एक बार चंद्रशेखर आजाद कानपुर में माल रोड के पास अपने साथियों के साथ टहल रहे थे। तभी उनके पास से पतलून की जेब में हाथ डाले एक व्यक्ति उन्हें घूरते हुए निकला। इस पर काशीराम बोले- अरे, ये तो सादे कपड़ों में इंस्पेक्टर विश्वेश्वर सिंह है। लगता है इसने हमें पहचान लिया है, तभी घूरकर देख रहा था। इस पर आजाद बोले- यदि ऐसी बात है, तो तैयार रहो। यदि लौटकर आएगा तो देख लेंगे। थोड़ी देर बाद वह लौटा और फिर से घूरकर देखने लगा। यह देखकर आजाद ने जेब में हाथ डाला और त्यौरियाँ चढ़ाकर उसे ललकारते हुए बोले- ठहर, मैं देखता हूँ तुझे। उनकी ललकार से इंस्पेक्टर के होश उड़ गए और वह सिर पर पाँव रखकर वहाँ से भाग गया। |
एक बार चंद्रशेखर आजाद कानपुर में माल रोड के पास अपने साथियों के साथ टहल रहे थे। तभी उनके पास से पतलून की जेब में हाथ डाले एक व्यक्ति उन्हें घूरते हुए निकला। इस पर काशीराम बोले- अरे, ये तो सादे कपड़ों में इंस्पेक्टर विश्वेश्वर सिंह है। |
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इसके बाद वे सभी वहाँ से चल दिए। रास्ते में काशीराम बोले- यदि गोली चलाना पड़ती, तब हम क्या करते। आजाद मुस्कराकर बोले- अरे पगले, सड़क पर जिन साइकलों पर गोरे जा रहे हैं, वे किस काम आतीं। हर काम होश में रहकर किया जाना चाहिए। मैंने आगे तक की सोचकर ही ऐसा कदम उठाया था।
दोस्तो, कहते हैं परिणामों का पहले से अनुमान लगा लेना बुद्धिमत्ता की निशानी है। इसलिए एक लीडर को हमेशा पहले से यह सोच लेना चाहिए कि यदि नतीजे पक्ष में आए तो क्या, और नहीं आए तो क्या। तब स्थिति आपके प्रतिकूल भी होती है, तो आप पूरे होशो-हवास में पूरे हौसले के साथ उसका सामना कर सकते हैं, क्योंकि आप पहले से ही सोचकर जो बैठे थे। तब वह आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाती और आप समझदारी के साथ उससे बच निकलते हैं।
इसलिए हर स्थिति के लिए पहले से तैयार रहें, क्योंकि कोशिश करना हमारा काम है, परिणाम हमारे हाथ में नहीं होते। तभी तो पहले से तूफानों का सामना करने के लिए तैयार होकर निकलने वालों के लिए वे तोहफा ही साबित होते हैं। लेकिन अक्सर लोग बिना किसी तैयारी के किसी लक्ष्य को पाने के लिए निकल पड़ते हैं। वे यह तो जानते हैं कि मुकाम क्या है, लेकिन ये नहीं जानते कि काम क्या है यानी वहाँ तक कैसे पहुँचा जाए।
जानकारी होती भी है तो आधी-अधूरी, अधकचरी, जिसके आधार पर वे कामयाबी के सपने देखने लगते हैं। यदि आप भी ऐसा ही करते हैं, कर रहे हैं या करने जा रहे हैं, तो जान लें कि इससे आपको नाकामी ही मिलेगी। यदि भाग्य से आपको शुरुआती सफलताएँ मिल भी गईं, तो भी आगे असफलता का मुँह देखना पड़ सकता है, क्योंकि आगे के लिए आपकी तैयारी जो न होगी। सफलता भी नदी में तैरती एक नाव की तरह हिचकोले लेती रहती है, जिसे समझदारी से न खेया जाए तो उसके डूबने की आशंका बनी रहती है।
इसलिए कभी भी कोई काम करें तो होश में रहकर, सोच-विचारकर करें, तब आपके निर्णय कभी गलत न होंगे। यदि निर्णय गलत भी हो गए तो नतीजे उल्टे आने पर आपके होश हवा नहीं होंगे और आप पूरे हौसले से उस विषम परिस्थिति का सामना कर सकुशल निकल जाएँगे।
दूसरी ओर, यदि आप अपने प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ना चाहते हैं, तो जरूरी है कि आपके कदम, आपकी योजनाएँ ऐसी हों कि सामने वाला उनका पूर्वानुमान न लगा सके। तब आपका अचानक उठा कदम उसके होश उड़ाकर, हौसले पस्त कर, उसे अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर देता है। इसलिए हमेशा ऐसा सोचें और करें, जिसकी किसी को आपसे अपेक्षा न हो, कोई अनुमान न लगा सके।
और अंत में, कल चंद्रशेखर आजाद जयंती है। वे अपना हर काम पूरे होश में रहकर करते थे, तभी वे जीते-जी कभी अँगरेजों के हाथ नहीं आए। अँगरेजों के तो होश ही उनके नाम से उड़े रहते थे, क्योंकि वे अपने बुद्धिचातुर्य से कई बार उनके होश जो ठीक कर चुके थे। यदि आप भी उनकी तरह योजनाबद्ध तरीके से सोच-समझकर आगे बढ़ेंगे, तो कभी परिस्थिति से घबराकर भागना नहीं पड़ेगा बल्कि परिस्थिति को भागने पर मजबूर कर देंगे।
कहते भी हैं कि अगर होश रहता है तो हौसला भी बना रहता है। जब हौसला बना रहेगा तो आपका हर फैसला दुरुस्त रहेगा और हर मसला आपसे कन्नी काटकर निकल जाएगा। अरे भई, समय रहते होश नहीं संभाला तो होश ठिकाने लगने में समय नहीं लगेगा।