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नौकरियाँ चलीं छोटे शहरों की ओर

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- आशुतोष वर्मा

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आज कल देखा जा रहा है कि कंपनियाँ अपनी विस्तार योजना के तहत टीयर-2 और टीयर-3 शहरों की ओर अपना रुख कर रही हैं। खासतौर पर बड़े ब्रांड अपनी फ्रेंचाइजी भारी संख्या में छोटे शहरों में खोल रहीं है। इन विस्तारों के साथ-साथ यह ब्रांड ढेरों रोजगार की संभावनाएँ भी पैदा कर रही हैं। यानी रोजगार की संभावना बड़े शहरों को छोड़ टीयर-2 एवं टीयर-3 शहरों की राह अपना रही है।

मुद्दे की बात यह है कि देश में फ्रेंचाइजी बाजार तेजी से बढ़ रहा है और यह बाजार युवाओं के लिए रोजगार की नई संभावनाओं को भी पैदा कर रहा है। नियुक्ता प्रदाता हॉराइजन आरएचआई कंपनी कोकोबेरी के सीईओ जेएस. भल्ला ने बताया कि एक अध्ययन के मुताबिक, प्रत्येक आठ मिनट में एक नई फ्रेंचाइजी खुल रही है। वैसे भी फ्रेंचाइजी इंडस्ट्री इतनी बड़ी है कि दुनिया भर के कारोबार करीब 17 फीसदी हिस्सा फ्रेंचाइजिंग के जरिए हो रहा है।

भारत में फिलहाल 3 फीसदी से भी कम है। हालाँकि, अब यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। भल्ला ने बताया कि भारतीय फ्रेंचाइजी इंडस्ट्री 40 फीसदी प्रति वर्ष से बढ़ कर रही है। उन्होंने कहा कि वैसे, एक आम अनुमान के मुताबिक फ्रेंचाइजी इंडस्ट्री पर विदेशी कंपनियों का कब्जा है, लेकिन यह बात बिल्कुल गलत है। 40 से 50 आउटलेट वाली 600 पुरानी फ्रेंचाइजी में से 90 फीसदी भारतीय कंपनियों की हैं।

इसका मतलब है कि भारतीय कंपनियों के पास फ्रेंचाइजी विकल्प को अपना कर अपने कारोबार का विस्तार करने की संभावना भरी पड़ी हैं। देश की बड़ी एचआर कंसलटेंसी कंपनी प्लेनमैन एचआर प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक दीपक कायस्थ ने बताया कि 2005 के दौरान देश में 300 फ्रेंचाइजी कंपनियाँ भी जो कि 2010 तक 150 का आँकड़ा छू चूकी हैं।

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फिलहाल कंपनियाँ बाजार में संभावना को तलाश करने की तैयारी में हैं। दीपक ने कहा कि मेट्रो सिटी और टीयर-1 शहरों के सीमित दायरे की वजह से कंपनियाँ टीयर-2 और टीयर-3 शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों की ओर रुख कर रही हैं।

भल्ला ने बताया कि बड़ी संख्या में युवा उद्यमी अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए फ्रेंचाइजी का रास्ता अपना रहे है। कई कंपनियां (मल्टी ब्रांड और भारतीय कंपनियाँ) फेंचाइजिंग के द्वारा सफलता की राह पर चल पड़ी है। कोकोबेरी कंपनी को ले लिजिए वर्तमान में हमारो 12 आउटलेट हैं।

आगामी दो सालों में इसे बढ़ाकर 100 से 150 आउटलेट कर दिया जाएगा। वहीं दीपक ने बताया कि यूरोकिड्स इंटरनेशनल लिमिटेड ने महाराष्ट्र के छोटे शहरों परभनी और अनगांगोन में अपनी दुकानें खोली है। इसके अलावा अमूल गुजरात के हर क्षेत्र में फैल चुका है, साथ ही अब देश के दूसरे क्षेत्रों में भी देखा जाने लगा है। किचनवेयर रिटेलर प्रेस्टिज देश के मेट्रो और बड़े शहरों के अलावा छोटे शहरों में भी अपना आउटलेट खोल चुकी है।

अन्य एचआर कंसलटेंसी फर्म यूनीसन इंटरनेशल के निदेशक उदित मित्तल ने बताया कि फ्रेंचाइजी मार्केट में उद्यमियों को विस्तार की राह पर चल रहे जाने माने ब्रांड में निवेश करने का मौका मिल रहा है। उद्यमियों को बड़ा ब्रांड मिल जाता है और वह खुद एक फ्रेंचाइजी मालिक के तौर पर अपना कारोबार करने लगते हैं।

उदाहरण के तौर पर एप्टेक एक ऐसा ही ब्रांड रहा है, जिसकी फ्रेंचाइजी लेकर कई लोग अपना कारोबार को कर ही रहे हैं साथ ही दूसरे लोगों के लिए रोजगार की नई संभावनाएँ भी पैदा कर रहे हैं। ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ फ्रेंचाइजी विकल्पों की असंख्य संभावनाएं मौजूद है।

जैसे कि एफएमसीजी, रिटेल, हेल्थकेयर एंड ब्यूटी, आईटी, ट्रेवल ऑपरेटर आदि कंपनियां भारी मात्रा में अपनी फ्रेंचाइजी खोल रहे है। दीपक ने कहा कि 16 अरब डॉलर के फ्रेंचाइजी बाजार में कंपनियां अभी भी टीयर-1 और टीयर-2 शहरों पर कब्जा करने की तैयारी कर रही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि जैसे-जैसे ब्रांड और फ्रेंचाइजी बाजार का विस्तार होगा वैसे-वैसे लोगों के लिए नई नौकरियों की संभावना भी तेजी से बढ़ेंगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि नए आउटलेट खुलने के साथ नए लोगों की जरूरत न हो। विभिन्न क्षेत्रों की कंपनियाँ और उनकी फ्रेंचाइजी से उन सभी क्षेत्रों में रोजगार पैदा होगा।

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