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जब काम करो पूरा तो मजा क्यों रहे अधूरा

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हमें फॉलो करें काम मनीष शर्मा हैप्पी ऑवर्स डे

मनीष शर्मा

कोई काम चाहे कितना ही बेहतर क्यों न हो, कितनी ही मेहनत से क्यों न किया गया हो, अगर वह अपनी डेडलाइन तक पूरा नहीं हुआ तो उसके बाद डेड यानी अनुपयोगी ही होगा न। तब काम पूरा होने के बाद भी मजा अधूरा ही रहेगा।
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एक कंपनी को अपने उत्पादों के प्रचार के लिए विज्ञापन एजेंसी की तलाश थी। इसके लिए कई प्रतिष्ठित एजेंसियों ने प्रेजेंटेशन दिए। इसके आधार पर दो एजेंसियों का चयन किया गया। लेकिन दोनों का काम और सेवाएँ इतनी अच्छी थीं कि कंपनी के अधिकारी यदि किसी एक का पक्ष ले लेते तो दूसरे के साथ अन्याय हो जाता।

असमंजस की इस स्थिति में एक अधिकारी को एक उपाय सूझा। उसने दोनों एजेंसियों को एक कॉन्सेप्ट देकर उस पर अगले दिन दोपहर बारह बजे तक आर्टवर्क बनाकर लाने को कहा। दोनों एजेंसियों की क्रिएटिव टीमें श्रेष्ठतम आर्टवर्क बनाने में जुट गईं। चूँकि क्लाइंट यानी अकाउंट बहुत बड़ा था, इसलिए कोई इस मौके को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता था।

अगले दिन जब कंपनी के अधिकारी सुबह दस बजे ऑफिस पहुँचे तो एक एजेंसी की क्रिएटिव टीम वहाँ बैठी हुई थी। उन्होंने अधिकारियों को अपना आर्टवर्क दिखाया। आर्टवर्क उन्हें पसंद आया लेकिन उन्होंने कोई फैसला नहीं दिया। दूसरी एजेंसी की टीम तय समय से आधा घंटा देरी से पहुँची। उनका आर्टवर्क और भी अच्छा था। एक अधिकारी ने उनसे देरी का कारण पूछा तो एजेंसी वाले बोले- हम अपने काम की क्वालिटी से कोई समझौता नहीं करते, भले ही इसमें निर्धारित से अधिक समय लग जाए। इस जवाब ने अधिकारियों की उलझन आसान कर दी और फैसला हो गया।

दोस्तो, क्या आप बता सकते हैं कि फैसला किसके पक्ष में हुआ होगा। असमंजस में पड़ गए। चलिए आपकी उलझन आसान करने के लिए यह भी बता देते हैं कि जब पहली एजेंसी से पूछा गया था कि समय से पहले उन्होंने काम कैसे पूरा कर लिया, तो उनका जवाब था कि किसी भी काम का मूल्य तभी है जब उसे समय पर पूरा किया जाए। और यदि काम पूरा करना ही है तो एक मिनट की देरी से बेहतर है कि उसे एक घंटा पहले ही पूरा कर लिया जाए ताकि वह आखिरी एक घंटा काम पूरा होने की खुशियाँ मनाते हुए बीत सके। तो यह था जवाब।

अब आप क्या कहते हैं। अभी भी किस उलझन में हैं- क्वालिटी वाली बात पर। तो भैया, कोई काम चाहे कितना ही बेहतर क्यों न हो, कितनी ही मेहनत से क्यों न किया गया हो, अगर वह अपनी डेडलाइन तक पूरा नहीं हुआ तो उसके बाद डेड यानी अनुपयोगी ही होगा न। तब काम पूरा होने के बाद भी मजा अधूरा ही रहेगा।

तो अब क्या कहते हो। बिलकुल ठीक। फैसला पहली एजेंसी के पक्ष में ही गया। इसीलिए समय के पालन को कामयाबी की निशानी और कामयाबों का लक्षण माना गया है। यदि आप भी जीवन में कामयाबी का ख्वाब देखते हैं तो समय की सत्ता को स्वीकारें। इससे बलवान न कोई दूसरा हुआ है, न होगा।

समय को सलाम नहीं करोगे तो यह बनती बात बिगाड़ देगा और यदि इसकी जी-हूजूरी करोगे तो बिगड़ती को भी बना देगा, देता है। इसलिए इसकी कीमत पहचानो। यह बहुत मूल्यवान है। शायद यही कारण है कि भगवान एक बार में एक ही पल देता है और दूसरा पल देने से पहले उसे वापस ले लेता है। अब यदि आपकी सफलता किसी पल विशेष में ही लिखी हो तो उस पल के गुजर जाने के बाद आप भले ही सफलता के पीछे भागते रहें, वह वापस नहीं आएगी।

दूसरी ओर, यदि समय से पहले काम पूरा कर लिया जाए तो बचे समय में उसका आनंद उठाने के साथ ही आप उस काम में रह गई कमी-बेशी, भूल-चूक को भी एक बार ठंडे दिगाम से जाँच सकते हैं ताकि समय रहते उसे सुधारा जा सके, दुरुस्त किया जा सके। हालाँकि बहुत से लोग सोचते हैं कि अभी तो बहुत समय बाकी है। ऐसे लोग किसी प्रोजेक्ट के पूरा होने का आनंद ही नहीं ले पाते। उस समय तो वे काम पूरा करने की जद्दोजहद में ही लगे रहते हैं।

यानी जो घंटे खुशियाँ मनाने में बीतना थे, उन घंटों को वे काम पूरा करने के तनाव में बिताते हैं यानी हैप्पी ऑवर्स को वे टेंस ऑवर्स बना लेते हैं। यदि आप भी ऐसा करते हैं तो आज 'हैप्पी ऑवर्स डे' से ही अपनी यह आदत बदल लें और 'ले आओ, पहले पाओ' की तकनीक को अपना लें। फिर तो बार-बार, हर बार सफलता आपकी। तो फिर शुरूआत में देरी किस बात की। शुभस्य शीघ्रम्‌।

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