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उम्मीद पर खरे उतरे लालू

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-अवधेश कुमार

'गोल पर गोल दाग रहे हैं हम हर मैच में, बच्चा-बच्चा बोले चक दे रेल।' रेलमंत्री लालूप्रसाद यादव ने अपनी विशेष शैली में जब बजट भाषण के पूर्वार्द्ध में यह तुकबंदी सुनाई तो सदन स्वाभाविक ही ठहाकों से गूँज उठा। लेकिन जैसे-जैसे रेलगाड़ी के समान उनका बजट भाषण आगे बढ़ता गया, उपलब्धियों, लोकाकर्षक घोषणाओं, ठोस योजनाओं के एक पर एक चमचमाते डिब्बे सामने आने लगे। कुछ घोषणाएँ तो ऐसी थीं, जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी।

आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए सभी पूर्व आकलनों में यह कहा गया था कि इस बार वे बजट गाड़ी से वोट खींचने वाली घोषणाएँ लेकर उतरेंगे। ऐसी कुछ घोषणाएँ लेकर वे लोकसभा में पहुँचे भी। मसलन, स्लीपर से लेकर प्रथम श्रेणी वातानुकूलित तक के किराए में कटौती, 60 वर्ष से ऊपर की उम्र की महिलाओं के लिए टिकट दर में 30 प्रतिशत की जगह 50 प्रतिशत की कटौती, ग्रेज्युएशन तक छात्राओं को मुफ्त पास, माँ-शिशु रेल की शुरुआत, माल भाड़े में कमी, लाइसेंसधारी कुलियों को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी बनाना, रेलवे सुरक्षा बलों में महिलाओं के लिए सिपाही पद के लिए पाँच तथा उप निरीक्षक स्तर पर 10 प्रतिशत का आरक्षण आदि आदि...।

इन्हें हम लोकलुभावन घोषणाओं की श्रेणी में रख सकते हैं। प्रत्यक्ष किराया बढ़ाए बिना रेलवे को मुनाफे में लाना लालू यादव का ऐसा ब्रांड बन गया है जिसकी ओर दुनिया भर का ध्यान आया है। इस एक चमत्कार के कारण देहाती, गँवारू लालू यादव दुनिया भर के विश्वविद्यालयों से लेकर प्रबंधन संस्थानों तक की नजर में विशिष्ट सीईओ की छवि पा चुके हैं। इस ब्रांड को वे तो क्या कोई भी गँवाना नहीं चाहेगा। इसलिए उन्होंने लगातार पाँच वर्षों तक किराया न बढ़ाने वाले रेलमंत्री का रिकॉर्ड किराया घटाकर कायम कर दिया है।

रेलवे की प्रगति के संदर्भ में सबसे पहला स्थान यात्रियों की सुविधा, उनकी सुरक्षा एवं संरक्षा का आता है। पिछले चार वर्षों में यद्यपि लालू यादव ने घोषणाएँ अवश्य कीं, लेकिन कम से कम खान-पान एवं साफ-सफाई के मामले में यात्री हाशिए पर ही दिखते रहे हैं। इसे लालू के समर्थक भी स्वीकार करते हैं। खान-पान के मामले में तो विशेष घोषणा नहीं है, लेकिन सफाई के लिए विशेषज्ञ एजेंसियों की सेवाएँ लेने से सुधार की उम्मीद की जा सकती ह

हालाँकि इससे रेलवे की एक और सेवा बाहरी हाथों में जाएगी किंतु बाजार की गति ऐसी ही होती है। देशभर में एक नंबर पर सभी रेलों की अद्यतन स्थिति की सूचना, चारों ओर टिकट वेंडिंग मशीनें एवं काउंटरों की सुविधा एवं मोबाइल तक से टिकट उपलब्ध कराने की व्यवस्थाओं में आधुनिक तकनीक के व्यापक प्रयोग की सोच का अंतिम लक्ष्य तो यात्रियों को ही सहूलियत पहुँचाना है।

चाहे स्टेशनों पर इस्कैलेटर लगाने की योजना हो या फुट ओवरब्रिज बनाने की, अंततः लक्ष्य तो यात्रियों की सुविधा ही है। संरक्षा के आँकड़े सुधार की तस्वीर पेश करते हैं। पिछले वर्ष केवल 195 दुर्घटनाएँ हुईं, जो कि 2001 के 473 तथा 2006-07 के 243 के मुकाबले काफी कम हैं। वस्तुतः दुर्घटनाओं में सतत कमी आ रही है।

हालाँकि इसमें 2001 में निर्मित 17 हजार करोड़ रुपए के सुरक्षा राजस्व कोष का महत्वपूर्ण योगदान है, पर लालू यादव के कार्यकाल में इस पर पर्याप्त ध्यान दिया गया, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। स्वचालित सिग्नलों से लेकर भारी संख्या में रेलवे पटरियों को बदलने का काम हुआ है जो अभी भी जारी है। 16,538 किमी पुरानी रेल लाइनों को बदला जा चुका है।

रेल सुरक्षा बलों की रिक्तियों को विशेष अभियान के तहत भरने तथा उन्हें आधुनिकतम तकनीक उपलब्ध कराकर उनकी कार्यशैली को समय के अनुकूल बनाने की घोषणा का लाभ मिलेगा ऐसा माना जा सकता है। रेल डिब्बों का केवल स्टील से निर्माण एवं उसे आधुनिकतम स्वरूप देने की योजना भी रेलवे की तस्वीर बदलने वाली साबित होगी।

इसी प्रकार फ्रेट कॉरिडोर का निर्माण काम 7 साल में पूरा करने, बंदरगाहों को हाईस्पीड कॉरिडोर से जोड़ने, मालगाड़ियों की संख्या बढ़ाने के साथ स्टील से निर्मित डिब्बों की क्षमता में 22 प्रतिशत की वृद्वि से माल लदान का वजन तो बढ़ेगा ही उसका संरक्षण भी बेहतर होगा।

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