एक रात वह नीचे जाता है, तो देखता है कि बिल्डिंग का चौकीदार चोरों को दूर रखने के लिए सीटी बजाता है। राज उसे फटकारता हुए आगे से ऐसा नहीं करने को कहता है। माजरा बिल्डिंग के सचिव जनार्दन (रजत कपूर) तक पहुँचता है, जो कहते हैं कि सुरक्षा के लिहाज से सीटी का बजाया जाना सही है। यहाँ से राज की परेशानी गंभीर रूप धारण कर लेती है। वह रात में सो नहीं पाता है और इसका असर उसकी निजी जिंदगी के साथ ही काम पर भी पड़ता है। वह ऑफिस में पहले की तरह तेजी और होशियारी से काम नहीं कर पाता है। ‘हल्ला’ एक साधारण विषय पर बनी फिल्म है। राज जैसी परिस्थितियों का सामना किसी भी महानगरवासी को करना पड़ सकता है। इतने आम मुद्दे पर फिल्म बनाने के लिए जयदीप को दाद दी जाना चाहिए। जयदीप का निर्देशन अच्छा है। वे साधारण मसले पर भी दर्शकों को हंसाने में सफल रहते हैं, लेकिन कहानीकार के लिहाज से उनका काम कमजोर है। फिल्म में कई मोड़ ऐसे हैं, जिन्हें दर्शक समझ नहीं पाते। मुख्यमंत्री वाली बात गले नहीं उतरती है। यह भी साफ नहीं होता है कि राज और जनार्दन की जिंदगी आखिरी में और खराब क्यों हो जाती है?
सुशांत और रजत ने अभिनय की अपनी जिम्मेदारियाँ बखूबी निभाई हैं। इतने मंझे कलाकारों को लेने का फायदा तो मिलना ही था। कार्तिका और मनदीप भी अभिनय के लिहाज से शानदार रहे।
कुल मिलाकर फिल्म का पहला भाग जितना जोरदार है, दूसरा भाग उतना ही नीरस बन पड़ा है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि फिल्म छोटे शहरों के सिनेमाघरों में चल पाएगी, इसे लेकर आशंका है।