्टर अरमान वर्मा ने पहली ही फिल्म में अनुभवी कलाकार की तरह काम किया है। सतीश शाह, सुरेश मेनन, दलीप ताहिल और शहाना गोस्वामी को ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं था। रजनीकांत एक सीन में आते हैं और अपनी सिग्नेचर स्टाइल में प्रभाव छोड़ जाते हैं। संजय दत्त और प्रियंका चोपड़ा को भी लेकर एक प्रसंग रचा गया है जो सभी को अच्छा लगे यह जरूरी नहीं है क्योंकि यह काफी लाउड है।
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विशाल शेखर ने ‘छम्मक छल्लो’ और ‘दिलदारा’ जैसे दो सुपरहिट गाने दिए हैं, लेकिन बाकी गाने सामान्य हैं। उनका पार्श्व संगीत फिल्म को रिच लुक देता है। तकनीकी रूप से फिल्म बेहद सशक्त है और हर फ्रेम पर जमकर पैसा बहाया गया है।
कुल मिलाकर रा.वन में कई खूबियां हैं तो कुछ कमजोरियां भी हैं। एक्शन सीन कम हैं, लेकिन जबरदस्त हैं। काश कुछ ऐसे दृश्य और रखे जाते। क्लाइमेक्स को और बेहतर बनाया जाता तो बात कुछ और ही होती। बावजूद इसके एक बार फिल्म देखी जा सकती है।