इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री ग्लैडस्टोन बहुत ही सादगी-पसंद व्यक्ति थे। एक बार एक अखबार के संपादक ने उनसे इंटरव्यू का समय मांगा। उन्होंने उसे स्टेशन पर मिलने का समय दे दिया, क्योंकि वे उस दिन ट्रेन से कहीं जाने वाले थे। संपादक स्टेशन पहुंच कर ग्लैडस्टोन को प्रथम श्रेणी के डिब्बे में ढूंढने लगा। वे उसे कहीं दिखाई नहीं दिए।
तभी उस डिब्बे में बैठे एक युवक ने उससे पूछा कि आपको कहीं प्रधानमंत्री की तलाश तो नहीं, वे द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में मिलेंगे। संपादक तुरंत वहां पहुंचा और पूछा- अरे! आप प्रधानमंत्री होकर भी द्वितीय श्रेणी से सफर कर रहे हैं। वह युवक यदि नहीं बताता तो मैं यह सोचकर लौट जाता कि शायद आज आपकी यात्रा टल गई होगी। इस पर ग्लैडस्टोन बोले-अच्छा, आपको शायद मेरे बेटे ने बताया होगा। संपादक के चेहरे पर आश्चर्य के भाव आए। इसके पहले कि वह कुछ कहता, वे बोले- अरे दोस्त, हैरान न हों। मैं एक किसान का बेटा हूं और वह एक प्रधानमंत्री का। मुझे द्वितीय श्रेणी की यात्रा सुविधाजनक लगती है और उसे प्रथम श्रेणी की।दोस्तो, इसी को कहते हैं 'सादा जीवन, उच्च विचार।' यह ग्लैडस्टोन की सादगी का ही परिणाम था कि सफलता के शिखर पर पहुंच जाने के बाद भी उनके पांव जमीन पर टिके थे। वरना आम व्यक्ति को तो छोटी-सी सफलता मिलने पर ही उसके पांव जमीन पर टिकना बंद हो जाते हैं, वह हवा में उड़ने लगता है। फिर उसे वे सब बातें ओछी लगने लगती हैं, जो उसके संघर्ष के दिनों में उसके लिए महत्वपूर्ण थीं। जैसे कि स्कूटर पर घूमने वाला व्यक्ति कार आ जाने पर स्कूटर पर घूमने में शर्म महसूस करने लगता है। यदि आपकी सोच भी ऐसी ही है तो यह आपके व्यक्तित्व के अधूरेपन की निशानी है। यदि आप पुरानी परिस्थितियों से यह सोचकर दूरी बनाते हैं कि लोग क्या कहेंगे? यह सोच बदलना ज़रूरी है, क्योंकि दिखावे से कुछ नहीं होता है। असली चीज़ आपके अंदर होती है, जो आपको सफलता दिलवाती है। तो यह न सोचें कि अगर मैं साइकिल पर भी घूमूंगा तो लोग क्या कहेंगे? असल बात यह है कि आपकी वैल्यू अगर कार में बैठने की है और आप पैदल भी चल रहे हैं तो इससे यही संदेश जाएगा कि आप अब भी ज़मीन से जुड़े हैं।