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भारत में फार्मेसी शिक्षा की वर्तमान स्थिति

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यह कहा जा सकता है कि भारत में फार्मेसी की शिक्षा प्रोफेसर एमएल स्क्राफ के प्रयासों का परिणाम है। 1937 में तीन वर्षीय बी. फार्मा के नियमित पाठ्यक्रम को आरंभ करने में उनकी महती भूमिका थी। आज फार्मेसी शिक्षण अच्छी-खासी प्रगति करते हुए देश के लगभग 450 डिग्री कॉलेजो में फैल गया है, जहाँ 25 हजार से अधिक छात्र शिक्षण तथा प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या यह विकास सही दिशा में हुआ है?

कई विशेषज्ञ अनुभव करते हैं कि देश में बेहतर गुणवत्ता वाले फार्मेसी शिक्षण के लिए एक स्पष्ट नीति बनाई जाना चाहिए। इसके लिए उच्च फार्मेसी संस्थानों में स्नातकोत्तर शिक्षा तथा अनुसंधान को बढ़ावा देने के साथ-साथ मान्यता तथा गुणवत्ता जैसे मानकों का निर्धारण भी अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।

इसके अलावा यह भी महसूस किया गया है कि फार्मास्यूटिकल प्रशिक्षण समुदाय खासकर अध्ययन के नए उभरते क्षेत्रों में महत्वपूर्ण वृद्धि के लिए योजना बनाई जाना चाहिए, ताकि भारत एक अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त फार्मास्यूटिकल केंद्र बनकर उभर सके।

फार्मेसी शिक्षा की वर्तमान स्थिति
आज भारत में फार्मेसी की शिक्षा को कई लोगों द्वारा व्यवसाय के अवसर के रूप में देखा जा रहा है। देश के फार्मेसी कॉलेजों में योग्य तथा शिक्षित अध्यापकों की भारी कमी है। इसके साथ ही फार्मेसी स्नातकों द्वारा प्राप्त ज्ञान तथा कौशल और रोजगार की आवश्यकताओं के बीच काफी विसंगतियाँ भी हैं। देश के फार्मेसी कॉलेजों के बीच वितरण की असमानता भी क्षेत्रीय असंतुलन तथा छात्रों के अंतरराज्यीय प्रवर्जन का प्रमुख कारण बना हुआ है।

ग्रामीण तथा दूरस्थ इलाकों में फार्मेसी कॉलेजों की अलोकप्रियता ने इस मुसीबत को और बढ़ाया है। इसके अलावा देश के कई फार्मेसी कॉलेजों के स्नातक टीम के रूप में कार्य करने में असमर्थ हैं तथा उनमें इंटर डिसीप्लीनरी नॉलेज, पर्याप्त व्यावहारिक उन्मुखीकरण तथा मौखिक तथा लिखित कौशल का अभाव है।

देश में फार्मेसी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए दो संस्थाओं- फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई ) तथा इंडिया काउंसिल फॉर टेक्नीकल एजुकेशन (एआईसीटीई) द्वारा इस क्षेत्र को नियंत्रित किया जा रहा है। यही नहीं, भारतीय समाज में भी फार्मासिस्ट को उतना सम्मान नहीं मिल रहा है, जितना कि उसे मिलना चाहिए था। इसका मुख्य कारण फार्मेसी शिक्षा में सौहार्दता का अभाव है और यही कमी फार्मासिस्टों के पेशेवर मूल्यों का व्यावहारिक रूप से अवमूल्यन कर रही है।

आमतौर पर, विकसित देशों में फार्मासिस्टों का पंजीयन फार्मेसी में ग्रेजुएशन के बाद किया जाता है, लेकिन भारत में फार्मासिस्ट के लिए पंजीयन के लिए डी. फार्मा मूल शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की गई है। इतना ही नहीं, देश में डी. फार्मा के शिक्षण तथा प्रशिक्षण का स्तर भी इतना अच्छा नहीं है। इसीलिए इस पेशे की छवि धूमिल बनी हुई है।

इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए फार्मेसी शिक्षा में रि-ओरिएंटेशन एप्रोच तथा आउटलुक आवश्यक है। देश की फार्मेसी शिक्षा में फार्मेसी के व्यवहारों की बजाय औद्योगिक फार्मेसी पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। आज प्रोफेशनल फार्मेसी, कम्युनिटी फार्मेसी तथा क्लिनिकल फार्मेसी जैसे विषय ज्यादा माँग में है।

यदि वैश्विक रूप से फार्मेसी शिक्षा पर नजर डाली जाए तो हम पाएँगे कि क्लिनिकल फार्मेसी पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है, जबकि भारत में औद्योगिक फार्मेसी पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। फार्मेसी शिक्षा में प्रवेश के स्तर, कोर्स की अवधि, कोर्स के विषयों तथा ज्ञान की गहनता, प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम, इंटर्नशिप तथा पंजीयन योग्यता पर समानता होना चाहिए। आज फार्मेसी चुनौतियों को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि इसमें औषधियों के आविष्कार तथा निर्माण में प्रयुक्त नई प्रौद्योगिकियों को शामिल नहीं किया गया है। इस दिशा में गुणात्मक परिवर्तन अपरिहार्य है।

भारत में अब शैक्षणिक प्रक्रिया राष्ट्र निर्माण का कार्य नहीं रहा, बल्कि लाभ अर्जन करने वाली व्यावसायिक कवायद की शक्ल ले चुकी है। प्रत्येक शैक्षिक संस्थान भारी दिखावा कर अपनी छबि को कॉर्पोरेट के रूप में निर्मित करने का प्रयास कर रही है तथा शिक्षण और व्यावहारिकोन्मुखीकरण में बुनियादी गुणवत्ता शामिल करने की तरफ जरा भी ध्यान नहीं दे रही हैं। फिर भी राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर के संस्थानों से संबंध स्थापित कर अंतरराष्ट्रीय छवि हासिल करने के लिए शोर मचाया जा रहा है।

फार्मेसी की शिक्षा देने वाले संस्थान मेडिकल यूनिवर्सिटी अथवा टेक्निकल यूनिवर्सिटी से संबद्ध हैं। फार्मेसी की डिग्रियाँ फार्मास्यूटिकल साइंस फेकल्टियों की बजाय साइंस, टेक्नॉलॉजी या मेडिसिन की फेकल्टियों द्वारा प्रदान की जा रही हैं। नए फार्मेसी कॉलेजों को आरंभ करने के स्तर तथा मापदंडों का निर्धारण एआईसीटीई द्वारा तय किया गया है।

वैश्विक रूप से फार्मास्यूटिकल का पेशा अपनी सेवाओं में अधिक मूल्य जोड़ने में लगा हुआ है। आधुनिक जमाने में फार्मासिस्ट को एक देखभाल करने वाला, निर्णय लेने वाला, सम्प्रेषक, समुदाय के नेता, प्रबंधक, जीवनपर्यंत सीखने वाला तथा सामाजिक प्रतिबद्धता के रोल मॉडल के रूप में देखा जाता है। नई सदी में प्रौद्योगिक नवाचारों तथा परिष्कृत संचार, परिवर्तन की बयार प्रत्येक मानवीय प्रयासों में बह रही है, ऐसे में इन नवपरिवर्तन से फॉर्मेसी को अलग नहीं रखा जा सकता है और न ही इसे अपवाद माना जा सकता है।

फार्मास्यूटिकल शिक्षा में सुमेलीकरण को भारत में सर्र्वोच्च प्राथमिकता देकर कार्यसूची में सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए तथा इसमें चिकित्सा तथा औषध विज्ञान के ऐसे नवीनतम विकासों को शामिल किया जाना चाहिए, जो भारतीय समाज की अपेक्षाओं के अनुरूप हो। इसके साथ ही भारत में फार्मेसी शिक्षा को अधिशासित करने के लिए एक समग्र फार्मास्यूटिकल शिक्षा नीति की खोज की जाना समय की आवश्यकता है

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