इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) में प्रवेश के लिए 'एक देश एक परीक्षा का फॉर्मूला' मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है। इस नियम के लागू होने से पहले ही इसका विरोध शुरू हो गया है।
इस प्रारूप के लागू होने से पहले ही आईआईटी संस्थानों में आपसी मतभेद सामने आने लगे हैं। इन संस्थानों के मतभेदों से नई प्रवेश परीक्षा प्रणाली पर लागू होने से पहले ही बहस शुरू हो गई है। आईआईटी संस्थानों में हो रहे आपसी घमासान से इन संस्थानों साख पर बट्टा जरूर लग रहा है।
विरोध के बावजूद मानव संसाधन विकास मंत्रालय आईआईटी के लिए एकल परीक्षा प्रणाली से पीछे हटने को तैयार नहीं है। मंत्रालय का कहना है कि इससे संस्थानों की स्वायत्तता कम नहीं होगी। मंत्रालय ने इसे लागू करने के लिए आईआईटी के कानूनी प्रावधानों को खंगालना शुरू कर दिया है।
पिछले कुछ सालों में आईआईटी का परीक्षा पैटर्न तीन बार बदला जा चुका है। कपिल सिब्बल ने मई में 2013 से आईआईटी में दाखिले के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा आयोजित किए जाने की घोषणा की थी। नए प्रारूप के तहत आईआईटी, एनआईटी, आईआईआईटी जैसे इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश एक ही परीक्षा होगी। नई व्यवस्था आईआईटी, जेईई और एआईईईई का स्थान लेगी।
विद्यार्थियों को पहले मुख्य परीक्षा में बैठना होगा। उसी दिन उन्हें एडवांस टेस्ट देना होगा। नए प्रारूप में 12वीं के बोर्ड परिणामों को 40 प्रतिशत वेटेज दिया जाएगा। मेन और एंडवास एक्जाम के प्रदर्शन को 30-30 प्रतिशत वेटेज दिया जाएगा।
भारतीय शिक्षा व्यवस्था में ऐतिहासिक बदलाव लाने को आतुर कपिल सिब्बल का नए प्रारूप के पीछे यह तर्क था कि 12वीं के अंकों का वेटेज देने से राज्यों के शिक्षा बोर्डों की पढ़ाई का स्तर सुधरेगा। इससे फार्म भरने का खर्च भी कम होगा और गरीब विद्यार्थियों का खर्च बचेगा। सिब्बल का यह भी मानना था कि नए प्रारूप से विद्यार्थियों का तनाव भी कम होगा। साथ ही कोचिंग संस्थाओं और कैपिटेशन फीस पर भी लगाम लगेगी।
दूसरी ओर शिक्षाविदों का यह तर्क है कि 12वीं के अंकों को वेटेज देने से कोचिंग संस्थाएं बढ़ेंगी, क्योंकि विद्यार्थी 12वीं क्लास से कोचिंग शुरू कर देंगे। इसे शहरी और आर्थिक रूप से संपन्न विद्यार्थी तो सहन कर लेंगे, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर छात्र इस वहन नहीं कर पाएंगे।
कपिल सिब्बल 12वीं के अंकों को वेटेज देने के पीछे राज्यों के शिक्षा बोर्डों के स्तर को सुधारने की बात कहते हैं जबकि दूसरी ओर विरोध करने वालों का यह कहना कि देश में लगभग 42 बोर्ड हैं और इन बोर्डों के पाठ्यक्रम व परीक्षा प्रणाली अलग-अलग है।
किसी बोर्ड का पेटर्न बहुत सरल है और किसी बोर्ड का सरल। ऐसे में 12वीं के रिजल्ट को तवज्जो देने का क्या औचित्य है। पूर्व छात्रों का संगठन भी इस एक एकल परीक्षा प्रणाली और 12वीं के अंकों को शामिल किए जाने का खुलकर विरोध कर रहा है।
सुपर 30 के संचालक आनंद कुमार भी इस नई एकल परीक्षा प्रणाली को गरीब विरोधी बताते हैं। वे मानते हैं कि मप्र, बिहार, उप्र जैसे बोर्डों में 12वीं के छात्रों को बहुत कम अंक मिलते हैं जबकि गोआ और महाराष्ट्र जैसे बोर्डों में सौ प्रतिशत तक अंक आते हैं।
उनका मानना है कि 12वीं के अंकों को वेटेज देने से स्टूडेंट्स 12वीं से ही अलग-अलग विषयों की कोचिंग लेंगे जबकि गरीब विद्यार्थी ऐसा नहीं कर पाएंगे। आईआईटी में पढ़ना उनके लिए एक सपना बनकर रह जाएगा।
मानव संसाधन मंत्री ने दावा किया था कि नए प्रारूप का फैसला आईआईटी काउंसिल की सहमति से लिया गया, लेकिन तेजी से उठता विरोध उनके दावे पर प्रश्न खड़ा करते हैं। अगर सबकुछ सहमति से हुआ है तो इन संस्थानों के आपसी मतभेद सामने क्यों आ रहे हैं।
आईआईटी कानपुर की सीनेट के सदस्यों ने इस प्रणाली का विरोध करते हुए दीक्षांत समारोह का बहिष्कार करने का ऐलान किया था। इस घटनाक्रम के कुछ दिनों बाद आईआईटी कानपुर ने नए प्रारूप का विरोध करते हुए खुद प्रवेश परीक्षा आयोजित करने की घोषणा कर दी थी। उसके इस फैसले के बाद मुंबई व दिल्ली के संस्थान भी उसकी राह पर चलने की तैयारी कर रहे हैं।
दूसरी ओर मद्रास, गुवाहाटी, रूड़की के संस्थान इस प्रणाली का समर्थन करते हुए अपने सहयोगी संस्थानों के व्यवहार पर सवाल उठा रहे हैं। आईआईटी खड़गपुर के निदेशक तो इस प्रवेश परीक्षा की पैरवी कर रहे हैं, लेकिन खड़गपुर की फैकल्टी उनके खिलाफ खड़ी हो गई है। ऑल इंडिया आईआईटी फैकल्टी फेडरेशन भी इस नए परीक्षा प्रारूप से खुश नहीं है।
इस पूरे घटनाक्रम से एक बात तो साफ नजर आती है कि इस मामले में इन संस्थानों की स्वायत्तता का सम्मान नहीं किया गया। कोटा में इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे छात्र भी इस परीक्षा प्रारूप से खुश नहीं है। वे 12वीं के अंकों को वेटेज देने को सही नहीं मानते हैं।
मतभेद इसे लागू करने को लेकर भी है। सरकार इसे 2013 से ही लागू करवाने के पक्ष में है जबकि कई आईआईटी संस्थान इस परीक्षा प्रारूप को 2014 से लागू करने की बात कर रहे हैं। तमाम विरोधों के बाद भी मानव संसाधन विकास मंत्रालय पीछे हटने को तैयार नहीं है। उसका कहना है कि इससे संस्थानों की स्वायत्तता कम नहीं होगी। मंत्रालय ने इसे लागू करने के लिए आईआईटी के कानूनी प्रावधानों को खंगालना शुरू कर दिया है।
परीक्षा प्रारूप पर मच रहे घमासान का नतीजा जो भी निकले, लेकिन इन सबसे वे छात्र असमंजस में हैं जो 2013 के लिए घोषित नई संयुक्त प्रवेश परीक्षा के लिहाज से तैयारी कर रहे हैं।