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लाइफ की करें रीपोजिशनिंग

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सुरेश वाडकर का गाया गीत 'ऐ जिंदगी गले लगा ले' कहीं भी, कभी भी सुनाई दे, लगता भला है, पर हकीकत यह है कि यह गाना लोगों को पूरे 3 दशकों से भरमा रहा है, क्योंकि गाने में सब कुछ खूबसूरत है, पर विचार कुछ हिला हुआ है। गौर से खुद को देखिए, आप पाएँगे कि जिंदगी को गले लगाने की जरूरत आपको है, जिंदगी तो आपको हमेशा से गले लगाते आई है।

नई लाइफ छुपी है 'लाइफ रीपोजिशनिंग' में
पिछले कुछ सालों में हमने देश-दुनिया के बेहतरीन ब्राण्ड्स को अपना रंग, रूप, कलेवर बदलते देखा, जैसे- रिबॉक, एयरटेल, डाबर या वीडियोकॉन। कभी आपने सोचा कि ये सब सफल ब्राण्ड्स हैं, फिर इन्हें क्यों जरूरत हुई खुद को बदलने की? कारण यह कि हम बहुत जल्द ही चीजों से बोर हो जाते हैं और हमेशा कुछ नया तलाशते हैं।

अगर ये ब्राण्ड्स अपना रंग-रूप यहाँ तक कि नाम भी न बदले तो नए प्रॉडक्ट्स अपनी फ्रेशनेस से इन्हें धकेल कर पीछे कर देंगे। यह बात मार्केटिंग गुरुओं ने तो सीख ली, पर हम खुद नहीं समझ पाए। इसलिए कोकाकोला 100 सालों से फ्रेश है, सक्सेसफुल है, पर हम स्वयं एक ही जैसे काम-सोच के साथ घिसे जा रहे हैं, एनर्जी-उत्साह खोते जा रहे हैं, 30 से ऊपर जाते ही दुनिया की नजर में चूका हुआ माने जाते हैं। कारण यह कि हम दूसरों को तो बदलते देखना चाहते हैं, पर खुद 'कंफर्ट जोन' से बाहर न निकलकर बदलाव को धक्के मारते जाते हैं।

'जब जिंदगी आपको चार रास्ते दिखाए तो सिर्फ एक पर चलकर उसे खर्च न करो, बल्कि जब भी मौका हाथ लगे अपने रास्ते पर चलते हुए, कभी-कभी दूसरों का भी लुत्फ उठा लो। जब मैं शिकागो से सेनफ्रांसिस्को शिफ्ट हुआ तो बहुत दुखी था, क्योंकि दोनों जगहों की कॉस्ट-ऑफ-लिविंग में बहुत फर्क था, पर मैंने जब यहाँ आकर संभावनाएँ तलाशीं तो मुझे वह मिल गया, जिसे मैं 40 सालों से ढूँढ रहा था। मेरी पसंद का काम यानी 'फोटोग्राफी'।

यहाँ मेरा पड़ोसी जाना-माना फोटोग्राफर है। बस फिर क्या था, मुझे अपनी जिंदगी मिल गई।' यह कहना है न्यूयॉर्क स्थित सेल्फ स्टोरेज कंपनी के डिवीजनल मैनेजर आर्ट डेकर का।

शायद आप इनकी बात से कंफ्यूज हो गए होंगे कि आखिर हम कहना क्या चाहते हैं? सच मानिए यही कंफ्यूजन हमें जिंदगी की खुशियों से दूर रखता है, दीवार बनकर खड़ा रहता है। साफ-साफ कहें तो सिर्फ यह कि दुनिया के 95 प्रतिशत लोग खुद को ही नहीं समझ पाते और जिंदगी का मजा उठाने की बजाय हमेशा दबाव में जीते हैं।

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