मिट्टी में मिला सस्ती सीमेंट का वादा
बजट में घोषणा तो कर दी, लेकिन अमल से आँखें फेर लीं
पिछले बजट में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा आम जनता को दिखाया गया सस्ती सीमेंट का सपना गीली मिट्टी साबित हुआ। सीमेंट कंपनियों द्वारा दी गई ऊँची लागत की दलील के आगे सरकार नतमस्तक हो गई। छला गया आम आदमी चुनावी बजट में एक बार फिर सस्ती सीमेंट की आस लगाए बैठा है।
पिछले बजट में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा की गई घोषणा के अनुसार कंपनियाँ यदि सीमेंट का प्रति बोरी अधिकतम खुदरा मूल्य 190 रु. तक या इससे कम रखती हैं तो उसे प्रति टन 400 रु. उत्पाद शुल्क देना होता। यदि कंपनियाँ प्रति बोरी सीमेंट 190 रु. से ऊपर कीमत रखती हैं तो उसे 600 रु. प्रति टन के हिसाब से उत्पाद शुल्क देना होगा।
एक तरह से सरकार ने कम उत्पाद शुल्क का प्रलोभन देकर 'भैंस को खेत की रखवाली' के लिए तैनात करने की तरह कंपनियों से कह दिया कि कीमतें कम रखें और कम उत्पाद शुल्क का लाभ उठाएँ।
बहरहाल, कंपनियों ने लागत ऊँची पड़ने की दलील देकर सरकार के वादे से पिंड छुड़ा लिया। बाद में सरकार ने सस्ती सीमेंट मुहैया कराने के लिए पाकिस्तान से कुछ मात्रा में सीमेंट का आयात भी किया, लेकिन पहले ही सबसिडी के बोझ तले दबी सरकार को आयात भी महँगा पड़ने के कारण वह इसे ज्यादा आगे जारी नहीं रख सकी।
अंततः कंपनियाँ ऊँचे दाम पर ही सीमेंट बेचती रहीं। सभी ब्रांड्स की सीमेंट महाराष्ट्र और गुजरात में 240 से 245 रु. तक बिकी, जबकि इंदौर में 208 से 210 रु. प्रति बोरी बिक रही है।
मुद्दे की बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम में प्रभावित कौन हुआ- आम आदमी। कंपनियों ने तो दाम ऊँचा ही रखा, उसने स्टॉकिस्टों को ऊँची कीमत पर बिलिंग किया। स्टॉकिस्टों ने उपभोक्ता से ऊँचा दाम लिया। सस्ती सीमेंट के बारे में जेपी सीमेंट के आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि लागत अधिक पड़ने के कारण हम सीमेंट की कीमतें 190 रु. प्रति बोरी या इससे नीचे नहीं रख सके।