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रागिनी एमएमएस : फिल्म समीक्षा

हॉरर और सेक्स का कॉकटेल

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समय ताम्रकर

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बैनर : आई रॉक फिल्म्स, एलटी एंटरटेनमेंट, बालाजी टेलीफिल्म्स लि.
निर्माता : एकता कपूर, शोभा कपूर
निर्देशक : पवन कृपलानी
कलाकार : राजकुमार यादव, कैनाज मोतीवाला
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 1 घंटा 37 मिनट * 12 रील
रेटिंग : 2.5/5

कहानी पर गौर किया जाए तो रागिनी एमएमएस रामसे ब्रदर्स की सी-ग्रेड फिल्मों की तरह लगती है। उनकी फिल्मों में भी वीकेंड मनाने के लिए सुनसान हवेलियों को चुना जाता था और फिर हवेली के भूत और चुड़ैल प्यार करने वालों को परेशान करते थे।

लेकिन रागिनी एमएमएस में इस कहानी का प्रस्तुतिकरण तकनीकी रूप से बहुत सशक्त है। शॉट टेकिंग, एडिटिंग, बैकग्राउंड म्यूजिक और चरित्र ऐसे जो आम जिंदगी से उठाए गए हो इस फिल्म को रामसे ब्रदर्स की फिल्मों से अलग करते हैं। कुलमिलाकर एक साधारण कहानी की अच्छी तरह पैकेजिंग की गई है।

‘लव सेक्स और धोखा’ के बाद फिल्म की निर्माता एकता कपूर ने महसूस कर लिया है कि यदि फिल्म में स्टार नहीं है तो सेक्स को स्टार बनाया जाए। लिहाजा ‘रागिनी एमएमएस’ में बोल्ड दृश्यों, गालियों और अपशब्दों की भरमार है।

फिल्म को बोल्ड लुक देने में गालियों का इस्तेमाल कुछ ज्यादा ही किया गया है और सेंसर बोर्ड भी इस फिल्म के मामले में उदार निकला।

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उदय और रागिनी वीकेंड मनाने शहर से दूर एक हवेली में जाते हैं। उदय के मन में खोट है और वह रागिनी का सेक्स वीडियो बनाकर लाभ उठाना चाहता है। उस हवेली में बिग बॉस स्टाइल में हर कमरे में कैमरे लगे हैं।

दोनों के वहाँ पहुँचते ही उनके साथ अजीबो-गरीब हरकतें शुरू हो जाती हैं। दरअसल उस हवेली में एक चुड़ैल रहती है जो उदय और रागिनी का वीकेंड खराब कर देती है।

यह चुड़ैल कौन है? क्या चाहती है? उदय और रागिनी को क्यों सता रही है? उनके दोस्तों को क्यों मार देती है? रागिनी को क्यों नहीं मारती? इन प्रश्नों के जवाब स्पष्ट रूप से नहीं मिलते क्योंकि फिल्म को अचानक फिल्म को खत्म कर दिया गया है और कहानी अधूरी रह जाती है।

निर्देशक और पटकथा लेखक ने चतुराई ये दिखाई कि ये सारे सवाल फिल्म देखते समय बाधा उत्पन्न नहीं करते क्योंकि ड्रामे को इस तरह से पेश किया है कि दर्शक फिल्म से बँधा रहता है। हमेशा उत्सुकता बनी रहती है कि आगे क्या होने वाला है।

डरावने दृश्यों में उन्होंने दर्शक को कल्पना करने का मौका दिया है जिससे उनका असर और गहरा हो गया। पहले हाफ में सेक्स और दूसरे में हॉरर पर जोर दिया गया है। फिल्म देखने के बाद जरूर सवाल परेशान करते हैं और दर्शक ठगा-सा महसूस करता है।

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तकनीक के दुरुपयोग की तरफ भी फिल्म का इशारा करती है कि किस तरह हर हाथ में कैमरे होने की वजह से बंद दरवाजों के पीछे भी आपको शूट किया जा सकता है। इस तरह के वीकेंड मनाने के पहले अब प्रेमी-प्रेमिका को सोचना चाहिए कि कही उन पर कैमरे की निगाह तो नहीं है।

फिल्म के किरदार एकदम रियल लगते हैं और लगता ही नहीं कि वे अभिनय कर रहे हैं। राजकुमार यादव और कैनाज मोतीवाला का अभिनय जीवंत है। त्रिभुवन बाबू ने कैमरे से अच्छे प्रयोग किए हैं और हॉरर सीन को गहराई प्रदान की है।

‘रागिनी एमएमएस’ में हॉरर को अलग तरीके से पेश करने की कोशिश की गई है, लेकिन क्लाइमैक्स फिल्म को कमजोर करता है।

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