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सफलता की चाहत बढ़ा रही दूरी

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कॉम्‍पीटि‍शन के इस दौर में खुद को साबित करने के लिए विद्यार्थी अकेले रहकर पढ़ने में ज्यादा विश्वास करते हैं। स्कूल में हाई क्लास के स्टूडेंट्स में खुद को सबसे बेहतर साबित करने का दबाव रहता है, जो कॉलेज खत्म होने या प्रोफेशनल कोर्स करने तक बना रहता है। इस दौरान बच्चे खेल सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम सभी से कटने लगते हैं।

स्कूल, कोचिंग ओर होमवर्क में वे इतने अधिक उलझे होते हैं कि घर के आस-पास, परिवार और समाज में होने वाली गतिविधियों की भी सुध नहीं रहती।

पढ़ाई करने से स्टूडेंट्स का आईक्यू लेवल तो बढ़ता है, पर उनका सोशल कोशंट (एसक्यू) और इमोशनल कोशंट (इक्यू) स्ट्रांग नहीं होता। इसका प्रभाव स्टूडेंट्स को किसी अच्छी कम्पनी में जॉब मिलने के बाद पता चलता है, क्योंकि वहाँ वे अपने आईक्यू से तो सभी का दिल जीत लेते हैं, पर अपने कार्य क्षेत्र में आने वाली सामाजिक समस्या या इमोशनल समस्याओं को हैंडल नहीं कर पाते।

तब वे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जो बच्चे पूरी तरह से पढ़ाई में समर्पित हो जाते हैं। वे परिवार और समाज से दूर हो जाते हैं। इससे उनका आईक्यू तो ठीक रहता है पर संपूर्ण विकास नहीं हो पाता।

ये हैं वजह
पैरेंट्स के एक्सपेक्टेशन पर खरे उतरना, कॉम्पीटिशन में पीछे रह जाने का भय, एक अच्छी जॉब और सक्सेस पाने की चाहत में स्टूडेंट्स पूरी तरह से पढ़ाई को प्राथमिकता देने लगते हैं। पैरेंट्स भी अपने बच्चों को दिन रात पढ़ता देख और उनकी पढ़ाई में व्यवधान न देने की सोच के चलते उनके लगातार पढ़ने पर कोई आपत्ति नहीं जताते।

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परिवार का सहयोग है जरूरी
केवल पढ़ाई करते रहने से बच्चों में कुछ नकारात्मक परिणाम भी देखने को मिलता है। यह कहना है क्लीनिकल साइकोलाजिस्ट डॉ. ईला गुप्ता का। पढ़ाई में आगे रहना और अदर एक्टीविटी से दूर रहना भी बच्चों के लिए हानिकारक होता है। ऐसे में बच्चों को पैरेंट्स का सपोर्ट मिलना बहुत जरूरी है। बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ स्पोर्ट्स या उनकी रूचि के अनुसार कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

असामाजिक व्यवहार की गुंजाइश

एकांत में पढ़ाई के कारण बच्चे असामाजिक व्यवहार के शिकार हो सकते हैं। समाजशास्त्री राजेश शर्मा बताते हैं कि इसके कारण वे सामाजिक कार्यक्रमों में अथवा अन्य मौकों पर लोगों के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाते, जिससे उनका व्यक्तित्व भी बाधित होने लगता है। इस तरह की विसंगतियों से बचने के लिए, तनाव को कम करने के उपाय करना चाहिए ताकि उनका लोगों से जीवंत संपर्क बना रहे और वे ज्यादा खुशी के साथ तनावमुक्त होकर पढ़ाई कर सकें।

सफलता के लिए कुछ त्याग तो करना ही होता है, पर स्कूल, कॉलेज और ट्यूशन में उलझे स्टूडेंट्स का परिवार में आना-जाना कम होता है, जिससे वे खुद को अलग महसूस करते हैं। ऐसे में घर के लोगों को उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए।

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