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फिर आगे लड़कियाँ... !

हर बार बाजी लड़कियों के हाथ में क्यों?

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स्मृति आदित्य

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रिजल्ट आने लगे हैं। मेहनत, प्रतिभा, भाग्य और लगन, सब इस बार भी दाँव पर लगे थे। हर बार की तरह जीत मेहनत की हुई। यानी लड़कियों ने लहरा दिए हमेशा की तरह परचम। हर बार रिजल्ट इसी तरह आते हैं और कमोबेश हर अखबार की सुर्खियाँ यही होती है कि लड़कियों ने मारी बाजी।

प्रश्न यह उठता है कि आखिर ऐसा क्या है इन लड़कियों में जो तमाम दबावों और जिम्मेदारियों से निपटते-जूझते भी आगे निकल जाती है। भावुकता,नजाकत और चंचलता जैसे गुणों के होते हुए भी कैसे लड़कों को पीछे धकेल खुद को साबित कर देती है?

मनोविज्ञान कहता है लड़कियों में कुछ ऐसे विशिष्ट गॉड गिफ्टेड गुण होते हैं जिनकी बराबरी लड़के कर ही नहीं सकते। हमें प्रकृति के इस भेद को स्वीकारना होगा कि स्त्री और पुरुष दो अलग-अलग स्वरूप में गढ़े गए ईश्वर के खिलौने हैं। दोनों की क्वॉलिटी डिफरेंट है। आइए कुछ बेसिक अंतर पर गौर फरमा लिया जाए :

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खुद के प्रति अवेयर : भारतीय परिवेश में लड़कियाँ जिस तरह से संस्कारित की जाती है उससे वे स्वयं के प्रति जागरूक रहना सीख जाती है। उन्हें कब क्या करना है इसे लेकर बचपन से उनका मानस बनने लगता है। वहीं लड़कों में लापरवाही के गुण जल्दी विकसित होते हैं। फैमेली में लड़कियाँ लाड़ली होती है बावजूद इसके लड़कियाँ अपनी केयर खुद करना जल्दी सीख जाती है। खुद के प्रति जवाबदेही की स्थिति उन्हें पढ़ाई के प्रति भी गंभीर बना देती है।

किसी जमाने में समाज के कुछ हिस्सों में लड़कियाँ उपेक्षित होती होंगी,आजकल लड़कियाँ परिवार में ज्यादा अटेंशन पाती है। ज्यादा केयर भी उन्हें मिलने लगी है। इस बात का लड़कियाँ गलत फायदा नहीं उठाती है और करियर के प्रति गंभीरता बनाए रखती है।

पेरेंट्स के प्रति ग्रेटफुल : बचपन से ही लड़कियाँ इस अहसास के साथ जीती हैं कि एक दिन उन्हें किसी और के घर जाना है। यह बात उन्हें अपने पेरेंट्स के और करीब ले आती है। अपनी पढ़ाई और दूसरे खर्चों पर माता-पिता का सेक्रिफाइज करना उन्हें कचोटता है। यही कारण है कि उनमें जल्द ही कुछ बनकर माता-पिता के उपकारों का बदला चुकाने का जुनून होता है।

लड़के इस मामले में उतने संवेदनशील नहीं होते हैं कि पेरेंट्स की तकलीफों को महसूस कर सकें। उन्हें लगता है पेरेंट्स जो कुछ कर रहे हैं उस पर उनका पूरा हक है, जबकि लड़कियाँ और अधिक ग्रेटफुल हो जाती हैं। यह एक अहम वजह हो सकती है कि लड़कियाँ रिजल्ट का शानदार तोहफा लेकर फैमेली को देती है।

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मेहनत का जवाब नहीं : जाहिर तौर पर लड़कियाँ लड़कों से अधिक मेहनत करती है, यह बात और है कि एक्जाम के अलावा कहीं और उतनी ईमानदारी से उनका मूल्यांकन नहीं होता। जिम्मेदारियों को निभाते हुए वे अपने लिए एक-एक पल चुराती हैं। इसीलिए अपने लिए मिले लम्हों को वह सही ढंग से यूटिलाइज करना चाहती है। चाहे लड़कों को बुरा लगें उन्हें स्वीकारना होगा कि लड़कियों की तुलना में वे आलसी होते हैं।

