गंभीर फिल्म बनाने वाले ज्यादातर फिल्म निर्देशक ये मानते हैं हल्की-फुल्की मनोरंजक फिल्म बनाना उनके लिए बाएँ हाथ का खेल है, लेकिन ये बात उतनी आसान नहीं है। निर्देशक आशुतोष गोवारीकर भी इस मामले में मात खा गए।
आशुतोष अपनी बात को विस्तार से रखते हैं, इसलिए उनकी फिल्मों की अवधि ज्यादा होती है। फिल्म की लंबाई से कोई समस्या नहीं है, लेकिन उसमें इतना दम होना चाहिए कि वो दर्शकों को बाँधकर रख सके।
‘व्हाट्स योर राशि’ का ग्राफ मनोरंजन और बोरियत के बीच लगातार उतरता-चढ़ता रहता है और फिल्म बिखरी हुई नजर आती है। फिल्म से कसावट नदारद है। ऐसा लगता है कि संपादन हुआ ही नहीं है। आशुतोष को अपने काम से इतना प्यार हो गया कि वे काँट-छाँट करने की हिम्मत जुटा नहीं पाए। परिणामस्वरूप फिल्म प्रभावित नहीं करती है।
कहानी है एनआरआई लड़के योगेश पटेल (हरमन बावेजा) की, जो शिकागो में रहता है। मुंबई में उसका बड़ा भाई करोड़ों का घोटाला कर देता है। अंडरवर्ल्ड का भाई दस दिन में अपना पैसा वापस चाहता है। योगेश के नाना की करोड़ों की जायदाद है जो योगेश के नाम उस दिन हो जाएगी, जिस दिन वह शादी करेगा।
पिता को दिल का दौरा पड़ा है वाला चिरपरिचित बहाना बनाकर योगेश को भारत बुलवाया जाता है। एनआरआई लड़के का बायोडाटा वेबसाइट पर डाला जाता है। 176 लड़कियाँ उससे 5 करोड़ रुपए तक का दहेज देकर शादी के लिए तैयार है। लेकिन नायक है दहेज विरोधी।
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दस दिन में उसे शादी करना है और एक दिन में 17 लड़कियों से मिलना मुश्किल है। वह हर राशि की एक लड़की से मिलने का फैसला करता है क्योंकि एक किताब में उसने पड़ा है कि लड़कियाँ 12 प्रकार की होती हैं।
इसके बाद शुरू होता है अंजलि, संजना, काजल, हंसा, रजनी, चन्द्रिका, मल्लिका, नंदिनी, भावना, पूजा, विशाखा और झंखाना से मुलाकातों का सिलसिला। इस कहानी के साथ योगेश के चाचा देबू भाई के रोमांस और उस पर जासूसी की उपकहानियाँ भी गूँथी गई हैं।
फिल्म के लेखक 12 लड़कियों से मुलाकातों को दिलचस्प तरीके से पेश नहीं कर सके। चन्द्रिका, मल्लिका, विशाखा और भावना वाले किस्से तो बेहद घटिया किस्म के हैं। भावना मुलाकात के दस मिनट बाद योगेश से शारीरिक संबंध बनाना चाहती है तो विशाखा पागलपन का नाटक यह देखने के लिए करती है कि योगेश उसे चाहता है या उसकी दौलत को। केवल अंजलि़, संजना, काजल और हंसा से योगेश की मुलाकात अच्छी लगती है। कुछ दृश्य बेहद बनावटी हैं और कुछ दृश्य ऐसे लिखे गए हैं कि गाने की सिचुएशन पैदा हो।
फिल्म की उपकहानियाँ भी दमदार नहीं है। देबू भाई के रोमांस को कुछ ज्यादा ही फुटेज दिया गया है और जासूसी के घटनाक्रम भी मजेदार नहीं हैं। फिल्म के अंत में योगेश की शादी जिस लड़की से दिखाई जाती है, उससे भी ज्यादातर दर्शक असहमत नजर आएँगे।
निर्देशक के रूप में आशुतोष गोवारीकर ने अपना टच देने की कोशिश की है, लेकिन स्क्रिप्ट की मदद नहीं मिलने से वे ज्यादा योगदान नहीं दे पाए। कुछ दृश्यों द्वारा उन्होंने दिखाया है कि लड़का-लड़की को मिलवाने के नाम पर किस तरह की नौटंकी खेली जाती है और धोखा दिया जाता है। उम्र में बड़े लोग मुलाकात के नाम पर लड़कियों को शो पीस की तरह पेश कर छोटी हरकत करते हैं। उनके बजाय युवा पीढ़ी ज्यादा समझदार और ईमानदार है। योगेश के सामने हंसा कबूल करती है कि वह ‘वर्जिन’ नहीं है या संजना पहली मुलाकात में योगेश को बता देती है कि वह किसी और को चाहती है।
आशुतोष यदि 13 के बजाय पाँच गाने रखते और फिल्म की अवधि दो घंटे रखते तो फिल्म बेहतर बन सकती थी।
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प्रियंका चोपड़ा ने 12 भूमिकाएँ अभिनीत की हैं। मेकअप के साथ-साथ आवाज और बॉडी लैंग्वेज के जरिये उन्होंने विविधता पेश की, लेकिन दोहराव का शिकार होने से भी वे बच नहीं पाई हैं। फिर भी उनका प्रयास सराहनीय है। हरमन बावेजा ने अपना किरदार पूरी गंभीरता से निभाया है और उनके करियर को ऑक्सीजन मिल सकती है। दर्शन जरीवाला का अभिनय उम्दा है। फिल्म के अन्य कलाकार भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
सोहेल सेन का संगीत मधुर है, लेकिन इसका ठीक से प्रचार नहीं किया गया। अगर गीत लोकप्रिय होते तो दर्शक इनका आनंद उठा सकते थे। कुल मिलाकर ‘व्हाट्स योर राशि?’ की राशि में कुछ खास नहीं है। थोड़े प्रयास से यह बेहतर बन सकती थी।