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शक्तिहीन ‘युवराज’

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हमें फॉलो करें युवराज

समय ताम्रकर

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निर्माता-निर्देशक : सुभाष घई
गीतकार : गुलजार
संगीत : ए.आर. रहमान
कलाकार : सलमान खान, कैटरीना कैफ, अनिल कपूर, ज़ायद खान, बोमन ईरानी, मिथुन चक्रवर्ती (विशेष भूमिका)

सुभाष घई की सोच और सिनेमा अब पुराना पड़ चुका है। उनकी ताजा फिल्म ‘युवराज’ से एक बार फिर यह बात साबित हो जाती है। प्यार के बीच दौलत की दीवार और जायदाद हड़पने के लिए रिश्तेदारों और भाइयों की खींचतान वाली घिसी-पिटी कहानी उन्होंने ‘युवराज’ के लिए चुनी। ताज्जुब की बात है ‍कि इस पर भी वे अच्छी फिल्म नहीं बना पाए।

देवेन युवराज (सलमान खान) को उसके पिता ने घर से निकाल दिया क्योंकि वह अपने सौतेले भाई ज्ञानेश (अनिल कपूर) से झगड़ा करता था। ज्ञानेश मंदबुद्धि इंसान है। इनका एक और भाई डैनी (ज़ायद खान) भी है, जिसकी अपने भाइयों से नहीं बनती।

अनुष्का (कैटरीना कैफ) और देवेन एक-दूसरे को चाहते हैं, लेकिन अनुष्का के पिता (बोमन ईरानी) देवेन को इसलिए पसंद नहीं करते क्योंकि वह पाँच वर्ष में भी इतने पैसे नहीं कमा सकता जितने की उनके घर पर पेंटिंग लगी है।

देवेन को एक दिन पता चलता है कि उसके पिता नहीं रहे। इस खबर ने देवेन को खुश कर दिया। वह अनुष्का के पिता के पास जाकर कहता है कि वह चालीस दिनों में करोड़पति बनकर दिखाएगा, वरना अनुष्का को भूल जाएगा।

जमीन-जायदाद की लालच में देवेन अपने घर जाता है तो उसे पता चलता है कि उसके पिता पन्द्रह हजार करोड़ रुपए की सम्पत्ति ज्ञानेश के नाम कर गए हैं। इस दौलत पर देवेन, डैनी के अलावा कुछ रिश्तेदारों की भी नजर थी। देवेन और डैनी, ज्ञानेश को वकीलों के सामने ऐसा कुछ कहने को कहते हैं ताकि उन्हें भी जायदाद से बड़ा हिस्सा मिले। ज्ञानेश को खुश करने के चक्कर में तीनों भाइयों के दिल मिल जाते हैं।

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फिल्म की कहानी कमजोर है। इसे सुभाष घई ने और स्क्रीनप्ले तीन लोगों (सुभाष घई, सचिन भौ‍मिक और कमलेश पांडे) ने मिलकर लिखा है, लेकिन इसके बावजूद इसमें ढेर सारी कमियाँ हैं।

नायिका के पिता को चुनौती देकर करोड़पति बनकर दिखाने का किस्सा बेहद पुराना है। यहाँ पर नायक उस दिन चुनौती देता है, जिस दिन उसके पिता मरते हैं ताकि वह जायदाद में हिस्सा पाकर करोड़पति बन जाए। फिल्म के नायक को नकारात्मक नहीं दिखाया गया है, लेकिन उसकी यह सोच उसे विलेन बनाती है।

जायदाद पाने के लिए देवेन और डैनी एक घटिया-सा प्लान बनाते हैं कि अगर ज्ञानेश वकीलों के सामने यह बोल दे कि अंतिम समय उसके पिता की मानसिक हालात ठीक नहीं थी तो वे वसीयत को चुनौती दे सकते हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि ज्ञानेश जिसे मंदबुद्धि दिखाया गया है क्या उसकी दलील को अदालत मानेगी। वो भी पन्द्रह हजार करोड़ रुपए की भारी धनराशि के लिए। अपने इस प्लान को भी वे अमल में लाने की ज्यादा कोशिश नहीं करते हैं। जब ज्ञानेश ऐसा नहीं करता तो वे कोई दूसरी योजना भी बना सकते थे।

अनिल कपूर का चरित्र भी समझ में नहीं आता कि उनमें पाँच वर्ष के बच्चे का दिमाग है या पन्द्रह वर्ष के। सिर्फ बालों में तेल लगाकर कंघी करने से और पेंट ऊँची पहनने से ही कोई मंदबुद्धि नहीं बन जाता। उनकी हरकतें सयानों जैसी हैं। फिल्म का अंत भी ठीक नहीं है।


सुभाष घई का ‍पूरा ध्यान फ्रेम को सुंदर बनाने में रहा। उनके चरित्र सुंदर लगे और पृष्ठभूमि में भव्यता नजर आए, इसमें ही उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी। मध्यांतर और मध्यांतर के एक घंटे बाद तक फिल्म बोर करती है। ऐसा लगता है कि कागज पर छपी कोई सुंदर तस्वीर देख रहे हों, जो दिखने में सुंदर लगती है लेकिन उसे महसूस नहीं किया जा सकता। फिल्म के आखिरी हिस्से में जब अनिल कपूर के चरित्र को उभारा जाता है, तब फिल्म में थोड़ी-बहुत जान आती है।

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सलमान खान का अभिनय एक-सा नहीं है। कहीं अच्छा तो कहीं बुरा। कैटरीना बेहद खूबसूरत नजर आईं। ज़ायद खान, बोमन ईरानी और अनिल कपूर ने अपने-अपने किरदार अच्छे से निभाएँ। विशेष भूमिका में मिथुन चक्रवर्ती भी नजर आए।

ए.आर. रहमान का संगीत फिल्म देखते समय ज्यादा अच्छा लगता है। गीतों को भव्यता के साथ फिल्माया गया है। कबीर लाल की फोटोग्राफी उल्लेखनीय है और हर फ्रेम खूबसूरत नजर आती है। फिल्म को संपादित किए जाने की जरूरत है।

कुल मिलाकर ‘युवराज’ निराश करती है।

रेटिंग : 2/5
1- बेकार/ 2- औसत/ 3- अच्छी/ 4- शानदार/ 5- अद्‍भुत

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