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कहाँ गया वो छात्र नेतृत्व?

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- स्वरूप बाजपेयी

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छात्रसंघ के चुनाव अब सिंतबर में होंगे पर ये चुनाव असल में तो 'चुनाव' शब्द का माखौल ही है। वर्तमान के निर्वाचन व चुनाव प्रक्रिया पर एक सरसरी-सी नजर डालें तो हमें छात्रों के संघ का गठन स्वयं छात्रों का ही मजाक उड़ाता-सा लगता है। कोई भी दल की सरकार यह चाहती ही नहीं कि कॉलेजों में छात्र नेतृत्व पनपे। इसलिए चुनावी प्रक्रिया तथा इससे उत्पन्न होने वाली झंझटों और बाद में बनने वाली स्थितियों से बचाव के लिए एक ढीला-ढाला छात्रसंघ गठित कर दिया जाता रहा बरसों से।

बीते हुए एक दौर में ऐसा नहीं था। तब छात्र नेता उभरते थे, आंदोलन होते थे और सरकार की नींद उड़ जाया करती थी, क्योंकि छात्र नेताओं के पास होता था व्यापक छात्र समर्थन। यदि हम छात्र नेता के रूप में जौहरीलाल झाँझरिया (इंदौर में भारत छोड़ो आंदोलन के साथ जुड़े), होमी एफ. दाजी, यज्ञदत्त शर्मा व सुरेश सेठ (1954 में छात्र संघर्ष के नेता) के बाद के वक्त पर लौटें तो इंदौर के दो नामवर कॉलेजों का नाम सामने आता है- पहला इंदौर क्रिश्चियन कॉलेज और दूसरा शा. कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय। छात्र नेतागिरी इन्हीं दो कॉलेजों के इर्द-गिर्द घूमती थी। बाद में इसमें गुजराती समाज के विभिन्न कॉलेजों की हिस्सेदारी भी हो गई थी।

1965-66 में जब इंदौर क्रिश्चियन कॉलेज में पीजी की चार कक्षाएँ बंद की जाने वाली थीं, तब क्रिश्चियन कॉलेज का आंदोलन समूचे इंदौरी छात्र जगत का आंदोलन बन गया था। विक्रम वर्मा, जॉर्ज बेनेडिक्ट व श्याम डागा तथा अन्य छात्र भूख हड़ताली थे और उनके स्वास्थ्य की बुलेटिनें बाकायदा जारी होती थीं। यहाँ भी कॉलेज प्रशासन को झुकना पड़ा था और ऐसा इसलिए हो पाता था क्योंकि छात्रसंघ का गठन औपचारिक ढंग से नहीं होता था, बल्कि छात्र-छात्राएँ ही अपने नुमाइंदों को अपने वोट से चुनते थे।

क्रिश्चियन कॉलेज से उसी दौर में महेश जोशी, विक्रम वर्मा, वेदप्रताप वैदिक, सुभाष कर्णिक, कल्याण जैन, रामनारायण तिवारी आदि छात्र नेताओं की परंपरा जो चली तो तेजी से चलती रही और उसका कोई ओर-छोर ही नजर नहीं आया।

आर्ट्स कॉलेज से अशोक शुक्ला, ज्ञानचंद जैन (कुलभूषण कुक्की के पिता), पंडित कृपाशंकर शुक्ला, तेजसिंह सैंधव, राजेंद्रसिंह बघेल, केवल यादव, सज्जनसिंह वर्मा, तुलसी सिलावट आदि ने छात्र नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई तो गुजराती कॉलेज से सुरेश मिंडा, कैलाश खंडेलवाल, भँवरसिंह शेखावत, कैलाश विजयवर्गीय, गोपीकृष्ण नेमा जैसे नेता निकले।

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