निर्माता : कुमार मंगत निर्देशक : अनिल देवगन संगीत : विशाल भारद्वाज, आनंद राज आनंद, प्रीतम, राघव सचरकलाकार : अमृता पाठक, नकुल मेहता, अध्ययन सुमन, काजोल-अजय देवगन (विशेष भूमिका में) निर्माता कुमार मंगत, निर्देशक अनिल देवगन और फिल्म में काम करने वाले कलाकार अमृता पाठक, नकुल मेहता और अध्ययन सुमन से यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि ‘हाल-ए-दिल’ की पटकथा में उन्होंने ऐसा क्या देखा, जो इस पर फिल्म बनाने की सोची। अगला प्रश्न लेखक धीरज रतन से, उन्होंने इतनी घटिया पटकथा कैसे लिखी? क्या वे पटकथा लिखना जानते हैं?‘टशन’, ‘जिमी’ जैसी घटिया फिल्मों से भी बदतर है ‘हाल-ए-दिल’ और इसका सारा दोष लेखक के जिम्मे जाता है। यह बिना आत्मा वाला खूबसूरत शरीर है। फिल्म को शानदार लोकेशन पर फिल्माया गया है, फिल्म का संगीत बढि़या है, फिल्म के दो नए कलाकारों ने अच्छा काम किया है, लेकिन लेखक ने सारा मामला चौपट कर दिया। कहा जा सकता है कि ‘हाल-ए-दिल’ के जरिए एक बढि़या मौके को गँवा दिया गया है। वर्ष के अंत में 2008 की घटिया फिल्मों पर विचार किया जाएगा तो उनमें इस फिल्म का नाम अवश्य शामिल होगा। कहानी है संजना (अमृता पाठक) की, जिसके लिए प्यार एक पवित्र भावना है। कहानी है शेखर (नकुल मेहता) की, जो हर लड़की से प्यार कर बैठता है। कहानी है रोहित (अध्ययन सुमन) की, जिसके लिए प्यार की कोई सीमा नहीं है। संजना एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ी होती है जहाँ से उसे किसी एक को चुनना होता है। फिल्म आरंभ होते ही आप इसमें दिलचस्पी खो देते हैं। जो सामने आता है उस पर सिर्फ इतना ही सोचा जा सकता है कि ये क्या और कैसे हो रहा है?निर्देशक अनिल देवगन द्वारा निर्देशित पिछली फिल्में ‘राजू चाचा’ और ‘ब्लैकमेल’ इस फिल्म के आगे ‘क्लासिक’ नजर आती है। अनिल पूरी तरह निराश करते हैं। संगीत इस फिल्म का एकमात्र सकारात्मक पहलू है। प्रत्येक गाने को शानदार तरीके से फिल्माया गया है।
नकुल मेहता पर शाहरुख खान का असर है। उनमें आत्मविश्वास है और अपना काम जानते हैं। अध्ययन सुमन इस फिल्म में क्या कर रहे हैं? वे प्रतिभाशाली हैं, लेकिन उनका सही तरीके से उपयोग नहीं किया गया है।
अमृता अच्छी अभिनेत्री है, लेकिन खराब मेकअप ने उन्हें उम्रदराज बना दिया। कुल मिलाकर ‘हाल-ए-दिल’ का बॉक्स ऑफिस पर डूबना तय है।