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पूरा करना है काम तो करते रहो आराम

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मनीष शर्मा

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एक बार मुर नामक दैत्य ने देवताओं को हराकर इन्द्रलोक पर कब्जा कर लिया। दुःखी देवों ने शिवजी के कहने पर विष्णुजी से सहायता माँगी। इस पर विष्णु मुर से युद्ध करने पहुँच गए। जल्दी ही उन्होंने मुर की सेना को मार गिराया, लेकिन मुर नहीं मरा। उसे विशिष्ट शक्ति से मृत्यु का वरदान था। इसलिए विष्णु की सारी शक्तियाँ विफल होती रहीं। अंततः थक-हारकर वे युद्ध अधूरा छोड़कर बद्रिकाश्रम की गुफा में जाकर आराम करने लगे।

मुर भी उनके पीछे-पीछे वहाँ जा पहुँचा। जब वह विष्णु को मारने के इच्छा से गुफा में प्रवेश कर ही रहा था, तभी वहाँ एक कन्या प्रकट हुई। उस कन्या के एक ही वार से मुर मारा गया। बाद में उस कन्या ने विष्णु को बताया कि वह उनकी विराम अवस्था में उन्हीं के शरीर से उत्पन्न एक शक्ति है। यह सुनकर विष्णुजी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उस कन्या का नाम 'उत्पन्न एकादशी' रखकर उसे आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी आराधना करने वाले धन-धान्य और अंत में वैकुंठलोक के भागी होंगे।
एक बार मुर नामक दैत्य ने देवताओं को हराकर॥ इन्द्रलोक पर कब्जा कर लिया। दुःखी देवों ने शिवजी के कहने पर विष्णुजी से सहायता माँगी। इस पर विष्णु मुर से युद्ध करने पहुँच गए। जल्दी ही उन्होंने मुर की सेना को मार गिराया, लेकिन मुर नहीं मरा।
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दोस्तों, है ना आराम कितने काम की चीज। यह विष्णुजी के आराम का ही नतीजा था कि उनके अंदर से ऐसी अनोखी शक्ति पैदा हुई जिसके हाथों वह मुर मारा गया, जिसे वे खुद भी नहीं मार पाए थे। इसका कारण था उनका लंबे समय तक बिना रुके युद्ध करते रहना। देखा जाए तो मुर को मारा तो विष्णु ने ही था, क्योंकि वह शक्ति भी तो उनकी ही थी। यानी कह सकते हैं कि अगर आराम हराम है, तो आराम न करना भी हराम है।

दरअसल होता यह है कि जब आप लगातार किसी काम में जुटे रहते हैं तो आप थक जाते हैं। थकान का परिणाम यह होता है कि आप एकाग्रता के अभाव में उस काम को पूरी निपुणता से अंजाम नहीं दे पाते। थकान आपको विराम, आराम करने के लिए कहती है और आप सोचते हैं कि एक बार काम खत्म हो जाए, तब निश्चिंत होकर आराम कर लेंगे।

आपका यह सोच पूरी तरह गलत तो नहीं लेकिन पूरी तरह सही भी नहीं होता, क्योंकि कई बार थकान की स्थिति में काम खत्म करने के चक्कर में काम पूरा होने की बजाय लंबा खिंचता चला जाता है, क्योंकि तब आप काम की क्वालिटी से समझौता करने लगते हैं और तब काम बनने की बजाय बिगड़ने लगता है। आपकी लाख कोशिशों के बाद भी गाड़ी ट्रैक पर नहीं आ पाती और अंततः आपको मजबूरी में ब्रेक लेना ही पड़ता है। इससे बेहतर यही है कि आप अपने काम के बीच-बीच में खुद ही छोटे-छोटे अंतराल का ब्रेक लेते रहें।

इससे थकावट दूर हो जाती है और आप हमेशा तरोताजा बने रहते हैं जिसके कारण आपकी गाड़ी ट्रैक से नहीं उतरती, कुछ भी क्रेक या ब्रेक नहीं होता यानी कोई गड़बड़ नहीं होती। यदि हम किसी गाड़ी या मशीन की बात करें तो लगातार चलने के कारण वह गर्म होकर खुद ही बंद हो जाती है।

लगातार चलने के कारण उसमें कोई खराबी भी आ जाती है जिसे सुधारने में उस समय से ज्यादा समय लग जाता है, जो उसे लगातार चलाकर आप बचाना चाहते थे। जब बिना दिमाग की मशीन के साथ ज्यादती किए जाने पर वह बंद हो सकती है, तो यह तो आपका शरीर है।

यह भी लगातार लगे रहने से बंद ही होगा ना। हमारा शरीर बना ही कुछ ऐसा है कि इसे आराम की सख्त जरूरत होती है। अब आँखों को ही देखें। इन्हें पलकें दी ही इसलिए गई हैं कि वे पल-पल में झपककर आँखों को आराम देती रहें। यदि पलकें झगी नहीं तो आँखें थक जाएँगी और अपना काम नहीं कर पाएँगी। इसलिए लगातार काम करने के दौरान छोटे-छोटे ब्रेक लेकर शरीर को विराम देते रहें। ये ब्रेक 5 मिनट के भी हो सकते हैं।

इससे आपको राहत मिलती है, आपकी शारीरिक शक्तियाँ बढ़ती हैं और आपके काम में निरंतरता बनी रहती है। दूसरी ओर, ब्रेक लेने से आपका दिमाग भी ठंडा होकर दोबारा अपनी गति में आ जाता है और आपको नए-नए उपाय सुझा देता है, जिसकी वजह से आप अपने काम को नियत समय पर बिना किसी रुकावट या गड़बड़ी के पूरा कर लेते हैं।

तब आपको मिलता है हर तरफ से, हर तरह से आराम ही आराम। और यह सब देता है आपको आपका आराम। तो उत्पन्न एकादशी की कथा से सबक लेते हुए हम भी विराम की अवस्था में जा रहे हैं ताकि कोई बेहतर मंत्र मिल सके।

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