Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(प्रतिपदा तिथि)
  • तिथि- मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00
  • व्रत/मुहूर्त- कार्तिक व्रत पारणा, सूर्य वृश्चिक संक्रांति
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

अँगुलिमाल

हमें फॉलो करें अँगुलिमाल
एक समय भगवान जेतवन में विहार कर रहे थे। उस समय राजा प्रसेनजित के राज्य में एक डाकू था अंगुलिमाल। बड़ा भयानक व खूँखार! मार-काट में बड़ा मजा आता उसको। दया का उसमें नाम नहीं था। उसने कितने ही ग्राम उजाड़कर साफ कर दिए थे।

भगवान श्रावस्ती में पिण्डचार करके उसी रास्ते चले, जहाँ डाकू अंगुलिमाल रहता था। ग्वालों ने, किसानों ने, राहगीरों ने भगवान से कहा- 'हे भंते! मत जाओ इस रास्ते से। अंगुलिमाल डाकू रहता है उधर। वह मनुष्यों को मारकर अँगुलियों की माला पहनता है।'

भगवान मौन धारण कर चलते रहे। कई बार रोकने पर भी वे चलते ही गए। अंगुलिमाल ने दूर से ही भगवान को आते देखा। सोचने लगा- आश्चर्य है! पचासों आदमी भी मिलकर चलते हैं तो मेरे हाथ में पड़ जाते हैं, पर यह श्रमण अकेला ही चला आ रहा है, मानो मेरा तिरस्कार ही करता आ रहा है। क्यों न इसे जान से मार दूँ?

ढाल-तलवार और तीर-धनुष लेकर वह भगवान की तरफ दौड़ पड़ा। फिर भी वह उन्हें नहीं पा सका। अंगुलिमाल सोचने लगा- आश्चर्य है! मैं दौड़ते हुए हाथी, घोड़े, रथ को पकड़ लेता हूँ, पर मामूली चाल से चलने वाले इस श्रमण को नहीं पकड़ पा रहा हूँ! बात क्या है। वह भगवान से बोला- खड़ा रह श्रमण!

इस पर भगवान बोले- मैं स्थित हूँ अँगुलिमाल! तू भी स्थित हो जा। अंगुलिमाल बोला- श्रमण! चलते हुए भी तू कहता है 'स्थित हूँ' और मुझ खड़े हुए को कहता है 'अस्थित'। भला यह तो बता कि तू कैसे स्थित है और मैं कैसे अस्थित?'

भगवान बुद्ध बोले- 'अंगुलिमाल! सारे प्राणियों के प्रति दंड छोड़ने से मैं सर्वदा स्थित हूँ। तू प्राणियों में असंयमी है। इसलिए तू अस्थित है।' अंगुलिमाल पर भगवान की बातों का असर पड़ा। उसने निश्चय किया कि मैं चरकाल के पापों को छोड़ँूगा।

उसने अपनी तलवार व हथियार खोह, प्रपात और नाले में फेंक दिए। भगवान के चरणों की वंदना की और उनके प्रव्रज्या माँगी। 'आ भिक्षु!' कहकर भगवान ने उसे दीक्षा दी।

अंगुलिमाल पात्र-चीवर ले श्रावस्ती में भिक्षा के लिए निकला। किसी का फेंका ढेला उसके शरीर पर लगा। दूसरे का फेंका डंडा उसके शरीर पर लगा। तीसरे का फेंका ढेला कंकड़ उसके शरीर पर लगा। बहते खून, फटे सिर, टूटे पात्र, फटी संघाटी के साथ अंगुलिमाल भगवान के पास पहुँचा। उन्होंने दूर से कहा- 'ब्राह्मण! तूने कबूल कर लिया। जिस कर्मफल के लिए तुझे हजारों वर्ष नरक में पचना पड़ता, उसे तू इसी जन्म में भोग रहा है।

अँगुलिमाल ने एकांत में ध्यानावस्थित हो अनंत शांति और सुख का अनुभव किया। उसने कहा- 'तथागत द्वारा बिना दंड, बिना शस्त्र के ही मैं दमन किया गया हूँ। पहले मैं हिंसक था, आज अहिंसक हूँ। बुद्ध ने मुझे शरण दी, मेरा भवजाल सिमट गया।'

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi