चुनाव के परिप्रेक्ष्य में वित्तमंत्री पी. चिदंबरम द्वारा प्रस्तुत बजट को न तो आर्थिक वृद्धि दर में तेजी लाने वाला कहा जा सकता है और न ही वैश्विक मंदी के परिदृश्य में उद्योगों को प्रोत्साहन देने वाला। निवेश की वृद्धि के लिए भी इसमें विशेष कुछ नहीं है।
उद्योग चाहते थे कि एफबीटी टैक्स रद्द कर दें एवं आयकर पर लगे अधिभार को समाप्त करें, किंतु वित्तमंत्री ने वैसा कुछ नहीं किया और न कंपनी कर की दर घटाई। जिन उद्योगों के कामकाज में धीमापन आ रहा था उनमें से दवा व ऑटो उद्योग को जरूर कुछ राहत मिली है।
दूसरी ओर वित्तमंत्री ने ऋण बाजार या बॉण्ड बाजार को बढ़ावा देने की पेशकश की, किंतु शेयर बाजार में तेजी के आकर्षण को कुछ घटा दिया क्योंकि एक ओर उन्होंने अल्प अवधि लाभ कर को 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दिया एवं डे ट्रेडरों की लागत बढ़ा दी। शेयर बाजार में सिक्यूरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स के समान कमोडिटी एक्सचेंज के कामकाज पर भी यह टैक्स लगा दिया है।
वर्ष 2008-09 के बजट के संबंध में प्रारंभिक प्रतिक्रिया यही थी कि वित्तमंत्री ने सरकार का पूरा खजाना लुटा दिया, क्योंकि उन्होंने गरीब किसानों पर बैंकों व सहकारी बैंकों के कर्ज माफ कर दिए, वहीं ग्रामीण सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों जैसे जनस्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, सड़कों आदि के लिए भारी-भरकम प्रावधान की घोषणा की है।
बजट के अनुसार किसानों के करीब 80 हजार करोड़ रु. के कर्ज माफ किए जाएँगे। इसी तरह प्रत्यक्ष करों में 5,900 करोड़ रु. की राहतें भी दी गई हैं। वर्ष 2008-09 में सरकार का राजस्व व्यय 6 लाख 58 हजार करोड़ रु. है- इसे देखते हुए वित्तमंत्री ने कृषि क्षेत्र के लिए जो घोषणाएँ की हैं, वे महत्वपूर्ण हैं।
यह सही है कि कृषि क्षेत्र भी रोजगार देने वाला देश की अर्थव्यवस्था का मुख्य हिस्सा है। जिस तरह उद्योगों को बढ़ावा दिया जाता है उसी तरह कृषि क्षेत्र में भी निवेश व उत्पादकता बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में अच्छा उठाव लाया जा सकता है। फिर विश्व बाजार में खाद्यान्नों के भाव आसमान पर हैं और देश को गेहूँ, दालें, चावल, तिलहन व खाद्य तेल आदि भारी मात्रा में आयात करना पड़ता है। इसी परिप्रेक्ष्य में वित्तमंत्री के बजट का विश्लेषण करने पर ही बजट सकारात्मक ठहराया जा सकता है।
फिर दलील यह भी दी जा सकती है कि अगर गाँवों पर अधिक खर्च होगा तो गाँवों की प्रवाहिता में वृद्धि होगी। इस वृद्धि से औद्योगिक उत्पादों की माँग बढ़ेगी, उद्योगों के कच्चे माल की परेशानी कम होगी। किंतु सही परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो बजट में कमजोर कृषकों के जो 80 हजार करोड़ रु. माफ किए हैं उससे गाँवों की प्रवाहिता में कोई वृद्धि नहीं होगी और न ही सरकार के खजाने पर भार पड़ेगा, क्योंकि ये कर्ज व्यावसायिक व सहकारी बैंकों ने दिए हैं, इससे उनकी आस्तियाँ घटेंगी।
सरकार बैंकों को 80 हजार करोड़ रु. के बॉण्ड (20 से 25 वर्ष की परिपक्वता अवधि वाले) जारी कर देगी और संभवतया वे बैंकों के एसएलआर के हिस्से होंगे। फिर सरकार इन बॉण्डों पर आठ प्रतिशत से कम का जो ब्याज देगी, इसी ब्याज का भार खजाने पर पड़ेगा।
दूसरी बात यह है कि कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के लिए वित्तमंत्री ने भरपूर प्रावधान जरूर किया है, किंतु इन पर अमल की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की रहेगी। अधिकतर राज्य सरकारें पूरे प्रावधान को अमल में नहीं ला सकेंगी, इससे ग्रामीण व कृषि क्षेत्र को जो लाभ पहुँचना चाहिए वह नहीं पहुँचेगा।
वास्तव में आज आम नागरिकों की सबसे बड़ी माँग यह है कि महँगाई व बैंक ब्याज दर को कम किया जाए, क्योंकि उन्हें जीडीपी की आकर्षक वृद्धि दर से कोई मतलब नहीं है। वैसे अब देश में महँगाई व बैंक ब्याज दर बाहरी कारणों से अधिक प्रभावित है, इसलिए वित्तमंत्री कुछ विशेष नहीं कर सकते, सिवाय खाद्यान्नों का आयात बढ़ाने के। किंतु जब विदेशों में खाद्यान्नों के भाव आसमान पर हों, देश में गेहूँ, दालें, चावल, तिलहन, खाद्य तेल आदि के भाव कैसे घट सकते हैं? सरकार तो केवल इनका आयात बढ़ाकर आपूर्ति में सुधार ला सकती है। यही हाल पेट्रोल-डीजल का है।
इसी तरह बैंक ब्याज दर भी बाहरी कारणों से प्रभावित है। भारतीय रिजर्व बैंक तो केवल अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ाने या घटाने का निर्णय ले सकती है। रिजर्व बैंक चाहता है कि देश में डॉलर की आवक बढ़े ताकि चालू खाते के घाटे की पूर्ति होती रहे।
इस तरह यह बजट न तो चमत्कारिक है और न ही नवोन्मेषी। यह स्वप्नदर्शी बजट भी नहीं है, क्योंकि अभी भी एसईझेड की नीति अस्पष्ट है, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को बढ़ावा देने की नीति का अभाव है। यहाँ तक कि विदेशी पूँजी बाजार में सस्ते कर्जों का लाभ उठाने के लिए ईसीबी (विदेशी व्यावसायिक कर्ज) पर भी रोक लगी हुई है। रिटेल व रियल-एस्टेट में विदेशी निवेश पर इक्विटी आधारित प्रतिबंध जारी है।
बुनियादी संरचना क्षेत्र एवं टेलीकॉम क्षेत्र को कोई खास बढ़ावा नहीं दिया गया है। करों में 5000 करोड़ की रियायत कोई मायने नहीं रखती वह भी तब अतिरिक्त कर से राजस्व पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। इसलिए इस बजट को साहसिक भी नहीं कहा जा सकता। वैसे भी एक या दो हैक्टेयर वाले किसानों में संपन्न किसानों के पुत्र ही अधिक लाभान्वित होंगे एवं गरीब किसानों को अधिकारी ठीक से ढूँढ ही नहीं पाएँगे।