आधुनिक भारत में बजट-पद्धति की शुरुआत करने का श्रेय ब्रिटिश-भारत के पहले वायसराय लार्ड केनिंग को जाता है, जो 1856-62 तक भारत के वायसराय रहे।
1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद 1859 में पहली बार एक वित्त विशेषज्ञ जेम्स विल्सन को वायसराय की कार्यकारिणी का वित्त सदस्य नियुक्त किया गया।
जेम्स विल्सन ने 18 फरवरी 1860 को वायसराय की परिषद में पहली बार बजट पेश किया। उन्होंने ब्रिटिश वित्तमंत्री की परम्परा का अनुसरण करते हुए अपने भाषण में भारत की वित्तीय स्थिति का सारगर्भित विश्लेषण और सर्वेक्षण पेश किया, इसलिए जेम्स विल्सन को भारतीय बजट पद्धति का संस्थापक कहा जा सकता है।
1860 के बाद से ही प्रतिवर्ष देश की वित्तीय स्थिति का विवरण प्रस्तुत करने वाला बजट वायसराय की परिषद में पेश किया जाने लगा, लेकिन उस समय भारत गुलाम था, इसलिए इस बजट पर भारतीय प्रतिनिधियों को बहस करने का अधिकार नहीं था।
सन् 1947 में देश आजाद हुआ। उसके बाद भारतीय संसद एवं विधानसभाओं को बजट पर नियंत्रण के पूर्ण अधिकार प्राप्त हो गए।
आजादी के पूर्व 1920 तक संघीय स्तर पर केवल एक ही बजट बनता था। 1921 में सामान्य बजट से रेल बजट को अलग कर दिया गया। तब से भारत में संघीय स्तर पर दो बजट पेश किए जाने लगे- सामान्य बजट और रेल बजट। इसके अलावा भारतीय संघ की प्रत्येक इकाइयों (राज्यों) का अपना अलग-अलग बजट होता है।