बुद्ध शाक्य गोत्र के थे और उनका वास्तविक नाम सिद्धार्थ था। उनका जन्म लुंबिनी, कपिलवस्तु (शाक्य महाजनपद की राजधानी) के पास में हुआ था। लुंबिनी के समीप, जो दक्षिण मध्य नेपाल में है, महाराज अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में एक स्तम्भ बनाया था, बुद्ध के जन्म के गुणगान में।
सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन थे, शाक्यों के राजा। परंपरागत कथा के अनुसार सिद्धार्थ की माता उनके जन्म के कुछ देर बाद मर गई थीं। कहा जाता है कि फिर एक ऋषि ने सिद्धार्थ से मिलकर कहा कि वे या तो एक महान राजा बनेंगे, या फिर एक महान साधु।
इस भविष्यवाणी को सुनकर राजा शुद्धोदन ने अपनी योग्यता की हद तक सिद्धार्थ को दुःख से दूर रखने की कोशिश की। फिर भी उनकी दृष्टि चार दृश्यों पर पड़ी (संस्कृत चतुर निमित्त)- एक बूढ़े अपाहिज आदमी, एक बीमार आदमी, एक मुरझाती हुई लाश और एक साधु। इन चार दृश्यों को देखकर सिद्धार्थ समझ गए कि सबका जन्म होता है, सबका बुढ़ापा आता है, सबको बीमारी होती है और एक दिन सबकी मौत होती है। उन्होंने अपना धनवान जीवन, जाति, पत्नी, बंधु सब को छोड़कर साधु का जीवन अपना लिया। ताकि वे जन्म, बुढ़ापे, दर्द, बीमारी और मौत के बारे में कोई उत्तर खोज पाएं।
सिद्धार्थ ने पांच ब्राह्मणों के साथ अपने प्रश्नों के उत्तर ढूंढने शुरू किए। वे उचित ध्यान पा गए, परंतु उन्हें उत्तर नहीं मिले। फिर उन्होंने तपस्या करने की कोशिश की। वे इस कार्य में भी प्रवीण निकले, अपने गुरुओं से भी ज्यादा, परंतु उन्हें अपने प्रश्नों के उत्तर फिर भी नहीं मिले। फिर उन्होंने कुछ साथी इकठ्ठे किए और चल दिए अधिक कठोर तपस्या करने।
ऐसा करते-करते छः वर्ष बाद भूख के कारण मरने के करीब से गुजर कर, बिना अपने प्रश्नों के उत्तर पाए, वे फिर कुछ और करने के बारे में सोचने लगे। इस समय, उन्हें अपने बचपन का एक पल याद आया जब उनके पिता खेत तैयार करना शुरू कर रहे थे। उस समय वे एक आनंद भरे ध्यान में पड़ गए थे और उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि समय स्थिर हो गया है। कठोर तपस्या छोड़कर उन्होंने आर्य अष्टांग मार्ग ढूंढ निकाला, जो बीच का मार्ग भी कहलाया जाता है।
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बौद्ध धर्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य का आर्य अष्टांग मार्ग है दुःख निरोध पाने का रास्ता। गौतम बुद्ध कहते थे कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए :
सम्यक संकल्प : मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना।
सम्यक वाक : हानिकारक बातें और झूठ न बोलना।
सम्यक कर्म : हानिकारक कर्म न करना।
सम्यक जीविका : कोई भी स्पष्टतः या अस्पष्टतः हानिकारक व्यापार न करना।
सम्यक प्रयास : अपने आप सुबौद्ध धर्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य का आर्य अष्टांग मार्ग है दुःख निरोध पाने का रास्ता।