भगवान बुद्ध एक बार विचरते हुए वैशाली के वन-विहार में आए। नगर में उनके पहुंचने की खबर मिनटों में फैल गई और उनके दर्शन करने के लिए लोग वहां आने लगे। नगर के बड़े-बड़े श्रेष्ठिजन भी उनके दर्शन के लिए पहुंचे।
हर किसी की इच्छा थी कि तथागत उसका निमंत्रण स्वीकार करें और उसके घर भोजन करने के लिए पधारें। वैशाली की सबसे सुंदर और प्रतिष्ठित गणिका आम्रपाली भी बुद्धदेव के तपस्वी जीवन को देखकर प्रभावित हो चुकी थी तथा उसे अपने घृणित जीवन से घृणा हो चुकी थी।
बस क्या था, वह भी बुद्धदेव के पास निमंत्रण देने पहुच गई। उसने तथागत को निमंत्रण दिया और उन्होंने उसका निमंत्रण स्वीकार कर उसके घर हो भी आए। जब उनके शिष्यों को इस बात का पता चला तो उन्होंने बुरा मान कर उनसे स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने एक गणिका के घर जाकर बड़ा ही अनुचित कार्य किया है।
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अपने शिष्यों की बात सुनकर तथागत उन सबसे बोले, 'श्रावको! आप लोगों को आश्चर्य है कि मैंने गणिका के घर कैसे भोजन किया। उसका कारण यह है कि वह यद्यपि गणिका है किंतु उसने अपने को पश्चाताप की अग्नि में जलाकर निर्मल कर लिया है।
जिस धन को पाने के लिए मनुष्य मनौतियां करता है और न जाने क्या-क्या तरीके इस्तेमाल करता है, उसी को आम्रपाली ने तुच्छ मानकर लात मारी है और अपना घृणित जीवन त्याग दिया है। ऐसे में मैं उसका निमंत्रण कैसे अस्वीकार कर सकता था। आपलोग स्वयं सोचे कि क्या अब भी उसे हेय माना जाए?'
गौतम बुद्ध की बात सुनकर सभी शिष्यों को महसूस हुआ कि बुद्धदेव तो सही बात कर रहे हैं। इसलिए उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ और उन्होंने तथागत से क्षमा मांगी। तथागत ने भी अपने शिष्यों को माफ कर दिया।