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कर्म बड़ा या भाग्य?

सुधीर शर्मा

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अक्सर युवा सोचता है कि बिना कुछ किए ही उसे वह सबकुछ मिल जाए जो वह चाहता है। इस पर लगातार बहस हो रही है कि भाग्य बड़ा है या कर्म। क्या कुंडली देखकर हम अपना कर्म करें, क्या ग्रह की दशा देखकर यह फैसला लें कि हमें कौनसा कदम कब उठाना है?

अनंतकाल से इस विषय पर बहस चली आ रही है कि कर्म महत्वपूर्ण है या भाग्य। जीवन में अगर आपको कुछ पाना है तो मेहनत तो करनी ही पड़ेगी। मंजिलें उन्हीं को मिलती है जो उसकी ओर कदम बढ़ाते हैं।

महाभारत में जब अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में युद्ध में अपने स्वजनों को अपने सामने खड़ा पाया तो उसका ‍शरीर निस्तेज हो गया। हाथों से धनुष छूट गया। प्राणहीन मनुष्य के समान वह धरती पर गिर गया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे गीता के कर्म ज्ञान का उपदेश दिया।

भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कहा कि राज्य तुम्हारे भाग्य में है या नहीं यह तो बाद में, पहले तुम्हें युद्ध तो लड़ना पड़ेगा। तुम्हें अपना कर्म तो करना पड़ेगा अर्थात स्वजनों के खिलाफ युद्ध तो लड़ना पड़ेगा। तुलसीदासजी ने भी श्रीरामचरित मानस में लिखा है- 'कर्म प्रधान विश्व करि राखा'। अर्थात युग तो कर्म का है।

इसका अर्थ यह हुआ कि हम अपना कार्य करें, फल ‍की चिंता बाद में करें। किसान जब खेत में बीज बोता है तो उसे यह नहीं पता होता कि बारिश होगी या नहीं। जमीन में से बीज से अंकुर फूटेगा या नहीं। अगर पौधे आ भी गए तो उस पर फल आएंगे या नहीं। लेकिन किसान बीजों को जमीन बोता है और फसल की चिंता ईश्वर पर छोड़ देता है।

भाग्य का समर्थन करने वाले कहते है कि हमें जो सुख, संपत्ति, वैभव प्राप्त होता है वह भाग्य से होता है। जैसे लालूप्रसाद यादव की पत्नी राबड़ीदेवी बिहार की मुख्यमं‍त्री बनीं तो यह उनकी किस्मत थी। डॉ. मनमोहनसिंह भारत के प्रधानमंत्री बने तो उनकी कुंडली में राजयोग था। अगर ‍किसी अभिनेता का बेटा अभिनेता बनता है तो यह उसका भाग्य रहता है कि वह ‍अभिनेता के यहां पैदा हुआ।

जब चार लोग एक समान बुद्धि और ज्ञान रखने वाले एक ही समान कार्य को करें और उनमें से सिर्फ दो को ही सफलता मिले तो हम इसे क्या कहेंगे। दो लोगों के साथ भाग्य साथ नहीं था। ऐसा एक उदाहरण हम यह दे सकते हैं दो व्यक्ति एक साथ लॉटरी का टिकट खरीदते हैं पर लगती लॉटरी एक ही व्यक्ति की है। जब दोनों ने लॉटरी खरीदने का कर्म एक साथ किया तो फल अलग-अलग क्यों?

अंत में यही कहा जा सकता है कि भाग्य भी उन लोगों का साथ देता है जो कर्म करते हैं। किसी खुरदरे पत्थर को चिकना बनाने के लिए हमें उसे रोज घिसना पड़ेगा। ऐसा ही जिंदगी में समझें हम जिस भी क्षेत्र में हों, स्तर पर हों हम अपना कर्म करते रहें बिना फल की चिंता किए। जैसे परीक्षा देने वाले विद्यार्थी परीक्षा देने के बाद उसके परिणाम का इंतजार करते हैं।

यह अंतहीन बहस है कि भाग्य बड़ा है या कर्म। इसके बारे में सबके पास अपने अपने तर्क हैं, लेकिन हर हाल में हमें सकारात्मक सोच के साथ जीवन में कुछ उल्लेखनीय करने के लिए प्रेरणा लेनी चा‍हिए।

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