लाइफ को थोड़ा खिसकाएँ...
अक्सर लोग यह बात कहते मिल जाते हैं कि 'मैं जिंदगी में कुछ और बनना चाहता था और बन गया कुछ और।' ठीक है भाई, जो होना था वह हो गया...पर अब क्या करें? यही नहीं, अगर आप जो बनना चाहते थे वही बन गए तो भी... लाइफ को नए एंथुजियाजम से भरने के लिए एक रीपोजिशनिंग तो बनती है। लाइफ को थोड़ा अपनी जगह से खिसकाएँ। रीपोजिशनिंग आपकी जिंदगी में वही काम करेगी, जो खाने में नमक और मिर्च करती है। क्यों और किसलिए? क्यों? जवाब आसान है। पहला इसलिए कि एक जैसी रूटीन लाइफ जीते-जीते आप बहुत समय गुजार चुके हैं तो 'रीपोजिशनिंग' जीवन में ऊर्जा लेकर आती है। दूसरा इसलिए कि आप हालात के चलते अगर अपनी पसंद को पीछे छोड़ आए हैं तो 'रीपोजिशनिंग' आपको नया जन्म दे सकती है। भारत और योरपीय देशों में सबसे बड़ा फर्क बच्चों की शिक्षा का है। इसमें बच्चों को घर में दी जाने वाली नसीहतें और स्कूलों की फॉर्मल टीचिंग मैथडोलॉजी भी शामिल है। जिंदगी के रास्ते को तीन तरीकों से चुना जा सकता है : 1.
जिस रास्ते पर दुनिया जा रही है, उसी पर निकल लो। 2.
जिस रास्ते पर चलने का मन कहता है, उस पर चलो। 3.
अपनी पसंद का रास्ता चुनो और खुद की प्रतिभा को निखारो। दुर्भाग्यपूर्ण रूप से 99 प्रतिशत लोग पहले और बहुत हो गया तो दूसरे रास्ते को चुन लेते हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि तीसरा रास्ता चुनने वालों ने जिंदगी को खुद गले लगाया है। उन्हें कभी नहीं गाना पड़ा कि ऐ जिंदगी तू हमें गले लगा। उदाहरण हैं- सुभाषचंद्र बोस, उस्ताद जाकिर हुसैन या बिल गेट्स। '
लाइफ रीपोजिशनिंग' होती क्या है? खुद को नए नजरिए से देखने और दिखाने का नाम है 'लाइफ रीपोजिशनिंग'। जिंदगी को इंटरेस्ट और एनर्जी के साथ जीने का नाम है 'लाइफ रीपोजिशनिंग'। 16 साल जैसा उत्साह जिंदगी में फिर से जगाने का नाम है 'लाइफ रीपोजिशनिंग'। यूरोपीय देशों में अपनी किताबों से धूम मचाने वाले टीडी जैक्स अपनी किताब 'रीपोजिशन योरसेल्फ' में लिखते हैं कि 'नजर को बदलो तो नजारे बदल जाएँगे'। जिस तरह आप ब्रेक लेकर हर साल हॉलिडे टूर पर जाते हैं या वीकेंड मनाते हैं पर यह सब क्षणिक होता है। वापस काम पर लौटकर आप उसी रंग में रंग जाते हैं। फिर क्यों न इस खुशी को आपकी लाइफ का परमानेंट फैक्टर बना दिया जाए?आपको थोड़ा क्रिएटिव होने की जरूरत है और बड़ी बात यह है कि हर व्यक्ति क्रिएटिव होता है। बस उसे थोड़ा निखरने की जरूरत होती है।