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बजट को लेकर सरकार पर दबाव

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नई दिल्ली , बुधवार, 20 फ़रवरी 2013 (23:25 IST)
नई दिल्ली। केन्द्र की कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार पर अगले वर्ष होने वाले आम चुनाव से पहले अपने अंतिम बजट को लोकलुभावन बनाने का भारी दबाव है। ऐसे में बढ़ते घाटे पर अंकुश लगाने और शिथिल अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए उसे काफी माथापच्ची करनी पड़ रही है। बजट में घोषित होने वाले आर्थिक कदमों के आधार पर ही आगे की राजनीतिक तस्वीर साफ होगी।

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार बजट में सख्त वित्तीय उपाय कर सकती है। माना जा रहा है कि जनकल्याण योजनाओं के लिए इस बार नया आवंटन नहीं किया जा सकेगा। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि नए बजट में इन योजनाओं के लिए अलग से खर्च आवंटन नहीं किया जाएगा, बल्कि पहले से जो प्रावधान किए गए हैं, उन्हीं को कायम रखा जाएगा।

जनकल्याण योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन का स्तर पिछले वित्त वर्ष के स्तर पर ही सीमित रखे जाने की पूरी संभावना है। जिन योजनाओं को मौजूदा वर्ष के अंत तक पूरा किया जाना है, उनके लिए खर्च की मदों में मामूली वृद्धि की जा सकती है। माना जा रहा है कि स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि क्षेत्र की मदों में महज इकाई अंक की बढ़ोतरी की जाएगी।

यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि सरकार ऐसी व्यवस्था के जरिए आर्थिक स्थायित्व बनाने की कोशिश करेगी। बजट तैयार करने में लगे वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम आम लोगों की इच्छाओं को पूरा करते हुए विकास को गति देने और निवेश बढ़ाने के उपाय करने के बीच संतुलन बनाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं।

चिदम्बरम के बारे में कहा जाता है कि वे हर कदम बहुत सोच-समझकर उठाते हैं और कोई निर्णय लेने के बाद उससे पीछे हटने में भरोसा नहीं रखते हैं। संसद में अगले सप्ताह पेश किए जाने वाले वित्त वर्ष 2013-14 के आम बजट पर आम लोगों के साथ ही बाजार की भी नजर टिकी हुई है।

आम लोग आवास ऋण ब्याज पर कर छूट की सीमा दो लाख रुपए तक बढ़ने की आस लगाए हुए हैं। उन्हें विभिन्न प्रकार के उत्पाद और दूसरे शुल्कों में भी कमी होने की उम्मीद है ताकि उन्हें मंहगाई से कुछ राहत मिल सके। लोग बढ़ती महंगाई से राहत की उम्मीद लगाए हैं तो दूसरी तरफ वेतनभोगियों को आयकर की सीमा बढ़कर तीन लाख रुपए होने की आस है।

महंगाई पर नियंत्रण और औद्योगिक उत्पादन में आई गिरावट को कम किया जाना समय की सबसे बड़ी जरूरत है। ऐसे मे खर्चों में कटौती जरूरी है लेकिन विज्ञान, प्रौद्योगिकी और आधारभूत ढांचा क्षेत्र जैसे कुछ क्षेत्रों में बजटीय आवंटन में बढ़ोतरी हो सकती है। कृषि क्षेत्र के विकास में आ रही सुस्ती के मद्देनजर इसमें भी सुधार के उपाय किए जाने की उम्मीद है। किसान एक बार फिर ॠण माफी की आस लगाए बैठे हैं।

कृषि मंत्रालय ने देश में कृषि की विकास दर 3.5 प्रतिशत से बढ़ाकर चार प्रतिशत का लक्ष्य हासिल करने के लिए बजट में ज्यादा आवंटन की मांग की है। पिछले बजट में दस अरब रुपए के आवंटन से शुरू की गई पूर्वोत्तर में हरित क्रांति योजना बेहद सफल रही है। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि आगामी वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र के लिए आवंटन बढ़ सकता है।

सरकार के लिए विनिर्माण गतिविधियों और निर्यात में जारी कर शिथिलता के कारण कर संग्रह लक्ष्य को हासिल करने में आ रही मुश्किलों को दूर करने और प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) को लागू करने के साथ ही वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करना बड़ी चुनौती बन गई है।

वित्तमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि राज्यों के बीच आम सहमति बनने पर वे बजट में जीएसटी के बारे में घोषणा करेंगे। जीएसटी के लागू होने पर सरकार के कर संग्रह में बढ़ोतरी होने के साथ ही विभिन्न प्रकार के करों में व्यापक सुधार की उम्मीद की जा रही है।

सरकार के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती आय और व्यय के बीच के अंतर को पाटने की है। वर्ष 2016-17 तक इसे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य रखा गया है। तब तक प्रत्येक वित्त वर्ष में इसमें 0.6 प्रतिशत की कमी लाने की घोषणा सरकार पहले ही कर चुकी है, लेकिन आय में बढ़ोतरी या व्यय में कमी के बगैर यह संभव नहीं दिख रहा है।

हालांकि सरकार प्रत्येक वर्ष सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर और सब्सिडी को कम करके व्यय को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है लेकिन इन सभी उपायों की एक सीमा है और इससे आगे बढ़ना सरकार के लिए मुश्किल कदम है।

सरकार डीजल सब्सिडी की भरपाई करने के उपाय तो कर चुकी है और रसोई गैस सिलेंडरों की संख्या सीमित कर इस पर सब्सिडी के भार को कम करने का उसने प्रयास भी किया है लेकिन कुछ क्षेत्रों की सब्सिडी को कम करना या समाप्त करना उसके लिए बहुत कठिन है।

विनिर्माण गतिविधियों और निर्यात में सुस्ती के मद्देनजर विभिन्न औद्योगिक संगठनों ने भी सरकार से इस क्षेत्र को प्रोत्साहन देने की अपील की है। देश में कारों की बिक्री चालू वित्त वर्ष में एक दशक के न्यूनतम स्तर पर पहुंचने की आशंका जताई जा रही है।

सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) ने सरकार से उत्पादन शुल्क को कम कर वर्ष 2010 के स्तर पर लाने का आग्रह किया है। इस्पात और रबर सहित विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की कीमतों में आई तेजी से कंपनियों को वाहनों की कीमतें बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

देश के प्रमुख औद्योगिक संगठन भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने औद्योगिक गतिविधियों में तेजी लाने और विनिर्माण क्षेत्र को फिर से पटरी पर लाने के लिए सरकार से बजट में उपाय करने, देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लघु एवं मध्यम उद्यम (एसएमई) के लिए न्यूनतम वैकल्पिक कर व्यवस्था के प्रावधान को वापस लेने और इस क्षेत्र के विकास में आ रही बाधाओं को दूर करने का भी आग्रह किया है। (वार्ता)

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