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यदि पास है मीठी-कड़वी घुट्टी तो समझो असफलता की छुट्टी

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मनीष शर्मा

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हजरत लुकमान बहुत ही भले इंसान थे। सभी उन्हें बहुत पसंद करते थे, यहाँ तक कि उनके मालिक भी। घर में कोई खाने-पीने या लेने-देने की चीज आती तो वे उसमें लुकमान का हिस्सा जरूर रखते थे। एक बार मालिक के घर किसी ने तरबूज भिजवाए। तरबूज खाना शुरू करने से पहले उन्होंने लुकमान को बुलाकर एक बड़ी फाँक उन्हें खाने को दी।

लुकमान पलक झपकते ही वह फाँक पूरी की पूरी खा गए। इस बीच मालिक ने तरबूज की दूसरी फाँक काटकर खाना शुरू किया। लेकिन खाने के साथ ही उसे थूक दिया। मालिक ने लुकमान से पूछा- कमाल है भाई, तुम्हें खाते हुए देखकर तो हम सोच रहे थे तरबूज बेहद मीठा होगा, लेकिन ये तो बेस्वाद था, फिर तुमने इतने चाव से कैसे खाया?
हजरत लुकमान बहुत ही भले इंसान थे। सभी उन्हें बहुत पसंद करते थे, यहाँ तक कि उनके मालिक भी। घर में कोई खाने-पीने या लेने-देने की चीज आती तो वे उसमें लुकमान का हिस्सा जरूर रखते थे। एक बार मालिक के घर किसी ने तरबूज भिजवाए।
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इस पर लुकमान बोले- मालिक, आपने मुझे एक से एक लजीज और स्वादिष्ट चीजें खाने को दी हैं। अब एक बेस्वाद चीज खाने को मिल भी गई तो क्या हुआ। सच कहूँ तो तरबूज के फीकेपन का मुझे अहसास ही नहीं हुआ, क्योंकि आपने इतने प्रेम से जो खाने को दिया था।

दोस्तो, सही तो है। जो व्यक्ति आपसे बड़ा है, ऊँचा है, आपका बॉस है, यदि वह आपके प्रति सकारात्मक सोच रखता है, आपसे स्नेह करता है, आप जो कुछ अच्छा करते हैं, उसके लिए आपकी प्रशंसा करता है, आप और भी अच्छा करें, इसके लिए आपको प्रोत्साहित करता है, तो यदि कभी-कभार वह आपकी गलती पर आपको डाँट दे, फटकार दे, दो बातें सुना दे, तो क्या उस समय आपको उसकी उन बातों का बुरा मानना चाहिए।

नहीं, बिलकुल नहीं, क्योंकि जो आपसे स्नेह रखता है, उसे डाँटने का भी उतना ही अधिकार है। उसकी डाँट-फटकार में भी आपका भला ही छिपा होता है। इसलिए जब कभी ऐसा व्यक्ति आपसे कुछ रूखा, कड़वा बोले, उसकी बातें उस तरबूज जैसी ही फीकी हों, तो आपको लुकमान की तरह ही उन बातों को बगैर बुरा माने सुन लेना चाहिए, भले ही आप गलत न हों। हकीकत पता चलने पर उसका स्नेह आपके प्रति और बढ़ जाएगा। और यदि आप गलत हैं, तब तो आपको सुनना ही पड़ेगी।

ऐसे में प्रतिक्रिया व्यक्त कर आप एक और गलती कर बैठेंगे जिससे सामने वाला अधिक उत्तेजित तो होगा ही, साथ ही आहत भी होगा। इसलिए याद रखें, हमेशा मीठा-मीठा ही नहीं मिलता, कभी-कभी कड़वा, बेस्वाद भी मिलता है। हमेशा मीठा-मीठा ही मिलता रहेगा, तो ज्यादा मीठा भी नुकसानदेह होता है। इसलिए अपने करियर को मधुमेह यानी असफलता से बचाने के लिए जरूरी है कि अपने वरिष्ठों की कड़वी बातों के घूँटों को भी बिना मुँह बनाए पी लिया जाए।

यदि आप उन लोगों में से हैं जो जरा-सा कड़वा मिलने पर अपना संतुलन खो देते हैं, तो आपके लिए यह जरूरी है कि आप कड़वी बातों को भी पीना सीखें, छोटी-छोटी बातों को सहना सीखें। इनकी वजह से किसी के साथ अपने रिश्तों में कड़वाहट न आने दें। फिर देखें मातहत होकर भी आप किसी से मात नहीं खाएँगे, क्योंकि आपके बड़े जो आपके साथ होंगे, आपको प्यार करने वाले, आपका भला चाहने वाले।

दूसरी ओर, एक बॉस को अपने अधीनस्थों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, रखना चाहिए, जैसा कि लुकमान के मालिक का उनके साथ था। जो बॉस सफलता रूपी मिठाई अपनी उस टीम के साथ मिल-बाँटकर खाते हैं, जिसके सहयोग से वह उन्हें मिली है, हासिल हुई है यानी सफलता की क्रेडिट केवल खुद न लेकर अपने अधीनस्थों को भी देते हैं, तो मातहत भी हमेशा उनके साथ खड़े नजर आते हैं। तब वे असफलता मिलने पर आपके द्वारा मिलने वाली फटकार को भी सहज रूप से ग्रहण कर लेंगे।

इसलिए यदि आप बॉस की भूमिका में हैं तो परिस्थितियों के अनुसार अपने साथियों को कड़वे या मीठे घोल पिलाते रहें। यदि हमेशा कड़वे या हमेशा मीठे घोल पिलाओगे तो एक दिन खुद ही घुल जाओगे। हमेशा मीठे घोल से उन्हें लगेगा कि आपमें कोई कमी है तभी हमेशा मीठा बोलकर पटाते हो। और यदि हमेशा कड़वे घोल का उपयोग करोगे तो वह साथियों को आपके विरुद्ध कर देगा। अतः यदि दोनों तरह की घुट्टी साथ रखोगे तो असफलताओं की छुट्टी हो जाएगी और कामयाबी होगी आपकी मुट्ठी में। देखूँ तो, मेरी मुट्ठी में क्या है।

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