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तेल मंत्रालय शुल्क कटौती के पक्ष में

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नई दिल्ली , बुधवार, 23 फ़रवरी 2011 (20:54 IST)
पेट्रोलियम मंत्रालय को उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के बढ़ते दाम और तेल कंपनियों पर बढ़ते कम वसूली के बोझ को हल्का करने के लिए आगामी बजट में पेट्रोलियम पदार्थों पर उत्पाद एवं सीमा शुल्क में कटौती की जाएगी।

तेल मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार ‘लीबिया में जारी संकट के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल मूल्यों के दाम बढ़ने का मतलब पेट्रोलियम पदार्थों के घरेलू खुदरा बिक्री मूल्य और आयातित मूल्य के बीच फासले में और वृद्धि होना है। यह स्थिति सरकार और तेल कंपनियों के लिए व्यावहारिक नहीं है।

बहरहाल, अंतरराष्ट्रीय बाजार से कच्चे तेल का भारतीय खरीद मूल्य कल ही 105.05 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गया, जिससे विभिन्न पेट्रोलियम पदार्थों के दाम में वृद्धि जरूरी हो गई है। अधिकारी ने कहा कि संसद सत्र चल रहा है, ऐसे में सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने के बावजूद मुझे नहीं लगता कि पेट्रोल के दाम भी बढ़ाए जा सकते हैं। इसके अलावा ‘पेट्रोलियम पदार्थों' के दाम बढ़ने की सूरत में मुद्रास्फीति बढ़ने की भी चिंता है।’

सरकार ने पिछले साल जून में पेट्रोल को सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त कर दिया था। तब से इसके दाम कई बार बढ़ाए जा चुके हैं। जनवरी में आखिरी बार पेट्रोल के दाम ढाई रुपए लीटर बढ़ाए गए। मौजूदा खुदरा दाम पर भी इसमें ढाई से पौने तीन रुपए तक का नुकसान हो रहा है। डीजल में सरकारी तेल कंपनियों को रिकॉर्ड 10.74 रुपए लीटर का नुकसान हो रहा है जबकि मिट्टी तेल में 21.60 रुपए लीटर और घरेलू रसोई गैस सिलेंडर पर 356.07 रुपए प्रति सिलेंडर का नुकसान हो रहा है।

अधिकारी का कहना है कि यदि कीमत नहीं बढ़ाई जा सकती है तो इसके बाद सबसे बेहतर विकल्प यही है कि सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क कम किए जाएँ। इससे बिना दाम बढ़ाए कंपनियों के बोझ को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। तेल मंत्रालय चाहता है कि सोमवार को पेश होने वाले बजट में कच्चे तेल पर सीमा शुल्क यानी आयात शुल्क को मौजूदा पाँच प्रतिशत से घटाकर शून्य कर दिया जाए और डीजल पर इसे 7.5 प्रतिशत से घटाकर फिर से ढाई प्रतिशत कर दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही विशिष्ट उत्पाद शुल्क में भी कमी लाई जानी चाहिए। (भाषा)

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