करियर को लेकर क्लियर : यह लड़कियों की सबसे खास खूबी होती है कि वे बहुत जल्दी यह जान लेती है कि उन्हें क्या बनना है, वे क्या करना चाहती है। अपना फ्यूचर कैसा देखना चाहती है। वहीं लड़के अकसर इस डाइलेमा से बाहर नहीं आ पाते हैं कि वे क्या करें और क्या नहीं। पल-पल में उनके विचार बदलते हैं। लड़कियाँ उनके मुकाबले स्थिर दिमाग की होती है।

दूसरा, लड़कों में हर चीज हासिल करने का नशा होता है, परिणाम यह होता है कि जो वे आसानी से हासिल कर सकते थे उससे भी वंचित रह जाते हैं। लड़कियाँ हर चीज के पीछे नहीं भागती, वे शांत रहकर अपनी क्षमता और दक्षता का मूल्यांकन करते हुए करियर को लेकर क्लियर होती हैं।

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लाजवाब कम्यूनिकेशन स्किल : यह बा‍त लड़के ना भी मानें तो वैज्ञानिकों के रिसर्च उन्हें मानने के लिए बाध्य कर देंगे कि लड़कियों में खुद को अभिव्यक्त करने की विलक्षण क्षमता होती है। वे जैसा सोचतीं हैं, वैसा ही कहने और लिखने की योग्यता उनमें होती है। यही वजह है कि एक्जाम में अपने दिमाग का कुशलतापूर्वक इस्तेमाल करते हुए वे वह सब लिख पातीं है जैसा सोच रही होती हैं। जबकि लड़कों में विचारों का प्रवाह होता है लेकिन उनकी डिलेवरी उतनी इफेक्टीव नहीं हो पाती। जाहिर सी बात है कि एक्जामिनर कॉपी देखता है, लड़की या लड़का नहीं।

डेडिकेशन एंड कमिटमेंट : मेहनत और लगन, लड़कियाँ खुद को किसी काम में डुबोती है तो यही दो उनके हथियार होते हैं,जाहिर तौर पर वह जंग जीत जाती हैं। क्योंकि कोई भी काम, समर्पण और प्रतिबद्धता के बिना सफल हो ही नहीं सकता। लड़के तुलनात्मक रूप से उतने समर्पण भाव से कोई काम नहीं करते, पढ़ाई की बात हो तो मामला और पेचीदा हो जाता है। पेरेंट्स की टोकाटोकी उनके बचे-खुचे समर्पण भाव को भी खत्म कर देती है। लड़कियों को टोकना ही नहीं पड़ता वे स्टडी भी उतने ही चाव से करती हैं जितनी चाव से फैशन।

नो फालतू शौक : अब इस पर क्या कहें। सिगरेट हो या मूवी का फर्स्ट शो। गुटखा हो या गॉगल्स, जींस हो या गर्लफ्रेंड पर इंप्रेशन। आउटिंग हो या लॉंग ड्राइव, बाइक हो या मोबाइल, खर्चे और शौक हमेशा से ही लड़कों के ज्यादा होते हैं। महँगे शौक उन्हें इतना वक्त ही नहीं देते कि अपनी स्टडी को लेकर सीरियस हो सकें। फिर जब लड़कियाँ मैदान मार लेती हैं तो सिर धुनने के सिवा बचता ही क्या हैं।

प्रॉएरिटी या एजेंडा सेटिंग : लड़कियाँ इस मामले में बेहद चतुर होती है। उन्हें देखकर आप यह अंदाज नहीं लगा सकते कि फैशन, फिल्में, स्टाइल को मेंटेन करते हुए भी उनका लाइफ एजेंडा कुछ और ही होता है। जब स्टडी की बात आती है तो इन सबके साथ वे फोकस्ड हो जाती हैं अपनी प्रॉएरिटी लेवल को सेट करने में। यहीं लड़के मात खा जाते हैं उनका कोई प्रॉएरिटी लेवल होता ही नहीं है।

यूँ तो गिनाने बैठें तो कई प्वॉइंट्स निकल आएँगे लेकिन ‍फिलहाल इन शॉर्ट कॉन्फिडेंस, कॉन्संट्रेशन, एनर्जिटिक, लर्निंग एबिलिटी सही डायरेक्शन में नारी सुलभ जॅलेसी का इस्तेमाल, सिस्टेमैटिक, स्मार्ट और सेंसेटिव होना लड़कियों के ऐसे दुर्लभ गुण हैं जो उन्हें मंजिल तक पहुँचाने में हेल्प करते हैं। अब आप गाते रहें धुन में 'ब्वॉयज आर बेस्ट', लड़कियों ने तो साबित कर दिया।

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