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कैसी है नक्सली प्रभावित राज्यों में शिक्षा की स्थिति

सुधीर शर्मा

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भारत को देश के बाहरी दुश्मनों के साथ-साथ आतंरिक दुश्मनों से भी लड़ना पड़ रहा है। आतंरिक समस्याओं एक बड़ी समस्या है नक्सलवाद। नक्सली प्रभावित राज्य विकास भी नहीं कर पाते और अनेक क्षेत्रों में पिछड़े रहते हैं। उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आध्रप्रदेश, झारखंड जैसे राज्य नक्सली समस्या से ग्रस्त हैं।

नक्सली प्रभावित इन राज्यों में बुनियादी सुविधाएं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली आदि परेशानियों का सामना भी यहां के निवासियों को करना पड़ता है। नक्सली हिंसा का प्रभाव वहां के बच्चों की शिक्षा पर पड़ता है। भारत के बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में नक्सली विद्रोहियों और पुलिस व अन्य सुरक्षा बलों के बीच जारी सशस्त्र संघर्ष के कारण हज़ारों बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। प्राथमिक शिक्षा भी नहीं मिलने से उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है।

ऐसे राज्यों में एजुकेशन व्यवस्था बुरी तरह से बिखरी हुई है। अगर बच्चे स्कूल चले भी जाएं तो नक्सलियों के डर के कारण शिक्षक स्कूलों में पढ़ाने नहीं आते। नक्सली प्रभावित राज्यों में नक्सलियों ने स्कूल भवनों को तबाह कर दिया या उन पर कब्जा कर बैठे हैं। ‍जिन स्कूलों का प्रयोग सैनिक नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई करने में नहीं कर रहे हैं उन पर हमला करना अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून और भारतीय आपराधिक क़ानून दोनों का उल्लंघन है।

नक्सली तो स्कूलों पर हमला करते ही हैं, पुलिस, सैनिक, अर्द्धसैनिक, सुरक्षा बलों द्वारा नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाने में इन स्कूल भवनों का प्रयोग करने से या तो इनमें पढ़ाई नहीं होती या ये स्कूल बंद हो जाते हैं। ऐसे क्षेत्रों में या तो बच्चे स्कूल जाने से डरते हैं, क्योंकि कई मासूम विद्यार्थियों पर नक्सली हमला कर देते हैं, जिससे इन मासूमों को अपने जिंदगी से हाथ धोना पड़ता है। अनेक मासूमों को इस हिंसा में अपनी जान गंवानी पड़ी है।

नक्सली स्थानीय समुदायों में भय और आतंक पैदा करने और ‍मीडिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए सरकारी स्कूलों पर हमला करते हैं। सुदूर क्षेत्रों में जहां नक्सलियों का सबसे अधिक प्रभाव और गतिविधि है वहां असुरक्षित स्कूल अधिक दिखने वाला आसान शिकार है।

उधर नक्सली यह दावा करते हैं कि स्कूल पर उनके हमलों से बच्चों की शिक्षा प्रभावित नहीं होती है, वे उन्ही स्कूलों को निशाना बनाते हैं जो राज्य सुरक्षा बल नक्सल विरोधी अभियान के लिए प्रयोग लेते हैं, लेकिन ह्यूमन राइट्स वॉच संस्था इस दावे ग़लत बताती है। ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपने एक शोध में यह स्पष्ट किया है कि बिहार और झारखंड के जितने स्कूलों पर हमले हुए उनमें से कम से कम 25 ऐसे स्कूल हैं जो असुरक्षित थे और हमले के समय सुरक्षा बलों के प्रयोग में नहीं थे।

नक्सली प्रभावित राज्यों में केंद्र और राज्य सरकार मिलकर कई योजनाएं चलाती हैं जिससे वहां के निवासियों को इसका लाभ मिल सके। शिक्षा क्षेत्र में विकास के लिए योजनाएं बनाई जा रही हैं। महाराष्ट्र सरकार नक्सली हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में आदिवासी छात्रों के लिए 'केजी पीजी' शैक्षिक केंद्र की योजना बना रही है। विदर्भ के गढ़चिरौली और गोंदिया जिलों में पायलट आधार पर आवासीय विद्यालय शुरू किए जा रहे हैं, जो आदिवासी छात्रों को बालवाड़ी से स्नातकोत्तर स्तर शिक्षा प्रदान करेंगे।

नक्सलियों का विरोध चाहे सरकार से या उसकी ‍नीतियों से हो लेकिन इस हिंसा का ‍खामियाजा तो मासूमों को भुगतना पड़ता है। शिक्षा से वंचित बच्चे भी सही दिशा नहीं मिलने के कारण वे भी इन नक्सलियों के प्रभाव में आकर हिंसा की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं।

अपेक्षाकृत विकसित राज्य और शहर में मुद्दा यह है कि बच्चा कौन से स्कूल में जाएगा, उस पर भी बहस यह है कि उसके लिए सीबीएसई बोर्ड पैटर्न ठीक रहेगा या उसे आईसीएसई में दाखिला दिलाया जाए। लेकिन नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में मामूली सरकारी स्कूलों में भेजने के लिए माता पिता को अपने बच्चों की जान दांव पर लगानी पड़ती है।

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