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पहला कदम तो बढ़ाएं

- अनुराग तागड़े

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जिंदगी के सफर में हमें अपने आप को बनाए रखने के लिए काफी मेहनत करना पड़ती है। अच्छा इंसान बनने से लेकर नौकरी पाना और नाम कमाने के लिए निश्चित रूप से मेहनत का दूसरा कोई विकल्प नहीं होता। परंतु क्या सभी लोग सफलता प्राप्त कर लेते हैं या जो मनचाही सफलता होती है उसे प्राप्त कर लेते हैं या उसके करीब भी पहुंच पाते हैं।

हम अगर परिस्थितियों को समझें तब तक समय गुजर चुका होता है और कई वर्षों बाद हमें लगता है कि अगर आज वहीं परिस्थितियां हमारे सामने होती तब हम और भी अच्छा कर सकते थे। दरअसल मेहनत, समर्पण और समय दोनों की माँग करती है और बहुत ज्यादा मेहनत करना पड़ेगी। इस बात को सोच कर व्यक्ति पहला कदम ही नहीं उठाता और पीछे हट जाता है।

पीछे हटने की आदत कई लोगों में रहती है और कई लोग किसी भी तरह की स्पर्धा से ही डरते हैं। वे प्रतिभा संपन्न होने के बावजूद केवल इस बात को लेकर पीछे हट जाते हैं कि उनके जैसे और भी लोग हैं और शायद वे स्पर्धा में अच्छा न कर पाएं और असफलता मिलने पर लोग क्या कहेंगे? इस डर के कारण वे अक्सर पीछे रह जाते हैं और अपने लिए एक ऐसी जगह की तलाश में रहते हैं, जहां के वे ही राजा हों और बाकी सभी उनकी सुनने वाले हों।

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ऐसे व्यक्ति समान प्रतिभा या प्रतिभाशाली लोगों से मिलने से भी कतराते हैं और स्वयं को एक ऐसे घेरे में बांध लेते हैं जहां पर उनसे कोई स्पर्धा न कर सके। कई बार हमें लगता है कि मंजिल काफी दूर है और इसे पाने के लिए काफी लंबा सफर तय करना होगा। ऐसे में सफर को कई टुकड़ों में बांट लेना काफी लाभदायक सिद्ध हो सकता है। आप जानते हैं कि मंजिल दूर है पर इसका मतलब यह तो नहीं की मंजिल की ओर कदम ही न बढ़ाया जाए।

मंजिल दूर है, इस कारण प्रयत्न न करना पीछे हटने वाली बात है। छोटे व सधे हुए कदमों से अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ाएंगे तब सफलता निश्चित है। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि सबसे पहले हमें अपनी मंजिल का पता होना चाहिए। हमें पता होना चाहिए हमारी मंजिल कहां है और फिर बात आती है वहाँ तक पहुंचने की। आज के युवा साथी अपने करियर की मंजिल को लेकर काफी सजग रहते हैं और उन्हें पता रहता है कि वे क्या करना चाहते हैं।

आज करियर के कई विकल्प भी मौजूद हैं और युवा साथी अपनी मंजिल की तलाश में निकल भी पड़ते हैं पर कई साथी ऐसे भी होते हैं जो मंजिल की ओर उत्साह भरे कदम बढ़ाते जरूर हैं पर बीच में ही सफर समाप्त कर देते हैं और एक नई मंजिल की ओर कदम बढ़ाने लगते हैं। इस कारण उन्हें लगातार असफलता प्राप्त होती रहती है। वे ये नहीं सोच पाते की उनके लिए श्रेष्ठ मंजिल कौन सी है।

इस कारण जब भी अपनी मंजिल की ओर सधे कदम बढ़ाना हो तब मार्गदर्शन लेने में कोई भी बुराई नहीं बल्कि इससे यह पता चल जाता है कि आखिर उनके लिए क्या श्रेष्ठ है।

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