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आदमी को है खाता लंबा खिंचता खाता

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मनीष शर्मा

एक बार एक व्यापारी को काफी घाटा हुआ। उसने एक महाजन से कर्ज लेकर व्यापार को आगे बढ़ाया। जल्द ही सब कुछ ठीक हो गया। कर्ज वापसी की मियाद पूरी होने पर महाजन द्वारा भेजे गए आदमी को व्यापारी ने व्यस्तता बताकर वापस भिजवा दिया। इसके बाद वसूली करने वाले आदमी को व्यापारी कोई न कोई बहाना बनाकर लौटाता रहा।

महाजन समझ गया कि व्यापारी की नीयत ठीक नहीं है। उसे कुछ और उपाय करना पड़ेगा। एक दिन व्यापारी ने अपनी सफलता की खुशी में भोज का आयोजन किया, लेकिन उसमें महाजन को आमंत्रित नहीं किया। महाजन उस भोज में चार लठैत लेकर उगाही के लिए पहुँच गया। भोज में शहर के सभी प्रमुख लोग मौजूद थे।

महाजन वहाँ जोर-जोर से चिल्लाकर अपनी रकम वापस माँगने लगा। रंग में भंग पड़ चुका था। सरेआम होती बेइज्जती और मौके की नजाकत को भाँपते हुए व्यापारी रकम उसके हाथ में देते हुए धीरे से बोला- ऐसा करना तुम्हें बहुत महँगा पड़ेगा। मैं अपनी बेइज्जती का हिसाब चुकता करके रहूँगा। इस पर महाजन बोला- अरे जाओ भी, जब तुम अपना पहला ही हिसाब आसानी से चुकता नहीं कर पाए तो अब क्या कर लोगे।
इसलिए यदि आप भी किसी के देनदार हैं तो देकर खाता बंद क्यों नहीं कर देते। सामने वाले को क्यों लटकाते-टरकाते हो। ऐसा करने से मार्केट में आपकी छवि धूमिल होती है। इससे आपको फिर कभी जरूरत पड़ने पर कोई मदद करने को तैयार नहीं होगा।
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मित्रों, देखा क्या अहसान फरामोश व्यापारी था। जिस व्यक्ति ने मदद की, उसे ही परेशान करता रहा और बाद में हिसाब चुकता करने की धमकी तक दे दी, जबकि अपनी बेइज्जती के लिए वह खुद ही दोषी था। यदि समय रहते वह उधारी चुका देता तो फिर उसे यह दिन नहीं देखना पड़ता। अब कहते हैं न कि जैसा करोगे वैसा भरोगे। यह बात हर उस व्यक्ति को आत्मसात कर लेना चाहिए जो उस व्यापारी की तरह किसी लेनदार को चक्कर लगवा रहा है। क्योंकि आज नहीं तो कल उसको भी लेने के देने पड़ सकते हैं।

इसलिए यदि आप भी किसी के देनदार हैं तो देकर खाता बंद क्यों नहीं कर देते। सामने वाले को क्यों लटकाते-टरकाते हो। ऐसा करने से मार्केट में आपकी छवि धूमिल होती है। इससे आपको फिर कभी जरूरत पड़ने पर कोई मदद करने को तैयार नहीं होगा, क्योंकि सबको आपकी नीयत पर शक जो हो जाएगा।

इसके साथ ही बहुत से नियमित देनदार तो देने की नीयत होने के बावजूद उस धन पर मिलने वाले ब्याज के लालच में उधारी नहीं चुकाते। इस तरह वे उधारी चुकाने की मियाद या क्रेडिट लिमिट को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं जबकि वह इस तरह कभी नहीं बढ़ती। सामने वाला आपको एक-दो बार मोहलत दे देगा लेकिन उसकी भी लिमिट है। बार-बार दोहराने पर वह अड़ जाएगा। तब वह मियाद को यह सोचकर कम कर देगा कि आप कुछ समय टालमटोल कर भी लेंगे तो भी पैसा समय पर वसूल हो जाएगा।

इसके उलट यदि आप समय पर पैसा चुकाते रहेंगे तो कभी भी आपको उस व्यापारी के जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा बल्कि अच्छे पे-मास्टर होने की वजह से आपकी क्रेडिट लिमिट भी समय के साथ स्वतः ही बढ़ती रहेगी। इसलिए उधारी चुकाने के लिए उधार रहो, क्योंकि उधारी आदमी को कमजोर बनाती है, तनाव देती है,उसका सुकून छीनती है। यदि आप इन सबसे बचना चाहते हैं तो जब जरूरत हो और चुका सको तभी उधार लो। और अगर चुका न सको तो कभी लो न लोन।

वैसे पैसे का लेन-देन रोजमर्रा के व्यापार का एक जरूरी हिस्सा है। यदि ऐसा नहीं होता तो व्यापार में बही खातों का अस्तित्व ही नहीं होता। लेकिन मामला चाहे लेन का हो या देन का, किसी भी खाते को लंबा नहीं खींचना चाहिए, क्योंकि लंबा खिंचने पर यह आदमी को खाता है यानी मानसिक अशांति का सबब बनता है।

इसलिए एक अच्छी बही वही होती है जो समय पर पूरी होकर बंद हो जाए, नहीं तो आपकी अधिकांश शक्ति व्यापार में कम, बही यानी अकाउंट्स के हिसाब-किताब में ज्यादा खर्च होती है। यदि आप इससे बचना चाहते हैं तो पुराने खातों को जितना जल्दी हो सके, निपटाकर नई बही लिखें।

और अंत में, आज पुष्य नक्षत्र है। आज के दिन नई बही खरीदने की परंपरा है। आज नई बही खरीदते समय आप यह प्रण जरूर करना कि इस बार चाहे पुराने खाते नई बही में आ जाएँ, लेकिन अगली बार ऐसा नहीं होने देंगे। तब आपकी बही सही अर्थों में नई होगी और आपको कभी पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। गुरु-पुष्य योग में लिया गया आपका यह संकल्प जरूर पूरा होगा।

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