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आज के शुभ मुहूर्त

(बैकुंठ चतुर्दशी)
  • तिथि- कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी/चतुर्दशी-(क्षय)
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30, 12:20 से 3:30, 5:00 से 6:30 तक
  • व्रत/मुहूर्त-बैकुंठ चतुर्दशी/पंचक समाप्त/मूल समाप्त
  • राहुकाल-दोप. 1:30 से 3:00 बजे तक
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वे 4 घटनाएं जिससे बदल गया गौतम बुद्ध का जीवन

हमें फॉलो करें वे 4 घटनाएं जिससे बदल गया गौतम बुद्ध का जीवन
भगवान बुद्ध का जीवन और उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं। बुद्ध के प्रेरणादायक जीवनदर्शन का जन-जीवन पर अमिट प्रभाव रहा है। आइए जानते हैं वे कौन-सी चार छटनाएं थी, जो सिद्धार्थ को संसार में बांधकर न रख सकीं। आइए जानें... 
 
1. वसंत ऋतु में एक दिन सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले। उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। उसके दांत टूट हुए थे। बाल पक गए थे, शरीर टेढ़ा-मेढ़ा हो गया था। हाथ में लाठी पकड़े धीरे-धीरे कांपता हुआ वह सड़क पर चल रहा था। 
 
2. दूसरी बार सिद्धार्थ कुमार जब बगीचे की सैर पर निकले, तो उनकी आंखों के आगे एक रोगी आ गया। उसकी सांस तेजी से चल रही थी। कंधे ढीले पड़ गए थे। बांहें सूख गई थीं। पेट फूल गया था। चेहरा पीला पड़ गया था। दूसरे के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था। 
 
3. तीसरी बार सिद्धार्थ को एक अर्थी मिली। चार आदमी उसे उठाकर लिए जा रहे थे। पीछे-पीछे बहुत से लोग थे। कोई रो रहा था, कोई छाती पीट रहा था, कोई अपने बाल नोच रहा था। इन दृश्यों ने सिद्धार्थ को बहुत विचलित किया। 
 
4. चौथी बार सिद्धार्थ बगीचे की सैर को निकला, तो उसे एक संन्यासी दिखाई पड़ा। संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त प्रसन्नचित्त संन्यासी ने सिद्धार्थ को आकृष्ट किया। 
 
उन्होंने सोचा- ‘धिक्कार है जवानी को, जो जीवन को सोख लेती है। धिक्कार है स्वास्थ्य को, जो शरीर को नष्ट कर देता है। धिक्कार है जीवन को, जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर देता है।

क्या बुढ़ापा, बीमारी और मौत सदा इसी तरह होती रहेगी सौम्य? उन्हें प्रसन्नचित्त संन्यासी ने आकृष्ट किया और वे संसार के मोह-बंधन से मुक्त होकर त्याग के रास्ते पर निकल गए और घोर तपस्या करके बुद्धत्व को प्राप्त किया।


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