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छीलने के लिए जरूरी है छिलना

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मनीष शर्मा

आम का मौसम था। बादशाह अकबर अपनी बेगम और बीरबल के साथ बैठकर चूसा आम का मजा ले रहे थे। तभी अकबर को एक ठिठोली सूझी। वे नजरें बचाकर अपनी गुठलियाँ और छिलके धीरे से बेगम के गुठली-छिलकों की तरफ सरकाते जाते। जब आम खत्म हो गए तो बादशाह बोले- देखा बीरबल, बेगम साहिबा आमों की कितनी चटोरी हैं।

हम तो दो-चार आम ही खा पाए लेकिन बेगम के सामने तो गुठली-छिलकों का ढेर लग गया। यह सुनकर सकपकाई बेगम ने बीरबल की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखा कि वे इस बात का कोई अच्छा-सा जवाब दें। बीरबल बेगम का आशय समझकर बोले- आलमपनाह, आम तो हम सबने बराबर ही खाए हैं, लेकिन आप आम के इतने चटोरे, मेरा मतलब शौकीन हैं कि उन्हें गुठली-छिलकों सहित खा गए। बीरबल के जवाब से बादशाह झेंप गए और बेगम खिल उठीं।

दोस्तो, इसे कहते हैं मुँहतोड़ जवाब। अकबर चले तो थे बेगम को छीलने, लेकिन खुद ही छिल गए। इसलिए कभी भी किसी से पंगा लेने से पहले देख लें कि कहीं वह पंगा आप पर ही भारी न पड़ जाए और सामने वाला आपको ही नंगा न कर दे। यानी ज्यादा होशियारी दिखानेके चक्कर में आप मुँह की खाएँ। इसलिए किसी को छीलने से पहले यह देख लें कि कहीं आप पर ही तो छिलके नहीं हैं यानी आपमें ही कमियाँ तो नहीं। यदि ये कमियाँ सामने वाले को दिखाई देंगी तो आप तो उसे क्या छीलेंगे, वह आपको ज्यादा छील देगा।
बादशाह अकबर अपनी बेगम और बीरबल के साथ बैठकर चूसा आम का मजा ले रहे थे। तभी अकबर को एक ठिठोली सूझी। वे नजरें बचाकर अपनी गुठलियाँ और छिलके धीरे से बेगम के गुठली-छिलकों की तरफ सरकाते जाते। जब आम खत्म हो गए तो बादशाह बोले।
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तब आप अकबर की तरह कुछ नहीं कह पाएँगे क्योंकि शुरुआत तो आपने ही की थी। इसलिए यदि किसी को छीलना ही है तो पूरी तैयारी के साथ छीलो। आगे तक विचार करके कि आपकी क्रिया पर सामने वाले की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है और उस प्रतिक्रिया पर आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी। इस तरह यदि आप पहले से तैयार रहेंगे तो आपको मैदान नहीं छोड़ना पड़ेगा।

वकालत के पेशे में तो किसी वकील की सफलता ही इस बात पर निर्भर करती है कि वह सामने वाले को मौका ही न दे कि वह उसे छील सके। एक सफल वकील सामने वाले के तर्कों को ही अपना हथियार बनाकर उसे धराशायी कर देता है। और वह यह सब कर पाता है अपनी पूरी तैयारी, निरंतर अभ्यास और कठोर परिश्रम से। जिसने यह सब कर लिया हो उसे कौन छील सकता है। यह छीलने का मंत्र हर क्षेत्र में लागू होता है।

दूसरी ओर, जिंदगी में सफलता उसे ही मिलती है, जिसे उसके संघर्ष के दौर में खूब छीला गया हो। यहाँ छीलने से हमारा आशय अभ्यास से, मेहनत से है। जब कोई बॉस अपने मातहत को छीलता है यानी जोतकर रखता है तो इससे उसकी प्रतिभा निखरती है। वह अपने काम में माहिर होता जाता है। बिना काम करे यह संभव नहीं कि आप सीख जाएँ। आपको अभ्यास तो करना ही पड़ेगा।

यह अभ्यास आपके ऊपर से अज्ञानता के छिलके उतारता जाता है और आप अपनी विधा में महारत हासिल कर लेते हैं। यह अभ्यास ही है जो किसी अयोग्य को भीयोग्य बना देता है। कहते भी हैं कि करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान। यानी अभ्यास से आप वह भी कर सकते हैं, करके दिखा सकते हैं जिसे करना आपको असंभव लगता हो।

इसके साथ ही यदि आपको छीलने की दृष्टि से कोई काम यह सोचकर सौंपा जा रहा है कि आप उसे नहीं कर पाएँगे तो उस काम को जरूर करें। आप उसका विरोध करने की बजाय अपने आपको वैसे ही खुशी-खुशी छिलवाएँ जैसे पेंसिल अपने आपको शार्पनर में छिलवाती है। क्योंकि वह जानती है कि बिना छिले वह किसी काम की नहीं। ऐसे ही आप अपने बॉस, वरिष्ठों और शिक्षकों को अपना शार्पनर समझें और खुद को पेंसिल। एक दिन ऐसा भी आएगा जब आप छिल-छिलकर इतने शार्प हो जाएँगे कि शार्पनर बनकर दूसरों को छीलने लगेंगे यानी दूसरों को सिखाने लगेंगे।

और अंत में, कल 'पेंसिल डे' है। इस अवसर पर बस हम इतना ही कहना चाहेंगे कि जिस तरह पेंसिल बार-बार छीलने पर ही काम आती रहती है, वैसे ही आप भी यह छीलने-छिलवाने की प्रक्रिया को हमेशा जारी रखें। तभी आप भी हमेशा काम के बने रहेंगे। समझे ना। अरे भाई, मेरा शार्पनर कहाँ गया।

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