आज 'मंकी डे' पर बंदरों की एक कथा याद आ रही है। एक नगर के विशाल बाग में आम के कई वृक्ष थे जो मौसम आने पर फलों से लद जाते थे। नगर में रहने वाला बंदरों का एक समूह बाग में आकर इन आमों को खाने का प्रयास करता था। इसमें वे सफल भी होते थे, लेकिन इसकी उन्हें भारी कीमत भी चुकाना पड़ती थी।
दरअसल बाग का सजग माली किसी बंदर के बाग में प्रवेश करते ही उस पर हमला कर देता था। चोट खाकर चिल्लाते बंदर के साथ दूसरे बंदर भी भाग जाते।,लेकिन आमों का लालच उन्हें फिर खींच लाता और पूरे मौसम यही भागदौड़-मारपीट चलती रहती। इससे तंग आकर बंदरों के सरदार ने एक दिन अपने समूह की बैठक बुलाई। वह बोला- आमों के लिए यह बार-बार मार खाना मुझे रास नहीं आता।
यह हमारे कुल की मर्यादा के विरुद्ध है। इस जिल्लत भरी जिंदगी से पीछा छुड़ाने के लिए मुझे एक तरकीब सूझी है। क्यों न हम खुद आम के वृक्ष लगाएँ। जब उन पर आम लगेंगे तो हम निश्चिंत होकर सुख से खाएँगे। तब न कोई हमें रोकेगा, न मारेगा।
सभी बंदरों को यह बात पसंद आई और वे इसके लिए तैयार हो गए। वृक्ष लगाने के लिए जगह तलाशने के बाद उन्होंने वहाँ जमीन खोदकर आमों की गुठलियाँ दबा दीं। इसके बाद पानी देकर वहीं बैठ गए। एक दिन बैठे रहे, दो दिन बैठे रहे। लेकिन थे तो आखिर बंदर। तीसरे दिन उन्होंने जमीन खोदकर यह देखना शुरू कर दिया कि गुठलियों में आम लगे हैं या नहीं।
दोस्तो, अब उन बंदरों को कौन समझाए कि गुठलियों से तो अंकुरित होकर एक नन्हा-सा पौधा निकलता है, जो धीरे-धीरे एक विशाल वृक्ष का आकार लेता जाता है और एक निश्चित समय के बाद ही उस पर आम लगने शुरू होते हैं। यानी अगर आप अपने द्वारा रोपी गई गुठली से उत्पन्न आम खाना चाहते हैं तो धैर्य के साथ इंतजार करें।
समय आने पर आपको ढेर सारे आम खाने को मिलेंगे। लेकिन बहुत से लोग उन बंदरों की तरह अधीर होते हैं। वे हर समय जल्दी में रहते हैं और चाहते हैं हर मनचाही चीज चुटकियों में इनके सामने हाजिर हो जाए। ऐसी सोच वाले लोगों से हम कहना चाहेंगे कि किसी भी चीज को पूरा होने में एक निश्चित समय लगता है।
जैसे कि यदि आपने कोई नया काम शुरू किया है और आप सोचें कि पहले दिन से ही आपका काम चल निकले, तो ऐसा नहीं होता। नए काम या व्यवसाय को स्थापित होने में समय लगता ही है। इसलिए अधीरता दिखाने की बजाय धैर्यपूर्वक अपने प्रयत्न जारी रखते हुए व्यवसाय को स्थापित करने के लिए जी-तोड़ मेहनत करना चाहिए।
समय आने पर आपको अपनी मेहनत का फल अवश्य मिलेगा और आप निश्चिंत होकर खुशी-खुशी अपनी सफलता का स्वाद चख पाएँगे। कह सकते हैं कि तब 'आम के आम और गुठलियों के दाम' होंगे।
दूसरी ओर, कुछ लोग बिना चलना सीखे सीधे ही दौड़ना चाहते हैं। लेकिन कहते हैं कि दौड़ने के लिए जरूरी है कि पहले चलना सीखा जाए। यदि आप सीधे दौड़ने की सोचेंगे तो धड़ाम से गिर पड़ेंगे। इसी प्रकार किसी व्यवसाय को शुरू करने के बाद यह नहीं सोचना चाहिए कि आज शुरू किया है, कल दौड़ने लगे। नहीं, पहले उसे धीरे-धीरे चलाओ, फिर दौड़ाओ।
कई बार आपने देखा होगा कि बहुत से लोग तेजी से व्यावसायिक सफलता प्राप्त करते हुए नजर आते हैं। उन्हें देखकर लगता है कि अब इन्हें कोई नहीं रोक पाएगा। वे अपने प्रतिद्वंद्वियों से बहुत आगे भी निकल जाते हैं। लेकिन एक दिन अचानक हम देखते हैं कि उनका तो दिवाला ही पिट गया। ऐसी स्थिति के लिए ही कहा गया है कि आम तो गए ही, टोकरी भी नहीं बची।
ऐसा इसी कारण होता है कि उन्होंने एकदम से दौड़ने की कोशिश की और नतीजा यह हुआ कि गिर पड़े। व्यवसाय में लंबी रेस के घोड़े वे ही साबित होते हैं, जो धीरे-धीरे अपनी जड़ें मजबूत कर आगे बढ़ते हैं। कहते हैं न कि जो आराम-आराम से चलता है, वही सही-सलामत पहुँचता है।
इसलिए यदि आप छलाँग लगाना चाहते हैं तो उतनी ही लंबी लगाएँ, जितनी कि लाँघ पाएँ वरना अधिक के चक्कर में आपका क्या अंजाम होगा, यह तो आप जानते ही हैं। अरे भई, ऐसी भी क्या जल्दबाजी कि आम को निगल ही लिया, वो भी गुठली के साथ।