सरकार की बहुचर्चित विशेष आर्थिक जोन (सेज) नीति से सरकार के राजस्व घाटे के दबाव में आने का खतरा है और अगर ऐसा हुआ तो नीति को बदलना पड़ सकता है। यह बदलाव नीति में दी जाने वाली आकर्षक छूटों के संदर्भ में होगा।
ब्रोकरेज एवं निवेश बैंकिंग फर्म सीएलएसए के एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला गया है। इसमें कहा गया है कि सेज को दिए जाने वाले कर प्रोत्साहनों के कारण सरकार के कुल कर संग्रहण में चार से पाँच प्रतिशत की कमी हो सकती है।
इसके अनुसार सेज नीति का अभी पूरी तरह परीक्षण होना है। विशेषकर कर राजस्व पर संभावित असर और विभिन्न क्षेत्रों में असमानता बढ़ाने के मामले में। इससे नीति की समीक्षा की जरूरत हो सकती है।
अध्ययन में कहा गया है कि चूँकि सरकार की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है तो सेज के कारण कर राजस्व घाटा मुख्य चिंता का विषय है।
इसमें कहा गया है कि कर प्राप्तियाँ बढ़ रही हैं लेकिन वित्तीय घाटा कम हो रहा है। ऐसे में भारत सेज में निर्यात कारोबार वृद्धि से कर आय में कमी को वहन नहीं कर सकता। वहीं वाणिज्य विभाग के बचाव में उनका कहना है कि उचित कर रियायतों के बिना डेवलपर निवेश नहीं करेंगे।