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शक्ल पे मत जा : फिल्म समीक्षा

शुभ को हो ही गया लाभ...

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दीपक असीम

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बैनर : लिंक एंटरटेनमेंट, आईपिक्स मूवीज़
निर्माता : दीपक जालन- सरिता जालन
निर्देशक : शुभ
संगीत : सलीम-सुलेमान, नितिन कुमार गुप्ता, यो यो हनी सिंह
कलाकार : शुभ, प्रतीक कटारे, सौरभ शुक्ला, रघुवीर यादव, आमना शरीफ, जाकिर हुसैन

अपनी आशंकाओं का गलत निकल जाना कभी-कभी अच्छा भी लगता है। मिसाल के तौर पर फिल्म "शक्ल पे मत जा" का ठीक-ठाक निकल आना। कतई उम्मीद नहीं थी कि इस फिल्म को अंत तक देखा जा सकेगा, लेकिन फिल्म को देखा और पाया कि अरे इसे तो मजे से देखा जा सकता है।

शुभ मुखर्जी ने पर्दे के आगे और पीछे बढ़िया काम किया है। इस फिल्म की कास्टिंग बहुत बढ़िया है। फिल्म "पा" में बाल अमिताभ का एक दोस्त याद होगा आपको, जो अपने पिता की बुराई पा से करता है। इस बालक का नाम है प्रतीक कटारे। फिल्म में इसने उसी अंदाज से काम किया है।

एक दढ़ियल मोटा किरदार है। उसका नाम है चित्रक बंदोपाध्याय। चित्रक इस फिल्म में एक ऐसे मोटे व्यक्ति के गेटअप में है, जिसका पेट खराब है। वो अमेरिका रिटर्न हिन्दुस्तानी है, जो ठीक से हिन्दी नहीं बोल पाता।

कैडबरी के विज्ञापन में पड़ोसी लड़के के साथ चढ़ाव में बैठकर चॉकलेट खाने वाली लड़की (उमंग जैन) का भी छोटा-सा रोल है। ये कैरेक्टर भी मजेदार है। फिल्म "तेरे बिन लादेन" में अफगानी युवक का रोल निभाने वाला लड़का भी है।

ये तो हुई जूनियर टीम। सीनियर टीम में सौरभ शुक्ला हैं, जिन्होंने एटीएस इंस्पेक्टर का रोल अदा किया है। इनकी पत्नी का नाम सविता है और सविता भाभी को लेकर भी बहुत-सा मज़ाक है। रघुवीर यादव ने औसत किस्म के पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका बहुत ही जानदार निभाई है। आतंकवादी के रोल में जाकिर हुसैन हैं। इनके आतंकवादी ग्रुप का नाम है "अल बकायदा"।

एक दृश्य में नायक एक अन्य आतंकवादी से पूछता है कि आपके ग्रुप का नाम क्या है? जवाब मिलता है कि अभी नाम रजिस्टर नहीं कराया है। फिल्म 2003 की कहानी कहती है। 2003 में आतंकवाद और उसकी मुखालफत की सरगर्मियाँ कुछ अधिक थीं।

पूरी कहानी एक ही दिन की है। टीवी पर भारत-पाकिस्तान मैच आ रहा है। शाम को भारत मैच जीतता है और आतंकवादियों की साजिश भी विफल होती है। एयरपोर्ट पर लाए गए बम को डिफ्यूज़ कर दिया जाता है। शुभ मुखर्जी ने आतंकवाद की हार को पाकिस्तान की हार निरूपित किया है। आम धारणा है भी यही। शुभ मुखर्जी के डायरेक्शन की ये पहली ही फिल्म है और वे बहुत उम्मीद जगाते हैं।

अली जाफर की फिल्म "तेरे बिन लादेन" जैसा परिष्कार इस फिल्म का नहीं हो पाया है। कुछ खामियाँ भी हैं। कुछ दृश्य अधिक लंबे हैं। कहीं पर अश्लीलता ज्यादा है। अखरने वाली खामी है समय निरूपण को लेकर। बताया जा रहा है कि घटना 2003 की है। मगर एटीएस का इंस्पेक्टर पिछले दिनों रिलीज हुई सलमान खान की "दबंग" वाला डांस करता है और "ओम शांति ओम" का संवाद (पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त) बोलता है।

सबसे बड़ी मिस्टेक यह कि 2003 में सविता भाभी की कार्टून स्ट्रिप छपी दिखाई गई है, जबकि इंटरनेट के मुताबिक सविता भाभी नामक चित्रकथा का जन्म सन 2008 में हुआ। इससे कुछ पहले का भी मान लिया जाए तब भी 2003 में सविता भाभी का नामोनिशान नहीं था।

फिल्म मजाकिया ही सही, पर तथ्यों के साथ इस तरह मजाक नहीं किया जा सकता। इससे फिल्म और निर्देशक के प्रति लोगों का भरोसा कम होता है। अब लाख रुपए का सवाल कि क्या फिल्म पैसा वसूल है? हाँ है। मगर इन खामियों को दरगुजर कर दिए जाने के बाद।

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