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दृष्टि बदलती है तो बदल जाती है सृष्टि

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मनीष शर्मा

कल्याण विजय की खुशी में मनाए जा रहे उत्सव के दौरान आयोजित विशेष दरबार में छत्रपति शिवाजी को सूबेदार उपहार दे रहे थे। तभी सेनापति आबाजी महादेव बोले- श्रीमंत, मैं आपके लिए एक अनोखी भेंट लाया हूँ, जो आपको निश्चित ही पसंद आएगी।

इसके बाद उन्होंने एक खूबसूरत मुस्लिम युवती को आगे करके कहा- जब हमने कल्याण के किले में प्रवेश किया तो वहाँ का हाकिम मुल्ला अहमद भाग निकला। उसकी इस रूपवती पुत्रवधू को बंदी बनाकर हम यहाँ ले आए। क्या आप इसे स्वीकार करेंगे?

उनकी बात सुनकर शिवाजी उस युवती की ओर बढ़े। इस पर आबाजी मुस्कुराने लगे। पास पहुँचे शिवाजी युवती के सिर पर हाथ रखकर बोले- हाँ, हम इसे स्वीकार करते हैं...अपनी बहन के रूप में। यह सुनकर डरी-सहमी युवती की जान में जान आई और वह मुस्करा उठी।

कुछ क्षण उसकी ओर देखकर शिवाजी बोले- यदि मेरी आई साहब भी तुम्हारी तरह खूबसूरत होतीं तो थोड़ी-सी खूबसूरती हमें भी मिल जाती। हम इतने कुरूप न होते। यह सब सुनकर आबाजी पानी-पानी हो गए। शिवाजी से नजरें मिलाने की उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी। उन्हें अफसोस था कि उन्होंने अपने महाराज को समझने में गलती कैसे की।

इस बीच शिवाजी बोले- आबाजी, हमारे लिए इतनी सुंदर बहन ढूँढकर लाने के लिए आपका धन्यवाद। अब आप इन्हें पूरी सुरक्षा के साथ इनके परिवार तक पहुँचा दें। इसके बाद उस युवती को बहुत से कीमती उपहार देकर विदा कर दिया गया।

दोस्तो, शनिवार को 'रक्षाबंधन' है। राखी के दिन एक बहन अपने भाई की कलाई पर स्नेह का धागा बाँधती है और भाई से अपनी रक्षा का वचन लेती है। यह बात तो हम सभी जानते-समझते हैं, लेकिन यह त्योहार यहीं तक सीमित नहीं है। इसके पीछे छिपे गूढ़ भावार्थ कुछ और हैं। दरअसल, यह उत्सव दृष्टि परिवर्तन के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

राखी बाँधते समय बहन यह कामना करती है कि उसका भाई समस्त नारी जाति को विकृत नहीं बल्कि पवित्र दृष्टि से देखे। एक बहन भाई के माथे पर इस भाव से तिलक करती है कि उसका तीसरा नेत्र खुले, जो उसके आंतरिक विकारों और वासना रूपी शत्रुओं को जलाकर भस्म कर दे ताकि वह किसी नारी को बुरी दृष्टि से देख न पाए। जब भी उसकी नजर किसी नारी पर पड़े, तो उसके मन में भी वैसे ही भाव आएँ, जैसे कि शिवाजी के मन में आए थे।

दूसरी ओर, रोजमर्रा की जिंदगी में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के अनेक किस्से सुनने में आते हैं। ऐसी बातों में लिप्त रहने और चटकारे ले-लेकर किस्से सुनने-सुनाने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि यदि ऐसा ही कोई उनकी बहन-बेटियों के साथ करे, तो उन्हें कैसा लगेगा।

यह सोचकर ही इनका खून खौल उठता है। और कोई वाकई में उन्हें छेड़ दे, तो ये मरने-मारने पर भी उतारू हो जाते हैं। यदि आप भी ऐसे ही हैं, तो इसमें नुकसान आपका ही है। इससे आप आपकी बातों को रस लेकर सुनने वाले अपने ही साथियों की नजरों में भी गिर जाते हैं और वे आपसे एक निश्चित दूरी बनाकर रखने लगते हैं। साथ ही उन्हें आपका अपने घर आना-जाना भी रास नहीं आता।

इसलिए बेहतर है कि आप तुरंत अपनी गिरी हुई छवि को सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाएँ। शिवाजी को याद कर खुद भी ऐसी ओछी हरकतों से बचें और अपने साथियों को भी ऐसा करने से रोकें। यदि आप सच्चे मन से ऐसा करेंगे, तो जल्द ही एक बेहतर इंसान बन जाएँगे।

और अंत में, राखी के मूल भाव को समझते हुए आज जरूरत है कि यह अनूठा त्योहार केवल सगे या मुँहबोले भाई-बहनों तक ही सीमित न रह जाए। इसलिए इस बार राखी पर सगी बहन के साथ ही किसी दूसरे की बहन से भी राखी बँधवाएँ या किसी दूसरे के भाई को भी राखी बाँधें। तभी दृष्टि परिवर्तन के इस त्योहार को मनाना सार्थक सिद्ध होगा।

और जब दृष्टि बदलेगी तो आपकी सृष्टि भी बदल जाएगी, क्योंकि तब आपका मन भ्रष्ट नहीं होगा और आपका समय बेकार की बातों में नष्ट होने से बच जाएगा। तब सफलता की राह पर आपके कदम लगातार बढ़ते चले जाएँगे। रक्षाबंधन की अग्रिम शुभकामनाएँ।

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