Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

Buddha Purnima 2020: वैशाख पूर्णिमा आज, जानिए पूजा विधि और महत्‍व और मान्यताएं

हमें फॉलो करें Buddha Purnima 2020: वैशाख पूर्णिमा आज, जानिए पूजा विधि और महत्‍व और मान्यताएं
webdunia

आचार्य राजेश कुमार

Buddha Purnima 2020
 
बुद्ध पूर्णिमा वैशाख मास में मनाया जाता है। वैशाख महीने में आने वाली पूर्णिमा को सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में होता है और चंद्रमा भी तुला में होता है। अत: ऐसे शुभ मुहूर्त में पवित्र जल से स्नान करने से कई जन्मों के पापों का नाश हो जाता है। 
 
आज के दिन बहुत से लोगों को क्रोध व पागलपन अधिकतर होता है, क्योंकि चंद्रमा फुल मून में हो जाता है और सूर्य और चंद्रमा के बीच काफी डिस्टेंस हो जाता है जिस कारण चंद्र की ग्रेविटी डिस्टर्ब हो जाती है। आप तो जानते ही हैं कि हमारे शरीर में लगभग 75% पानी होता है। इसके लेवल में अंतर से भी ऐसा होता है।  इसीलिए जब हम जल में डुबकी लगाते हैं तो चंद्रमा की ग्रेविटी पर पॉजिटिव प्रभाव पड़ता है इसलिए लोग नदी में स्नान करते हैं।

 
आज के दिन को धर्मराज की पूर्णिमा भी कहते हैं। महात्मा बुद्ध भगवान विष्णु के नौवें अवतार माने जाते हैं। वैशाख महीने की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती के नाम से जाना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए सबसे बड़ा त्योहार है।

 
यह पर्व महात्मा बुद्ध के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं, उनके कार्यों व उनके व्यक्तित्व को याद कर उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं और उनके द्वारा बताए गए रास्ते पर चलने का संकल्प लेते हैं।

 
हिन्दू धर्मावलंबियों का मानना है कि महात्मा बुद्ध विष्णु भगवान के नौवें अवतार हैं, अत: इस दिन को हिन्दुओं में पवित्र दिन माना जाता है और इसलिए इस दिन विष्णु भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है।
 
बुद्ध पूर्णिमा के दिन पूजा-
 
पाठ करने और दान देने का भी विशेष महत्व है। इस दिन सत्तू, मिष्ठान्न, जलपात्र, भोजन और वस्त्र दान करने और पितरों का तर्पण करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

 
वैशाख पूर्णिमा या बुद्ध जयंती के दिन प्रात: पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। यदि पवित्र नदी में स्नान करना संभव न हो तो शुद्ध जल में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। प्रात: स्नान के बाद पूरे दिन का व्रत रखने का संकल्प लें।
 
विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। प्रसाद के रूप में चूरमे का भोग लगाएं। पूजा संपन्न होने के बाद सभी को प्रसाद ग्रहण करने के लिए दें और अपने सामर्थ्य अनुसार गरीबों को दान दें। रात के समय फूल, धूप, गुण, दीप, अन्न आदि से पूरी विधि-विधान से चंद्रमा की पूजा करें।
 
 
पूर्णिमा के दिन सबसे पहले भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने घी से भरा हुआ पात्र, तिल और शकर स्थापित करें। पूजा वाले दीपक में तिल का तेल डालकर जलाना चाहिए। पूर्णिमा के दिन पूजा के वक्त तिल के तेल का दीया जलाना अत्यंत शुभ माना जाता है। अपने पितरों की तृप्ति व उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आप पवित्र नदी में स्नान करके हाथ में तिल रखकर तर्पण करें।
 
बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ करें। बोधिवृक्ष की शाखाओं को हार व रंगीन पताकाओं से सजाकर उसकी पूजा करें। उसकी जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डालें और बोधिवृक्ष के आस-पास दीपक जलाएं। इस दिन पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर आकाश में छोड़ा जाता है।
 
 
पूर्णिमा के दिन दान में गरीबों को वस्त्र व भोजन दें। ऐसा करने से गोदान के समान फल प्राप्त होता है। पूर्णिमा के दिन तिल व शहद को दान करने से व्यक्ति पापों से मुक्त होता है। इस दिन मांस व मदिरा का सेवन करना वर्जित है, क्योंकि गौतम बुद्ध पशु वध के सख्त विरोधी थे।
 
बुद्ध पूर्णिमा की मान्यताएं
 
-कहते हैं कि अगर बुद्ध पूर्णिमा के दिन धर्मराज के निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान दान किए जाएं तो सबसे बड़े दान गोदान के बराबर फल मिलता है।
 
-हिन्दू मान्यता के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा के दिन 5 या 7 ब्राह्मणों को मीठे तिल दान करने चाहिए। ऐसा करने से पापों का नाश होता है।
 
-मान्यता यह भी है कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन अगर एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा या सत्यनारायण भगवान का व्रत किया जाए तो जीवन में कोई कष्ट नहीं होता।
 
 
-श्रीलंका में बुद्ध पूर्णिमा को काफी हद तक भारत की दीपावली की तरह मनाया जाता है। वहां इस दिन घरों में दीपक जलाए जाते हैं तथा घरों और प्रांगणों को फूलों से सजाया जाता है।
 
-बुद्ध पूर्णिमा के दिन लखनऊ के गोमती नदी किनारे बनारस के घाट की तर्ज पर महंत दिव्यागिरिजी महाराज गोमती आरती करती हैं।
 
-बुद्ध पूर्णिमा के दिन बोधगया में काफी लोग आते हैं और दुनियाभर से बौद्ध धर्म को मानने वाले यहां आते हैं।

 
-बुद्ध पूर्णिमा के दिन बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। बोधिवृक्ष बिहार के गया जिले में बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर में है। वास्तव में यह एक पीपल का पेड़ है। मान्यता है कि इसी पेड़ के नीचे ईसा पूर्व 531 में भगवान बुद्ध को बोध यानी ज्ञान प्राप्त हुआ था।
 
-बुद्ध पूर्णिमा के दिन बोधिवृक्ष की टहनियों को भी सजाया जाता है। इसकी जड़ों में दूध और इत्र डाला जाता है और दीपक जलाए जाते हैं।
 
-टीम दिव्यांश ज्योतिष

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

बृहस्पति यदि है बारहवें भाव में तो रखें ये 5 सावधानियां, करें ये 5 कार्य और जानिए भविष्य