एक दिन सिद्धार्थ बगीचे में घूमने के लिए घर से निकले। कड़ा पहरा होने पर भी पता नहीं कैसे, कुछ लोग मुर्दे को उठाकर ले जाते दिखाई दिए। मुर्दा कपड़े में लिपटा और डोरियों से बंधा था। मरने वाले के संबंधी जोर-जोर से रो रहे थे। उसकी पत्नी छाती पीट-पीटकर रो रही थी। उसकी मां और बहनों का बुरा हाल था।
राजकुमार ने सारथी से इस रोने-पीटने का कारण पूछा।
उसने बताया कि जिस कपड़े में लपेटकर और डोरियों से बांधकर चार जने उठाकर चल रहे हैं, यह मर गया है। रोने वाले इसके संबंधी हैं। इसे श्मशान में जला दिया जाएगा।
यह सुनकर राजकुमार के चेहरे पर गहरी उदासी छा गई। उसने पूछा, यह मर क्यों गया?'
सारथी ने कहा, 'एक न एक दिन सभी को मरना है। मौत से आज तक कौन बचा है।'
राजकुमार ने सारथी को रथ लौटाने की आज्ञा दी। राजा ने सारथी से जल्दी लौट आने का कारण पूछा। सारथी ने सारी बातें बता दी।
राजा ने पहरा और बढ़ा दिया। चौथी बार बगीचे में घूमने जाते हुए राजकुमार ने एक संन्यासी को देखा। उसने भली प्रकार गेरुआ वस्त्र पहने हुए थे। उसका चेहरा तेज से दमक रहा था। वह आनंद में मग्न चला जा रहा था।