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तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा

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मनीष शर्मा

एक बार एक राजा राजकाज से ऊबकर अपने गुरु के पास पहुँचा और बोला- गुरुदेव, राजकाज के रोज-रोज के झंझटों, मुसीबतों से मैं दुःखी हो गया हूँ। एक को सुलझाओ तो दूसरी खड़ी हो जाती है। मैं तो तंग हो गया हूँ अपने जीवन से। क्या करूँ? गुरु- राजन, यदि ऐसा है तो इसे त्यागकर मुक्ति पा लें।

राजा- इसे त्याग देने से समस्याएँ तो सुलझेंगी नहीं। मैं पीठ दिखाकर कैसे भाग सकता हूँ। गुरु- तो राजपाट अपने पुत्र को सौंपकर निश्चिंत हो जाएँ। राजा- लेकिन वह तो अभी बहुत छोटा और अनुभवहीन है। गुरु- तो फिर मुझे सौंप दें। मैं चलाऊँगा तुम्हारा राज्य। राजा- हाँ, यह मुझे स्वीकार है। इसके बाद राजा ने संकल्प लेकर सारा राजपाट अपने गुरु को सौंप दिया और उन्हें प्रणाम कर वहाँ से जाने लगा। तभी गुरु ने उसे रोका- कहाँ जाते हो?

राजा- राजमहल। कुछ धन लेकर दूसरे राज्य में कोई व्यापार शुरू करँगा। गुरु- धन तो अब मेरा है, उस पर तुम्हारा क्या अधिकार? राजा- तो फिर मैं किसी की नौकरी करूँगा। गुरु- यदि नौकरी ही करना है तो मेरी कर लो। राजा- क्या करना होगा मुझे? गुरु- मुझे अपने राजकाज के कुशल संचालन के लिए एक योग्य संचालक की आवश्यकता है। क्या तुम यह काम करोगे?
  एक बार एक राजा राजकाज से ऊबकर अपने गुरु के पास पहुँचा और बोला- गुरुदेव, राजकाज के रोज-रोज के झंझटों, मुसीबतों से मैं दुःखी हो गया हूँ। एक को सुलझाओ तो दूसरी खड़ी हो जाती है। मैं तो तंग हो गया हूँ अपने जीवन से। क्या करूँ?      


राजा- जब आपकी नौकरी ही करना है तो जो आप कराएँगे, करूँगा। राजा वापस जाकर राज्य चलाने लगा। कुछ समय बाद गुरु ने उसे बुलाकर पूछा- कैसा चल रहा है राजकाज? कोई समस्या तो नहीं? राजा- बहुत अच्छा चल रहा है, गुरुदेव।

अब मैं निश्चिंत होकर अपनी नौकरी कर रहा हूँ। पूरी लगन से अपनी जिम्मेदारी निभाता हूँ और रात में चैन से सोता हूँ, क्योंकि मेरा तो कुछ है नहीं। सब कुछ तो आपका है। उसकी चिंता तो आपको होगी।

दोस्तो, यही तरीका है अपनी परेशानियों से मुक्ति पाने का। सोच लो कि जो कुछ आप कर रहे हैं, वह किसी और का है। आप तो सिर्फ एक सेवक की भाँति अपनी भूमिका निभा रहे हैं, काम कर रहे हैं, नौकरी कर रहे हैं। यह एक भाव है, लेकिन इस भाव से आप उन बहुत-सी ऐसी चिंताओं से मुक्त रहकर काम कर सकते हैं, जो एक मालिक को होती हैं।

कहते हैं न कि किसी भी संस्था में नौकरी करने वाला ज्यादा फायदे में होता है। उसे तो बस ऑफिस जाकर अपनी जिम्मेदारी को ठीक से निभाना होता है। उसके बाद वह रात को निश्चिंत होकर सो जाता है। लेकिन मालिक के लिए तो दिन-रात एक जैसे ही होते हैं।

उसके कंधों पर तो पूरी संस्था का भार होता है। यदि आप भी किसी संस्था के संचालक हैं और रात को चैन से सोना चाहते हैं तो अपनी जिम्मेदारियों को बाँट दें, जैसा कि आजकल लोग करते भी हैं। यदि आप नहीं करते तो आज से ही शुरू कर दें। इससे आपका काम बँट जाएगा और आपकी चिंताएँ कम होंगी।

आजकल अधिकांश कंपनियों के निदेशक भी सीईओ के रूप में बाकी कर्मचारियों की तरह कंपनी की नौकरी करते हैं और वेतन पाते हैं। इसके पीछे भी यही 'सब कुछ है तेरा' वाला भाव ही होता है। ऐसा करके वे जहाँ एक कर्मचारी के दृष्टिकोण को समझ पाते हैं, वहीं उनके और कर्मचारियों के बीच की दूरी भी कम होती है। ऐसे में उन्हें रोजमर्रा की झंझटों से मुक्ति मिल जाती है, क्योंकि सभी मिलकर कंपनी की चिंता करते हैं। साथ ही चूँकि निर्णय सामूहिक होते हैं, इसलिए सही-गलत की जिम्मेदारी भी किसी एक पर नहीं रहती।

और अंत में, आज ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी है यानी शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का दिन। शिवाजी ने भी अपना राजपाट अपने गुरु समर्थ रामदास को सौंपकर उनके प्रतिनिधि के बतौर बड़ी कुशलता से शासन की बागडोर संभाली थी।

इसलिए यदि आप अपनी मानसिक शांति और कंपनी की प्रगति चाहते हैं तो उसे गुरु मानकर 'तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा' भाव से एक स्वामी की तरह नहीं, एक सेवक की तरह बाकी लोगों के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दें।

यदि आप ऐसा करेंगे तो अपनी जिम्मेदारियों को तनावमुक्त होकर बेहतर तरीके से निभा पाएँगे। अरे भई, मालिक से सीईओ बन जाओ। कंपनी मुनाफे में आ जाएगी।

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