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ऐसे चली थी प्रथम रेल

भारतीय रेल का सफरनामा

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, शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011 (14:21 IST)
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पूरी दुनिया में परिवहन के लिए किसी सस्ते और तेज गति के साधन की जरूरत कई वर्षों से महसूस की जा रही थी। इसी क्रम में जॉर्ज स्टीफेंसन ने 1814 में भाप का इंजन बनाया, जो शक्तिशाली तो था ही, साथ ही अपने से भारी वस्तुओं को खींचने में भी सक्षम था। यह यातायात का एक सस्ता साधन था। कोयले और भाप के इंजन ने औद्योगिक क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

27 सितंबर 1825 को भाप इंजन की सहायता से 38 रेल डिब्बों को खींचा गया जिनमें 600 यात्री सवार थे। इस पहली रेलगाड़ी ने लंदन के डार्लिंगटन से स्टॉकटोन तक का 37 मील का सफर 14 मील प्रति घंटे की रफ्तार से तय किया। इस घटना के बाद अनेक देश रेल के इंजन और डिब्बे बनाने में जुट गए।

भारत में रेल के संचालन में मद्रास के सिविल इंजीनियर एपी कॉटन का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 1845 में कलकत्ता में ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेल कंपनी की स्थापना हुई। 1850 में इस कंपनी ने मुंबई से ठाणे तक रेल लाइन बिछाने का काम शुरू किया। एशिया और भारत में प्रथम रेल यात्रा 16 अप्रैल 1853 को दोपहर 3.30 बजे बोरीबंदर (छत्रपति शिवाजी टर्मिनस) से प्रारंभ हुई। रेलगाड़ी को ब्रिटेन से मँगवाए गए तीन भाप इंजन सुल्तान, सिंधु और साहिब ने खींचा। 20 डिब्बों में 400 यात्रियों को लेकर यह गाड़ी रवाना हुई। इस रेलगाड़ी ने 34 किलोमीटर का सफर सवा घंटे में तय किया और सायं 4.45 बजे ठाणे पहुँची।

भारत में 1856 में भाप के इंजन बनना शुरू हुए। इसके बाद धीरे-धीरे रेल की पटरियाँ बिछाई गईं। पहले नैरोगेज पर रेल चली, उसके बाद मीटरगेज और ब्रॉडगेज लाइन बिछाई गई। 1 मार्च 1969 को देश की पहली सुपरफास्ट ट्रेन ब्रॉडगेज लाइन पर दिल्ली से हावड़ा के बीच चलाई गई। इसका नाम राजधानी एक्सप्रेस रखा गया। 15 नवंबर 1985 को दिल्ली में भारत का सर्वप्रथम कम्प्यूटरीकृत आरक्षण केंद्र स्थापित हुआ। 2003 में दिल्ली-अमृतसर शताब्दी एक्सप्रेस को परीक्षण के तौर पर बायोडीजल से चलाया गया।

इस प्रकार समय-समय पर हुए अनेक परिवर्तनों के बाद रेल का जो सफर 1853 को प्रारंभ हुआ, वह अब विश्व में द्वितीय तथा एशिया में पहले स्थान पर आ चुका है।

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