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क्योंकि हर एक फ्रेंड जरूरी होता है....!

‍निशा पटेल

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एक उम्र में तो दोस्ती हर रिश्ते से ऊपर होती है। जीवन के हर अनुभवों के सहभागी, सुख-दुख के साझीदार दोस्त ही हुआ करते हैं। बचपन के दोस्त, आस-पड़ोस के दोस्त, स्कूल के दोस्त, कॉलेज के और फिर करियर के दोस्त। चाहे परिजन इस बात की शिकायतें करते रहें, लेकिन दोस्त, बस दोस्त ही होते हैं।

हमारे राजदार और भरोसेमंद... चाहे परीक्षा की तैयारी हो, कॉम्पिटिशन, इंटरव्यू, गाड़ी खराब होना, पैसे खत्म हो जाना, गर्लफ्रेंड से बहाना बनाना हो या फिर मम्मी से छुपकर बॉयफ्रेंड के साथ किसी पार्टी में जाना, मॉम-डैड से बहाना बनाना, टूर पर जाने की परमिशन लेना, बहन की शादी हो या फिर मां की बीमारी, बर्थ-डे पार्टी हो या रिजल्ट का टेंशन, प्यार होना, दिल टूटना, पहली सफलता का जश्न हो या फिर पहली असफलता की निराशा- हर वक्त की जरूरत होती है दोस्ती...।

हर खुशी को सेलिब्रेट करने के लिए दोस्त चाहिए तो हर गम को गलत करने के लिए दोस्तों की दरकार होती है। गलत नहीं है विज्ञापन की ये लाइनें- हर एक फ्रेंड जरूरी होता है।

दोस्त होना एक तरह की योग्यता है, जबकि रिश्तेदारी भाग्य...। अच्छा दोस्त होने के लिए कई तरह की शर्तें होती हैं, तभी तो वह दोस्त हो पाता है। इसके उलट रिश्तेदारी तो हमें जन्मजात विरासत में मिलती है। जैसी भी हो हमें उसे निभाना ही है, जबकि दोस्ती में ऐसी कोई मजबूरी नहीं होती, इसलिए कड़वाहट भी नहीं।

नौकरी के सिलसिले में जब आराधना के माता-पिता उसे छोड़ने पुणे गए तो मां को अनजाना-सा डर था और पिता को चिंता कि आराधना कैसे-क्या करेगी? वहां पहुंचकर जब वे बेटी के दोस्तों से मिले तो उन्हें लगा कि अब किसी भी तरह की चिंता की जरूरत नहीं है। उसके दोस्तों ने जिस तरह दौड़धूप कर आराधना के लिए छोटी-बड़ी चीजें जुटाईं, उससे दोनों को इत्मीनान हो गया कि आराधना को यहां किसी भी किस्म की दिक्कत नहीं होगी।

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व्यावहारिक जीवन में दोस्तों का रुतबा और अहमियत क्या है, ये वे युवा ज्यादा अच्छे से समझ सकते हैं, जिन्होंने बहुत छोटी उम्र में अपना घर छोड़ दिया है। कहा भी जाता है न कि दोस्ती हमें प्यारी होती है, क्योंकि दोस्त हम चुनते हैं, जबकि हमें रिश्ते चुनने की सुविधा नहीं मिलती है। होता यह है कि जिंदगी के बहुत सारे मामलों में हमें अपने खून के रिश्तों से ज्यादा भरोसा दोस्तों पर होता है। इसके कारण कई होते हैं। शायद सबसे पहला और बड़ा कारण तो यह कि दोस्ती का मामला दिल का होता है और ये एक तरह की केमेस्ट्री होती है, जो दो लोगों के बीच साथ रहते, एक-दूसरे को जानते हुए विकसित होती है। इसमें बस एक अनजाना और अनदेखा धागा होता है, जो लोगों को जोड़ता है।

असल में दोस्ती की ताकत का एहसास भावनात्मक संकट के समय ज्यादा होता है। दिल का टूटना, कोई असफलता, अपनों को खोना, व्यापार में नुकसान या फिर नौकरी से हाथ धोना ऐसे मामलों में हम रिश्तेदारों से ज्यादा दोस्तों पर भरोसा करते हैं।

इस भरोसे का आधार ये अनुभव है कि दोस्त हमारे दुख को, हमारी मनःस्थिति को और हमारी पीड़ा को समझेगा। हमें इससे उबरने में मदद करेगा, साथ ही हमारी पीड़ा को कभी सार्वजनिक नहीं करेगा, न ही हमारी असफलता का कभी मजाक बनाएगा। हम उन पर अपनों से ज्यादा भरोसा करते हैं और इस दृष्टि से दोस्त ज्यादातर मामलों में हमें निराश नहीं करते हैं। आलेख पढ़ने के बाद क्या आपको भी याद आ रही है अपने दोस्तों के साथ कॉलेज कैंपस की मस्ती???

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