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बुद्ध पूर्णिमा के समारोह व पूजा विधि

बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती

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वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं। यह गौतम बुद्ध की जयंती है और उनका निर्वाण दिवस भी। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी।

आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है।

इसी कारण बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं।

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गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहां उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई।

तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।

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बुद्ध पूर्णिमा के समारोह व पूजा विधि
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बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बुद्ध पूर्णिमा सबसे बड़ा त्योहार का दिन होता है। इस दिन अनेक प्रकार के समारोह आयोजित किए गए हैं। अलग-अलग देशों में वहां के रीति- रिवाजों और संस्कृति के अनुसार समारोह आयोजित होते हैं।

* श्रीलंकाई इस दिन को 'वेसाक' उत्सव के रूप में मनाते हैं जो 'वैशाख' शब्द का अपभ्रंश है।

* इस दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है।

* दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएं करते हैं।

* बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है।


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* मंदिरों व घरों में अगरबत्ती लगाई जाती है। मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाए जाते हैं और दीपक जलाकर पूजा की जाती है।

* बोधि वृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं पर हार व रंगीन पताकाएं सजाई जाती हैं। जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है। वृक्ष के आसपास दीपक जलाएं जाते हैं।

* इस दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है।

* पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता है।

* गरीबों को भोजन व वस्त्र दिए जाते हैं।

* दिल्ली संग्रहालय इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर निकालता है जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहां आकर प्रार्थना कर सकें।

* इस दिन मांसाहार का परहेज होता है क्योंकि बुद्ध पशु हिंसा के विरोधी थे


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