सोने की तलाश में निकले चार मित्रों को एक साधु ने रुई की चार बत्तियाँ देकर कहा कि जहाँ भी बत्ती गिरे, वहाँ खुदाई करना। तुम्हें कोई न कोई कीमती धातु मिलेगी। इस पर वे कुदाली लेकर एक पहाड़ पर चढ़ने लगे। थोड़ी ऊँचाई पर एक मित्र के हाथ से बत्ती गिर पड़ी। सभी ने उत्साह से वहाँ खुदाई की तो वहाँ ताँबा निकला। एक मित्र बोला- चलो, इसे लेकर घर चलें। इसे बेचकर हम खूब धन कमा लेंगे। लेकिन बाकी मित्र उसे वहीं छोड़ सोने की तलाश में आगे निकल गए और वह ताँबा लेकर घर चल दिया। आगे दूसरी बत्ती गिरने पर खुदाई में चाँदी निकली। चाँदी को देखकर एक को छोड़कर बाकी दो मित्र आगे बढ़ गए। आगे तीसरी बत्ती गिरी। वहाँ खुदाई में सोना निकला। एक मित्र बोला- अपना सपना पूरा हुआ। चलो सोना लेकर |
सोने की तलाश में निकले चार मित्रों को एक साधु ने रुई की चार बत्तियाँ देकर कहा कि जहाँ भी बत्ती गिरे, वहाँ खुदाई करना। तुम्हें कोई न कोई कीमती धातु मिलेगी। इस पर वे कुदाली लेकर एक पहाड़ पर चढ़ने लगे। |
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घर चलते हैं।
दूसरा यह कहकर आगे बढ़ गया कि अब तो मुझे इससे भी ज्यादा कीमती रत्नों की तलाश है। वह आगे बढ़ता रहा, लेकिन बत्ती नहीं गिरी। अलबत्ता उसे किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी।
उसने देखा कि एक व्यक्ति के सिर पर एक चक्र तेजी से घूम रहा है, जिसकी धुरी उसके सिर में धँसी हुई है। उसने जैसे ही उससे चक्र के बारे में पूछा तो चक्र उस व्यक्ति के सिर से निकलकर चौथे मित्र के सिर में धँस गया। दर्द से कराहते हुए उसने चक्र हटाने को कहा तो वह व्यक्ति बोला- श्रीमान, इसे मैं नहीं हटा सकता।
यह तो तभी हटेगा, जब तुम्हारे जैसा कोई लालची तुमसे आकर इसके बारे में पूछेगा। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था। यह चक्र न तो तुम्हें मरने देगा और न ही तुम्हें भूख-प्यास लगेगी। अब मैं चला, तुम इंतजार करो किसी अपने जैसे का।
दोस्तो, कहते हैं लालच बुरी बला है। यह जिस व्यक्ति के सिर चढ़ जाती है, वह चाहकर भी इससे पीछा नहीं छुड़ा पाता। यह उसे इस बात का अहसास ही नहीं होने देती कि वह इसकी गिरफ्त में आ चुका है। तभी तो लालची व्यक्ति को लगता है कि वह जो कर रहा है, वह सही है। उसकी लालसा कभी नहीं मरती। वह दो कमाता है तो चार की सोचने लगता है।
चार हाथ में आते हैं तो आठ की तैयारी शुरू कर देता है। और इस तरह लालच का चक्र उसके सिर पर घूमता ही रहता है। इसके चक्कर में फँसकर वह भागता ही रहता है, चक्कर लगाता ही रहता है। यह जाने-समझे बिना कि इस भाग-दौड़ का कोई अंत नहीं। यह चक्र कभी थमता नहीं, घूमता ही रहता है, जब तक कि वह मानसिक रूप से दृढ़ प्रतिज्ञ होकर इसके चक्कर से बाहर नहीं आ जाता।
यदि आप भी इस चक्र से पीड़ित हैं, तो यह जान लें कि इसके चक्कर में आपको सिवाय मानसिक परेशानियों और तनावों के कुछ हासिल होने वाला नहीं। इसके चक्कर में आप न ढंग से खा-पी पाएँगे, न जिंदगी के छोटे-छोटे हँसी-खुशी के पलों का आनंद उठा पाएँगे, क्योंकि आपके दिमाग में तो लालच का कीड़ा हर समय कुलबुलाता जो रहेगा। और जिस दिन आपको अपनी गलती का भान होगा, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
इसलिए बेहतर यही है कि आज जो आपके पास है, पहले उसका लुत्फ उठाएँ। प्रगति करें, लेकिन जो हाथ में है, उसे गँवाकर नहीं। जिंदगी को सही मायने में जीते हुए कमाएँ। अब जब आप जीते जी भी जिंदगी को जी नहीं पाए तो ऐसा जीना भी कोई जीना है बंधु।
इसके साथ ही लालच करने वाले अपनी छवि की भी चिंता नहीं करते। वे भूल जाते हैं छवि सही रहने पर ही व्यक्ति लाख के करोड़ कर सकता है वर्ना तो लाख को बचाना भी मुश्किल हो जाता है। कहा गया है कि लाख जाए पर साख न जाए। वर्ना लालच तो सभी को बर्बाद करता है, फिर आप कितने ही बड़े वाले या कितने ही छोटे क्यों न हों तभी तो कहते हैं कि लोभी गुरु लालची चेला, दोऊ नरक में ठेलम-ठेला।
इसलिए संतुष्ट बनो वर्ना जो है उससे भी जाओगे। कहते भी हैं कि आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे। इसलिए लाभ कमाना चाहते हो तो लोभ से बचकर रहो। तभी आपकी संपदा दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ेगी वर्ना लोभ ऐसे चक्कर लगवाएगा कि एक दिन चक्कर खाकर ही गिर पड़ोगे। भई वाह, आखिर तुम्हारे मन में गर्मी की छुट्टी पर कहीं जाने का ख्याल तो आया।