नई दिल्ली। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र के सरकार और विपक्ष के बीच तनातनी के चलते हंगामेदार रहने की संभावना है।
बजट सत्र का पहला चरण 31 जनवरी को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति के अभिभाषण के साथ शुरू होगा। उसी दिन आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया जायेगा और एक फरवरी को आम बजट पेश होगा। इस बार बजट सत्र परंपरा से हटकर लगभग तीन सप्ताह पहले बुलाया गया है।
सरकार ने यह दलील देते हुए बजट सत्र का समय बदला है कि बजट पारित होने में मई तक का समय लग जाता है और इस देरी के कारण बजट के कई प्रावधान वित्त वर्ष की शुरूआत से ही लागू नहीं हो पाते। कुछ प्रावधान तो सितम्बर में लागू होते हैं जिसके कारण परियोजनाओं और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में देरी हो जाती है। इसे देखते हुए इस बार बजट फरवरी के आखिर के बजाय एक तारीख को ही पेश कर दिया जाएगा ताकि इसे 31 मार्च से पहले पारित किया जा सके।
विपक्ष बजट सत्र पहले बुलाए जाने का विरोध करता रहा है। कई दलों का कहना है कि बजट संबंधी विभिन्न आंकड़े समय पर नहीं आ पाएंगे जिसके कारण अगले वित्त वर्ष का बजट जल्दी पारित कराना ठीक नहीं होगा। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को देखते हुए भी विपक्षी दल बजट जल्दी पेश करने का विरोध कर रहे हैं।
उन्होंने इस संबंध मे चुनाव आयोग और राष्ट्रपति भवन का दरवाजा भी खटखटाया था। लेकिन आयोग ने सरकार को इस शर्त के साथ बजट पेश करने की मंजूरी दे दी है कि इसमें चुनाव वाले राज्यों के बारे में कोई लोकलुभावन घोषणा न की जाए। अब विपक्षी दल इस मुद्दे को संसद में जोर शोर से उठाने की तैयारी में हैं।
इस बार का आम बजट इस दृष्टि से भी अलग होगा कि इसमें रेल बजट भी समाहित होगा। अब तक रेल बजट अलग से ही पेश किया जाता रहा है।
संसद के इस सत्र के भी शीतकालीन सत्र की तरह हंगामेदार रहने की संभावना है। शीतकालीन सत्र नोटबंदी के मुद्दे को लेकर हंगामे की भेंट चढ़ गया था। विपक्ष नोटबंदी को लेकर उसके बाद भी सरकार को घेरता रहा है । उसका कहना है कि इसके कारण अर्थव्यवस्था में मंदी आ रही है। जहां लोगों को विभिन्न तरह के लेन देन में दिक्कत आ रही है वहीं उद्योग धंधों और छोटी इकाइयों के इससे प्रभावित होने के कारण लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं।
विपक्षी दल सरकार के इस तर्क को भी खोखला बता रहे हैं कि नोटबंदी काले धन को बाहर निकालने और आतंकवाद के वित्त पोषण को रोकने में सफल रही है। इसके अलावा सरकार की बिना तैयारी के हड़बड़ी में अर्थव्यवस्था को नकदी रहित बनाने की कोशिशों का भी विपक्ष विरोध कर रहा है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने तो सरकार पर निशाना साधते हुए नोटबंदी को अब तक का सबसे बडा घोटाला करार दिया है। जाहिर है कि विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सरकार को एक बार फिर घेरेगा।
कुछ दल विशेष रूप से तृणमूल कांग्रेस ने सरकार पर केन्द्रीय जांच एजेन्सी सीबीआई का दुरूपयोग करने का भी आरोप लगाया है। उसके कुछ सांसदों को चिट फंड मामलों में सीबीआई ने गिरफ्तार किया है। पार्टी का आरोप है कि केन्द्र सरकार नोटबंदी का विरोध करने पर बदले की भावना से सीबीआई का उसके नेताओं के खिलाफ दुरूपयोग कर रही है।
लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने बजट सत्र सुचारू रूप से चलाने के बारे में चर्चा के लिए 30 जनवरी को सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाई है। बैठक में वह सभी दलों से सत्र को सुचारू रूप से चलाने में सहयोग देने की अपील करेंगी। संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने भी विभिन्न दलों के नेताओं के साथ अलग से बैठक बुलाई है जिसमें सत्र में उठने वाले विभिन्न मुद्दों और विधेयकों पर चर्चा से हो सकती है।
संसद में कई विधेयक लंबित हैं और सरकार का प्रयास इस सत्र में इन्हें पारित कराने का होगा। शत्रु संपत्ति विधेयक लंबे समय से लंबित हैं। सरकार इसे राज्यसभा में पारित कराने के लिए नहीं ला पाई है जिसके कारण उसे पांच बार अध्यादेश लाना पड़ा है। इस सत्र में वह इसे पारित कराने का प्रयास करेगी। सरकार सेरोगेसी विधेयक को भी पारित नहीं करा सकी है और इसे पारित कराना भी उसकी प्राथमिकता होगी। इसके अलावा अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है वस्तु एवं सेवा कर विधेयक भी बजट सत्र में लाया जाएगा। सरकार को उम्मीद है कि वह विपक्ष के साथ इस विधेयक पर आम सहमति बनाने में सफल रहेगी। (वार्ता)